रवि सोनी, दतिया। Ratangarh Mata Temple देशभर में सर्पदंश के लिए मशहूर रतनगढ़ माता का मंदिर, जहां दीपावली की दौज पर खासी संख्या में श्रद्घालु अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं। कहा जाता है कि 16 वीं शताब्दी में औरंगजेब ने वीर शिवाजी को अपना बंदी बना लिया तब उनके समर्थ गुरु रामदास रतनगढ़ पहुंचे, जहां उन्होंने माता मांडुला देवी के स्थान पर आकर प्रार्थना की और इसके बाद शिवाजी औरंगबेज के कब्जे से बाहर निकल आए थे।
मन्नत पूरी होने पर रामदास गुरु ने ही इस जगह पर मांडुलादेवी का मंदिर बनाया था। मान्यता है कि यहां पर सर्पदंश की सिद्धि प्राप्त हुई। देश भर में यह एक ही स्थान है, जहां पर दीवाली की दौज पर बंध काटे जाने का मेला लगता है।
आइए झांकते हैं हम गुजरे हुए कल में
13वीं शताब्दी में जब रतनगढ़ के राजा रतनसिंह ने अलाउद्दीन खिलजी का अपनी बेटी मांडुला के विवाह का प्रस्ताव ठुकराया तो अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया। लेकिन किले के अंदर तक इनकी सेना नहीं पहुंच सकी। फिर अलाउद्दीन ने किले के अंदर जाने वाले रास्ते पर कब्जा कर लिया। इससे खाना अंदर नहीं पहुंच सका। भूख प्यास से प्रजा को मरते देख रतन सिंह ने अपने 9 पुत्रों के साथ अलाउद्दीन पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में रतन सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए। इसके बाद राजा की पुत्री मांडुला ने मां जगदंबा की उपासना की और वह भी धरती में लीन हो गई।
9 पुत्रों में इकलौती थी मांडुला
राजा रतन सिंह के नौ पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम मांडुला था, जो मां जगदंबा की उपासक थी। 13वीं शताब्दी में किले के अंदर जाने वाले राशन पर अलाउद्दीन ने कब्जा कर लिया तब मांडुला ने मां की उपासना की और उनसे प्रार्थना करते हुए कहा था कि मेरे कारण प्रजा भूख प्यास से मर रही है। इसलिए मां मुझे आप अपनी शरण में ले लो। मान्यता है कि जब यह प्रार्थना मांडुला ने की तो धरती उसी समय फट गई और जिसमें मांडुला समा गई। इसके बाद से ही लोग मांडुला देवी को ही मां जगदम्बा के रूप में पूजने लगे और यहां पर तब से ही मांडुला देवी की पूजा अर्चना शुरू हो गई थी।
बहन-भाई का अनूठा मंदिर
13वीं शताब्दी में मांडुला देवी के भाई कुंअर बाबा का भी समीप ही स्थान बना हुआ था। कहा जाता है यहां सर्पों का निवास था। मांडुला देवी के धरती के अंदर समा जाने के बाद यहां पर सिद्घि प्राप्त हुई कि सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति, पशु कोई भी हो, अगर उसे माता और कुंअर बाबा के नाम से बंध बांधते हैं तो वह ठीक हो जाता है, लगाए गए बंध को सिर्फ दीपावली की दौज पर ही खोला जाता है। मांडुला देवी और कुंअर बाबा भाई-बहन का यहां पर अनूठा मंदिर बना हुआ है, इसलिए दीपावली की भाईदौज पर यहां सामान्य दिनों की तुलना में अधिक भीड़ रहती है।