Navratra 2023: ग्वालियर, (नईदुनिया प्रतिनिधि) आदिशक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र कल से प्रारंभ होने जा रहा है। नवरात्र के पवित्र दिनों में मां की आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, मां का आशीर्वाद मिलता है। ग्वालियर और चंबल अंचल में आदिशक्ति के ऐसे मंदिर हैं, जो पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। यहां सिर्फ ग्वालियर और चंबल अंचल ही नहीं देशभर से श्रद्धालु नवरात्र में आते हैं। यहां मंदिरों के आसपास प्राकृतिक खूबसूरती मन मोह लेती है। यही वजह है- अब नवरात्र से धार्मिक पर्यटन बढ़ेगा। इसके चलते अब लोग ट्रेवल प्लानर से संपर्क कर रहे हैं। नवरात्र को लेकर लोगों ने बुकिंग करवा ली है।
देश की प्रसिद्ध शक्तिपीठ में शामिल पीतांबरा पीठ। ग्वालियर से 76 किलोमीटर दूर दतिया में स्थित पीतांबरा पीठ पूरे देश में प्रसिद्ध है। राजसत्ता की देवी मां बगलामुखी और मां धूमावती के प्रसिद्ध मंदिर यहां हैं। यह वह साधना स्थली है, जहां पूरे देश से श्रद्धालु आते हैं। यहां मां बगलामुखी और मां धूमावती के मंदिर के साथ ही महाभारत कालीन शिवलिंग स्थापित है, इसे वनखंडेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। ग्वालियर और चंबल अंचल में रहने वाले लोग सड़क मार्ग और रेल मार्ग से यहां पहुंच सकते हैं। ग्वालियर से महज डेढ़ घंटे में दतिया पहुंचा जा सकता है।
क्यों प्रसिद्ध:
मां बगलामुखी को राजसत्ता की देवी कहा जाता है। देशभर के दिग्गज नेता यहां दर्शन करने निरंतर आते रहते हैं। चुनाव के समय तो यहां राजनेता लगातार आते हैं, अनुष्ठान कराते हैं। मां बगलामुखी की आराधना करने से शत्रुओं से रक्षा होती है। यहां दर्शन करने के बाद यहीं से ओरछा में रामलला की आरती ली जा सकती है। यहां से ओरछा की दूरी करीब 50 किलोमीटर है।
कहां रुकें:
मंदिर में ही श्रद्धालुओं के रुकने के लिए आवास हैं, लेकिन नवरात्र में पूर्व से ही यहां बुकिंग रहती है। मप्र के अलग-अलग जिलों के अलावा उप्र, राजस्थान तक से लोग यहां आते हैं। नवरात्र में अनुष्ठान कराने के लिए यहां पूर्व से बुकिंग हो जाती है। मंदिर के आसपास और हाइवे पर होटल, रिसोर्ट बने हुए हैं।
दतिया जिला मुख्यालय से रतनगढ़ माता मंदिर की दूरी करीब 65 किलोमीटर है। यह दतिया जिले में ही पड़ता है। विंध्याचल पर्वत पर घने जंगलों के बीच स्थित रतनगढ़ माता मंदिर ग्वालियर ही नहीं पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां नवरात्र में मेला लगता है। रतनगढ़ माता मंदिर में ही कुंवर बाबा का मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है, जब अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था, तब रतनगढ़ पर कब्जा करने के लिए सेंवढ़ा से रतनगढ़ के लिए जाने वाले पानी को रोक दिया था। जिस परिसर में रतनगढ़ माता मंदिर बना है, वहां किला हुआ करता था। इस पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था। रतन सिंह की बेटी मांडूला धरती में समा गई थीं, उन्हें ही रतनगढ़ माता के नाम से पूजा जाता है। ग्वालियर और दतिया से सीधे सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। जो लोग बाहर से आते हैं, वह ग्वालियर और दतिया तक ट्रेन से फिर यहां से सड़क मार्ग से जा सकते हैं।
क्यों प्रसिद्ध:
मान्यता है- कुंबर जब जंगल में जाते थे तो सभी विषैले जानवर, जीव अपना विष निकाल देते थे। इसलिए जब भी सांप या अन्य कोई जहरीला कीड़ा काट लेता है तो कुंबर बाबा के नाम का बंध लगाया जाता है। दीपावली और होली के बाद दौज को यहां बंध खाेले जाते हैं। जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
Navratra 2023:
रतनगढ़ में रुकने की व्यवस्था नहीं है। इसलिए ग्वालियर और दतिया में रुकने की व्यवस्था करनी होगी। ऐसा कहा भी जाता है- रात को कोई बाहरी व्यक्ति यहां नहीं रुकता।
लखेश्वरी मंदिर
ग्वालियर के भितरवार ब्लाक में स्थित यह मंदिर कभी डकैतों की देवी के नाम से जाना जाता था। लखेश्वरी मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है। यह ग्वालियर से करीब 75 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए ग्वालियर से आरोन, रानीघाटी होते हुए जाया जा सकता है। ग्वालियर से करीब 75 किलोमीटर दूर इस मंदिर पर पूरे साल श्रद्धालु आते हैं। यहां मंदिर में माता के दर्शन के साथ ही ट्रैकिंग, वर्ड वाचिंग, वन्यजीव फोटोग्राफी के शौकीन लोग भी यहां आते हैं।
शीतला माता मंदिर
ग्वालियर के सांतऊ गांव में स्थित यह मंदिर, जहां डकैत भी सिर झुकाया करते थे। सांतऊ और आसपास के गांव में डकैतों का आतंक था, शीतला माता मंदिर पर अक्सर डकैत घंटा चढ़ाने आया करते थे। कहते हैं- यहां डकैत आते थे, लेकिन कभी भी मंदिर आने वाले लोगों के साथ लूटपाट नहीं की। ग्वालियर और चंबल अंचल के लोग नवरात्र के पहले दिन से ही यहां पैदल जाते हैं। सप्तमी पर यहां मेला लगता है।