Motimahal Museum in Gwalior: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। मोतीमहल स्थित नगर निगम का म्यूजियम अब नए स्वरूप में नजर आएगा। 121 साल पुराने इस म्यूजियम का अब 10 करोड़ रुपए की लागत से विस्तार किया जाएगा। सैलानियों के लिए नई गैलरियां तैयार करने के साथ ही इमारत में कई बदलाव किए जाएंगे। इसके अलावा यहां संग्रह को भी बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए नगर निगम द्वारा विरासतों का संरक्षण करने वाली एक्सपर्ट एजेंसी भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृति विरासत ट्रस्ट (इंटेक) की सहायता ली जाएगी। इंटेक जल्द ही म्यूजियम के पुनर्विकास और विस्तार की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर काम शुरू करेगा। विस्तार के तौर पर मोतीमहल स्थित क्षेत्रीय कार्यालय क्रमांक 13 काे भी म्यूजियम में मिलाया जाएगा। इस कार्य के लिए स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन द्वारा बजट प्रदान किया जाएगा। इस म्यूजियम के पुनर्विकास के लिए वर्ष 2019 में परिषद से ठहराव भी पारित किया गया था और इंटेक के माध्यम से कार्य कराने के लिए कहा था। इसी को देखते हुए अब दोबारा से इंटेक से संपर्क कर म्यूजियम का नया प्लान तैयार कराया जाएगा।
-नगर निगम म्यूजियम में सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र है नक्षत्र तारा का टुकड़ा। इसको उल्कापिंड भी कहते हैं। यह 30 मार्च, 1943 को भिंड जिले के गरोली गांव के पास तेज आवाज व वेग के साथ गिरा था। यह जमीन के अंदर ढाई फीट तक नीचे चला गया था। इसको बाद में निकाला गया था।
-इस म्यूजियम में रानी लक्ष्मीबाई के हथियार भी मौजूद हैं, जिन्हें वो युद्ध के दौरान प्रयोग करती थीं। इसमें उनकी तलवार, कृपाण, कटार, भाला, ढाल सहित अन्य हथियार शामिल हैं। इसके अलावा स्टेट टाइम के हथियार जिनमें छोटी तोप, लंबी नलीदार बंदूकें, लकड़ी के तीर आदि सहित लगभग सैकड़ों हथियारों को भी यहां देखा जा सकता है।
-नगर निगम म्यूजियम में ऐसा बर्तन मौजूद है, जिसमें खाना डालते ही पता लग जाता है कि यह खाना जहरीला तो नहीं। इस बर्तन में खाना डालते ही यदि उसमें जहर है तो बर्तन अपना कलर चेंज कर देता है। इसके अलावा यहां स्टेट टाइम के सिक्के, सिंहासन हस्तलिखित महाभारत सहित अन्य पुस्तकें भी मौजूद हैं जो लोगों को आकर्षित करती हैं।
-म्यूजियम में शहर की सबसे पहली मोटर कार, अकबर की दोमुंही तलवार, 765 प्रिजर्व पशु-पक्षी और जानवरों की प्रजातियों की खालें व आजादी के पहले और बाद के अखबार खास हैं।
यह ऐसा म्यूजियम है जिसका नाम तीन बार बदला जा चुका है। वर्ष 1902 में जब यह संग्रहालय बना था, तो यह स्टेट म्यूजियम के नाम से जाना जाता था। बाद में वर्ष 1922 में इसको नगर निगम के सुपुर्द कर दिया गया, तब इसे विचित्रालय के नाम से जाना जाने लगा। फिर सन 1980 में इसका नाम संग्रहालय रखा गया। इसके बाद यहां कुछ ऐसी दुर्लभ वस्तुओं को रखा गया, जिनके बारे में जानकर सैलानी रोमांचित हो जाते हैं।