Jhulelal Mahotsav 2022: ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। भारत-पाक विभाजन का दर्द कोई नहीं मिटा सकता है। विभाजन के कारण कई परिवार को क्रूरता भरे माहौल से गुजरकर पाकिस्तान से ग्वालियर आना पड़ा था। जब वे पाकिस्तान से चले थे तब अपने साथ धार्मिक संस्कृति भी लेकर आए थे। इनमें से एक है पवित्र ज्योति, जो आज भी 75 साल के बाद दानाओली स्थित झूलेलाल मंदिर परिसर में निरंतर प्रज्वलित है।
सिंधी समाज के लोग ज्योति को पाकिस्तान से अपनी चल-संपति के साथ कारोबार को छोड़कर आस्था और विश्वास के साथ ग्वालियर लाए थे। विभाजित पाक में स्थित सिंध से आए सिंधी समाज ने भले ही हालातों की वजह से अपनी जमीं छोड़ी, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि मारकाट और झगड़े के शांत होते ही वे अपनी जन्मभूमि पर वापस लौट जाएंगे। फिर से अपना व्यवस्थित कारोबार शुरू कर सकेंगे। उनकी यह सोच गलत निकली। वे अपने मुल्क वापस नहीं लौट पाए, इसलिए उन्होंने अपने जीवन की नई पारी की शुरुआत ग्वालियर में की। जिस ज्योति को वे भगवान झूलेलाल की जन्मस्थली से लेकर आए थे, वह आज भी प्रज्वलित है।
नीम के पेड़ पर लटका दी थी पवित्र ज्योतिः दानाओली के झूलेलाल मंदिर के सेवादार विजय लुधियानी ने बताया हमारे बुर्जुग बताते थे कि जब हम लोग घर-द्वार छोड़कर अपनी जन्मस्थली से चले तो भगवान झूलेलाल की अंखड ज्योति को साथ लेकर आए थे। यहां हमारे पास अपना घर द्वार तो था नहीं, इसलिए दानाओली में एक नीम के पेड़ पर इस पवित्र ज्योति को रख दिया। धीरे-धीरे वक्त गुजरने लगा। छोटे-मोटे काम कर हमारे बुजुर्ग अपना भारण-पोषण करने लगे। आज अपनी महेनत और परिश्रम से सिंधी समाज के कई लोग बड़े उद्योगपति व व्यापारी हैं। भगवान झूलेलाल की कृपा से कुछ लोगों के काम-धंधा चलने लगा। इसके बाद उसी पेड़ के नीचे पहले छोटा भगवान झूलेलाल मंदिर समाज के लोगों के साथ मिलकर बनाया। यह ज्योति आज भी यहां प्रज्वलित है। सिंधी समाज के लोगों की आस्था और विश्वास का केंद्र है। सिंधी समाज के कुछ लोग इस बाहिराणे साहिब की ज्योति के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। दानाओली के अलावा माधवगंज में स्थित झूलेलाल मंदिर व लाला के बाजार में स्थित रामदास मंदिर में यह पवित्र ज्योति प्रज्वलित है। यह ज्योति पीतल के दीपक में प्रज्वलित है। इस दीपक में प्रतिदिन आधा लीटर के लगभग तेल भरा जाता है। 1947 से यह अखंड ज्योति आज तक प्रज्वलित है।