Iron Ore in Gwalior: वरुण शर्मा ग्वालियर. काले और फर्शी पत्थर को लेकर ख्यात ग्वालियर-चंबल संभाग में लौह अयस्क का भंडार भी है। पुरानी छावनी के अकबरपुर में 225 हेक्टेयर क्षेत्र में मिले लौह अयस्क के भंडार के बाद अब नया भंडार शीतला माता मंदिर के बगल वाली पहाड़ी पर मिला है। यहां भौमिकी और खनिकर्म संचालनालय के अफसरों को सर्वे में फारेस्ट पहाड़ी की चट्टानों में लौह अयस्क मिला है। इसमें 10 हेक्टेयर का प्रस्ताव बनाकर भोपाल भेज दिया गया है। खास बात यह कि यहां जिस पहाड़ी में लौह अयस्क बताया गया है, वह अच्छी ग्रेड का है। अब भोपाल की टीम यहां जांच करेगी। ग्वालियर में इससे पहले दो और खदानें लौह अयस्क की आवंटित हैं, जिसमें एक बंद है।
यहां बता दें, ग्वालियर में पुरानी छावनी के अकबरपुर इलाके में लगभग 225 हेक्टेयर में लौह अयस्क सर्वे में सामने आया था। यह अच्छी ग्रेड का लौह अयस्क था, जिसके सैंपल भोपाल भेज गए थे। लौह अयस्क निकालने के लिए प्रस्ताव भी तैयार किया गया, लेकिन आबादी क्षेत्र होने से टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की एनओसी नहीं मिली थी। इससे यह प्रस्ताव खारिज किया गया। इसके बाद अब सर्वे में शीतला माता मंदिर के बगल वाली पहाड़ी पर लौह अयस्क का भंडार पता लगा है।
यहां पहले से लौह अयस्क
द्यग्वालियर जिले में लौह अयस्क की दो खदानें हैं, जिसमें एक पनिहार में है। इसका काम फिलहाल बंद है। यहां जो इन खदानों में खनन किया जा रहा है, उनमें एफई कंटेंट यानि ज्यादा लोहा है। यह भी पांच से दस हेक्टेयर रकबे की खदानें हैं, जिन्हें खनिज विभाग की निगरानी में चलाया जाता है।
ग्वालियर का क्षेत्र पथरीला: यहां फर्शी-काला पत्थर
द्यग्वालियर के भू-भाग में फर्शी पत्थर और काला पत्थर है। यही कारण है यहां काफी संख्या में पत्थरों की खदानें हैं। स्थानीय स्तर पर पत्थरों का उपयोग भी निर्माण कार्यों में किया जाता है। फर्शी पत्थर खदानों से कटिंग होने के बाद बाहर भी सप्लाई किया जाता है। अब ग्वालियर में पत्थर से रेत का स्कोप भी बढ़ रहा है। इसके लिए खनिज विभाग के पास लगातार आवेदन आ रहे हैं।
शीतला माता मंदिर के पास वाली फारेस्ट पहाड़ी पर लौह अयस्क का भंडार मिला है। यह उच्च श्रेणी का लौह अयस्क है, जिसके सैंपल लेकर जांच की गई है। 10 हेक्टेयर का प्रस्ताव भोपाल भेजा गया है। अब भोपाल की टीम जांच करेगी। यहां पहले अकबरपुर क्षेत्र में 225 हेक्टेयर क्षेत्र में लौह अयस्क का भंडार मिला था, लेकिन आबादी क्षेत्र होने के कारण एनओसी नहीं मिली थी।
संतोष पटले, संभागीय प्रभारी, भौमिकी एवं खनिकर्म संचालनालय