International Family Day: ग्वालियर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। संयुक्त परिवारों को केंद्र में रखकर हिंदी सिनेमा जगत की बेहद सफल फिल्मों, हम साथ-साथ हैं और हम आपके हैं कौन, को तीन दशक से अधिक का समय हो गया लेकिन इन्हें देखकर आज भी मन में ऐसे ही परिवारों की कल्पना की जाती है। निजता और स्पेस की चाहत में भले ही शहरों में एकल परिवारों का चलन बढ़ा लेकिन दुश्वारियां भी साथ-साथ बढ़ी। ऐसे में संयुक्त परिवारों की महत्ता को बल मिला। क्योंकि संयुक्त परिवार मतलब एक छत के नीचे सुख-दुख के साथी। जहां रहने वाला व्यक्ति कभी दुख के समय खुद को अकेला नहीं पाता है। उसके साथ पूरा परिवार खड़ा होता है। ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस 15 मई’ पर नईदुनिया ने शहर के ऐसे ही संयुक्त परिवारों को टटोला। इनका कहना है कि हमें एक साथ रहकर हिम्मत मिलती है और हर मुसीबत से लड़ने की ताकत।
गंगवाल परिवार शहर का प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार है। इस परिवार की खूबसूरती यही है कि यह परिवार पीढ़ियों से संयुक्त है। घर और व्यापार सबकुछ संयुक्त रूप से चलता है। परिवार के सदस्य प्रशांत गंगवाल बताते हैं कि उनके परिवार में सभी निर्णय उनके काका यानी वीरेन्द्र गंगवाल लेते हैं। जब पिताजी थे तब भी काका ही निर्णय लेते थे। 50 वर्षीय गंगवाल बताते हैं कि उनके लिए माता-पिता का स्नेह हमेशा काका से ही मिला है। व्यापार में किसे क्या करना है, सबके दायित्व बंटे हैं। हर शाम हम लोग एक साथ जरूर बैठते हैं और पूरे दिन की दिनचर्या पर चर्चा करते हैं। निर्णय मिलकर ही लेते हैं। क्योंकि मेरा परिवार ही मेरी ताकत है और उसकी छांव में खुद को सुरक्षित महसूस करता हूं।
दीवान परिवार शहर का प्रतिष्ठित परिवार है। इस परिवार से करीब आधा सैकड़ा लोग डाक्टर बने, जो देश के अलग-अलग कोने में यहां से पहुंचकर बस गए। लेप्रोस्कोपी सर्जन डा़ अमित दीवान बताते हैं कि अभी छह डाक्टर तो हम एक साथ ही पुस्तैनी मकान में रहते हैं। जिसमें मेरे माता-पिता और हम दोनों भाई, जबकि मेरे चार चाचा हैं जो सभी डाक्टर हैं पर यह सभी दिल्ली में बस गए हैं और उसमें से दो लोगों का देहांत भी हो चुका है। मेरे परिवार में आधा सैकड़ा डाक्टर बन चुके हैं। आज भी चाचा-चाची यहां आते हैं तो हम लोग उसी पुराने घर में रहते हैं, क्योंकि हम लोगों में किसी तरह का कोई बंटवारा नहीं है, बल्की पूरा संयुक्त परिवार है। संयुक्त परिवार हमें एक दूसरे का फिक्रमंद बनाता है और एक दूसरे के प्रति स्नेह और प्रेम जगाता है। संयुक्त परिवार में काफी सारी परेशानियां अपने आप ही दूर हो जाती हैं।
परिवार के सदस्यों के साथ एक छत के नीचे रहना बहुत ही सुखद है, ईश्वर की कृपा जैसा प्रतीत होता है। यह कहना है मुरार के प्रसिद्ध व्यवसायी महेश चंद जैन के बड़े बेटे मणीन्द्र जैन का। उन्होंने बताया कि हमारे पिताजी ने उनने पिता स्व.श्रीलाल जैन के दिए गए संस्कारों को हमारे माध्यम से आगे बढ़ाया है। आज मैं और मेरा छोटा भाई अजय जैन अपने पिता महेश चंद और मां प्रभा जैन के साथ ही रहकर अपना व्यवसाय कर रहे हैं। पिताजी आज भी हमारी हर एक परेशानी में मार्गदर्शन करते हैं। परिवार में मेरी पत्नी मनीषा, छोटे भाई की पत्नी प्रीति जैन, पुत्र यश जैन, पुत्री तान्या जैन, भतीजी तनिष्का, अनुष्का और भतीजे ईशान हैं, जो खुशी-खुशी एक साथ रहते हैं।
संयुक्त परिवार सदैव ही महत्वपूर्ण रहे हैं। इनमें संस्कार पूर्वजों से बच्चों में स्वत: ही आ जाते थे। देखा जाए तो कोई भी परिवार अपने आप एकल नहीं हुआ है, कहीं न कहीं काम नौकरी, पेशा, शिक्षा इसके बड़े कारण रहे हैं। अब तो बाहरी देश भी संयुक्त परिवार की ओर जा रहे हैं। ऐसे में हमको भी इसकी अहमियत समझना चाहिए। हां, यह जो नवसंयुक्त परिवार का कांसेप्ट आया है जिसमें एक ही बिल्डिंग के अलग अलग तलों पर परिवार के सदस्य रहते हैं यह गलत है। संयुक्त परिवार का अर्थ ही सबका भोजन एक ही रसोई में बने और प्रेम से साथ में भोजन किया जाए।
-प्रो. आयुब खान, समाजशास्त्री