अजय उपाध्याय. नईदुनिया ग्वालियर। भारतीय नागरिक के लिए अहम दस्तावेज में शामिल पासपोर्ट भारत के किसी भी कोने में आसानी से बनवा सकते होंगे, लेकिन ग्वालियर में यह भूल जाइये। पासपोर्ट के लिए निर्धारित फीस आपको अनिवार्य तौर पर देनी ही है, लेकिन यहां पासपोर्ट केंद्र पर मुसीबतें निश्शुल्क मिलेंगी। मामला हैरानी भरा है पर हकीकत यही है। शहर के बीच बाजार में "पर्वत" पर स्थित पासपोर्ट सेवा केंद्र में पासपोर्ट बनवाना किसी सजा से कम नहीं है, क्योंकि भीषण गर्मी में जहां पारा 46 डिसे पार कर चुका है, वहां पासपोर्ट सेवा केंद्र में ना तो पीने के लिए पानी है और न ठंडी हवा, है तो बस परेशानियों का अंबार।
पासपोर्ट बनवाने के लिए भीड़भाड़ वाले बाजार से होकर आपको महाराज बाड़ा तक पहुंचना होता है जहां वाहन पार्किंग भी नहीं है, यदि वाहन पार्क भी कर लें तो फिर पोस्ट आफिस तक पहुंचने के लिए फुटपाथ पर सामान बेचने वालों से बचते बचाते निकलना होगा, जो रास्ता रोके बैठे है। डाकघर पर पहुंचने पर चुनौती है वहां की 13 सीढ़ियां जिन्हें चढ़ने में बुजुर्ग तो हांफने लगते ही हैं बल्कि गोद में बच्चा लेकर चढ़ने पर लोगों का तो पसीना छूट जाता है। दिव्यांग तो कितनी यातना सहते होंगे, इसका अहसास ही किया जा सकता है। इन परेशानियों को लेकर नईदुनिया का अभियान पीड़ितों की आवाज उठाएगा। मांग एक ही है कि मुसीबत का यह पासपोर्ट केंद्र शिफ्ट किया जाए, क्योंकि यहां मुख्य डाकघर के जिस बरामदे को प्रतीक्षा कक्ष बनाया है, उसमें रखी लोहे की गर्म कुर्सी पर बैठना होता है, इधर छत से लटके दो पंखे गर्म हवा फेंक रहे होते हैं। शायद इस विषय में जिम्मेदार सोचना ही भूल गए और अंचल के आवेदकों को उनके हाल पर छोड़ दिया।
46.7 डिग्री तापमान पर जब नईदुनिया ने रीयलटी चेक किया तो वहां का दृश्य असहज करने वाला था। देखकर कहा जा सकता था यह सेवा केंद्र नहीं बल्कि यह एक "प्रताड़ना" केंद्र है, क्योंकि वहां पर सुबह साढ़े 11 बजे दो साल की बेटी नैना के साथ शिवपुरी से आईं एडवोकेट सरिता और उनके पति डा. अरविंद करोड़िया के दस्तावेज सत्यापन का काम दोपहर तीन बजे पूरा हुआ। इस बीच गोदी में खेल रही दो साल की नैना का बिलख-बिलखकर बुरा हाल हो गया। उन्हें तरस खाकर स्टाफ ने अंदर कूलर की हवा में दोपहर ढाई बजे बैठाया, तब जाकर उन्हें राहत मिली। लेकिन यह सुविधा हर समय हर किसी को नहीं मिल सकी। वहीं दूसरी ओर कमल भाटिया को दस्तावेजों की फोटो कापी कराने के लिए भागदौड़ करनी पड़ रही थी, तो वहीं 50 साल की मुमताज बेगम जब दोपहर 12.30 बजे पोस्ट आफिस के बरामदे में पहुंची तो वह पसीने से लथपथ थीं। तीन बजे तक वह बिना पानी के अपनी बारी का इंतजार करती रहीं। पीने के लिए पानी की बोतल खरीदने के लिए फिर 13 सीढ़ियां और फुटपाथियों के बीच से होकर गुजरना पड़ता। अत: उन्होंन बैठे रहना ही उचित समझा। वहीं संतोष यादव का यही हाल होते दिखाई दिया है। बरामदे में बने प्रतीक्षा कक्ष में जो आवेदक बैठे थे उनके चेहरे पर थकावट और गर्मी का प्रकोप साफ दिखाई दे रहा था।
ग्वालियर मुख्य पोस्ट आफिस पासपोर्ट सेवा केंद्र में एक महीने की वेटिंग चल रही है, जो प्रदेश में सर्वाधिक है, क्योंकि इतनी लंबी वेटिंग प्रदेश के किसी भी शहर में नहीं है। उसका कारण है कि ग्वालियर चंबल अंचल के सात जिलों का भार इस पोस्ट आफिस के पासपोर्ट सेवा केंद्र पर है।
महाराज बाड़ा शहर का सबसे व्यस्ततम स्थान। जहां पर वाहन रेंग-रेंगकर निकलते हैं। चार पहिया वाहन चालक को यहां तक पहुंचने में ही कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। किसी तरह से बाड़े पर पहुंच भी जाएं तो पार्किंग में वाहन पार्किंग के लिए जगह मिलना मुश्किल है। किसी तरह से आप पासपोर्ट सेवा केंद्र में पहुंच भी गए तो वहां पर ढाई सौ फीट में चल रहा सेवा केंद्र में दस्तावेज सत्यापन के लिए घंटों का इंतजार।
पोस्ट आफिस पासपोर्ट सेवा केंद्र सुविधा जनक हो, लेकिन महाराज बाड़े स्थित पोस्ट आफिस में इतनी जगह नहीं है कि पासपोर्ट सेवा केन्द्र का विस्तार किया जा सके। विस्तार की प्रक्रिया जगह की कमी के कारण पिछले छह माह से अटकी हुई है। ऐसी स्थिति में पासपोर्ट सेवा केंद्र को किसी ऐसे स्थान पर ले जाया जाए, जहां पर वाहन पार्किंग की उचित व्यवस्था हो, बीच बाजार से न गुजरना पड़े, दिव्यांग फ्रेंडली हो।