Gwalior Moti Mahal News: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। ग्वालियर में सिंधिया रियासतकालीन दौर में तैयार किया गया मोतीमहल सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। मोतीमहल का निर्माण 19वीं शताब्दी में सिंधिया घराने के जयाजीराव सिंधिया ने कराया था। यह सिंधिया रियासत का सचिवालय था। वे मोती महल के अंदर बने दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास में सामंतों के साथ बैठकें किया करते थे और रियासत की रीति-नीति तय होती थी।
मोती महल के अंदर दरबार हाल के पास बने इस मंत्रणा कक्ष की खूबसूरती इतनी है कि बस देखते ही लोग मंत्रमुग्ध हो जाएं। कहा जाता है कि दीवारों पर बनी कला कृतियों पर असली सोने का पानी चढ़ा है। यूं तो मोती महल का इतिहास अपने आप में बेहद खास है। देश स्वतंत्र होने के बाद मध्य प्रदेश से पहले मध्य भारत प्रांत अस्तित्व में आया। इस प्रांत की राजधानी ग्वालियर और इंदौर को बनाया गया। इसमें साढ़े छह महीने ग्वालियर और साढ़े पांच महीने इंदौर में विधानसभा चलती थी।
ग्वालियर के जिस मोतीमहल के दरबार हाल में विधानसभा लगती थी, वह बेहद खूबसूरत होने के साथ ही दीवारों पर बनीं कलाकृतियां के कारण आकर्षक लगता है। आज हम दरबार हाल के साथ ही बने मंत्रणा कक्ष में बने चार स्तम्भों पर बनाई गई आकर्षक कलाकृतियों के बारे में बात कर रहे हैं। आप भी जानिए..
चित्रकारी में पहनावा और गहने मराठा कालीन स्तंभों पर बने चित्रों में नजर आने वाले उनके वस्त्र और पहनावा उस समय की मराठा कालीन संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। चित्रों में दिखाए गए विषय के पहनावे में उनके वस्त्र, आभूषण और पृष्ठभूमि मराठा काल के समय को बताती नजर आती है। चित्रों के चारों ओर कांच की जड़ाऊ कला के काम से उन्हें और भी अधिक आकर्षक बना दिया है। इन चित्रों की चमक देखकर डेढ़ सौ साल बाद भी यह हाल ही में उकेरी हुई कलाकृतियों की तरह ही नजर आते हैं।
इन सभी कलाकृतियों के संबंध में केआरजी कालेज की चित्रकला विभाग की प्राध्यापक डा. कुमकुम माथुर ने विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए बताया कि यह सभी स्तंभों पर बनाई गई कलाकृतियों में खनिज व वनस्पति रंगों का उपयोग किया गया है। जो देखने में अनूठी कला को प्रदर्शित करती हैं। यह सभी भित्ति चित्र अपने आप में कई कला शैलियों का संगम है। कई चित्रों में यूरोपीय विदेशी कला नजर आती है, तो कहीं लोक शैली में चितेरा कला का प्रभाव नजर आता है। कुछ चित्र राजस्थान और तंजौर शौली में बने दिखते हैं। डा. कुमकुम माथुर बताती हैं कि इन चित्रों की बनावट को देखकर प्रथम दृष्ट्या कलाकारों की अकुशलता नजर आती है। इसके बावजूद भी शैली प्रभाव व लोक कलाओं की अभिव्यक्ति से यह अपने चित्रों में विषय को समझाने में सफल रहे हैं।
अधिकतर चित्रों में तैलीय रंगों का उपयोग भी दिखाई देता है।
प्रथम स्तंभ: कक्ष के प्रथम स्तंभ पर पर कैलाश पर्वत की पृष्ठभूमि पर शिव परिवार को बहुत ही आकर्षक रूप से बनाया गया है, जिसमें भगवान शिव के साथ माता पार्वती और उनकी गोद में बाल गणेश को बैठे हुए दिखाया गया है। उनके साथ शिव के वाहन नंदी, माता पार्वती के वाहन शेर और गणेश का वाहन मूषक की उपस्थिति भी चित्र को परिपूर्ण करती प्रतीत होती है।
द्रितीय स्तंभ: कक्ष के दूसरे स्तंभ पर भगवान राम के साथ माता सीता को राजमहल में विश्राम की मुद्रा में दिखाया गया है। सिंहासन के पीछे लक्ष्मण जी उन्हें पंखा झलते नजर आ रहे हैं और जमीन पर भक्त हनुमान को सेवक के रूप में बैठे हुए रेखांकित किया गया है।
तृतीय स्तंभ: कक्ष के तीसरे स्तंभ पर माता गंगा की खड़ी प्रतिमा बनाई गई है। जो अपने हाथों में कलश लिए हुए दिखाई गई हैं। माता गंगा के चित्र में देवी गंगा का वाहन मगरमच्छ भी है। माता गंगा को सभी नदियों में सबसे पवित्र माना गया है।
चतुर्थ स्तंभ: कक्ष के चतुर्थ स्तंभ पर भगवान श्रीकृष्ण को बांसुरी की तरह ही बिगुल बजाते प्रदर्शित किया गया है। उनके साथ राधा जी ध्यान मग्न होकर वाद्य यंत्र की मधुर धुन को सुनते नजर आ रही हैं।