Gwalior Lok Sabha Chunav: जोगेंद्र सेन, ग्वालियर। वर्ष 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय राजनीति के सर्वमान्य नेता व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति में फंसा लिया। अटलजी की हार की कल्पना तो किसी को नहीं थी लेकिन कांग्रेस ने अटलजी को चुनावी जाल में फंसाकर पांसा पलट दिया।
अटलजी ने अपने पैतृक संसदीय क्षेत्र ग्वालियर से चुनाव लड़ने का फैसला किया। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नामांकन दाखिल करने के अंतिम दौर में पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से नामांकन पत्र भरने ग्वालियर भेज दिया।
माधवराव उस समय तक गुना से प्रत्याशी थे। चुनावी लड़ाई कठिन हो गई। अटलजी के सामने इतना भी समय नहीं बचा था कि ग्वालियर जिला मुख्यालय से महज 80 किमी की दूरी पर स्थित भिंड संसदीय क्षेत्र से दूसरा नामाकंन दाखिल कर सकें। नतीजा चुनाव फंस गया।
इस ऐतिहासिक चुनाव के साक्षी उम्रदराज भाजपा नेताओं ने बताया कि अटलजी ने ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने से पहले माधवराव सिंधिया से चर्चा की थी। माधवराव ने उन्हें बताया था कि वे अपने परंपरागत गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से ही चुनाव लड़ेंगे।
उनका ग्वालियर से चुनाव लड़ने से कोई इरादा नहीं है। अटलजी के माधवराव सिंधिया से बात करने का मूल कारण था कि वह नहीं चाहते थे कि संगठन के लिए समर्पित राजमाता विजयाराजे सिंधिया पुत्र व संगठन को लेकर किसी धर्मसंकट में फंसे।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की बागडोर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हाथ में आ गई थी। कांग्रेस के रणनीतिकार भी बदले हुए थे। अटलजी देशभर में चुनाव प्रचार के लिए नहीं निकल सके, उन्हें उनके क्षेत्र में उलझाने की नीयत से ऐन वक्त पर राजीव गांधी ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से नामांकन दाखिल करने को कहा। माधवराव सिंधिया के पहली बार ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरते हुए मुकाबला संघर्षपूर्ण हो गया। ग्वालियर से अटलजी का यह दूसरा चुनाव था। समूचे राष्ट्र की नजरें ग्वालियर संसदीय क्षेत्र पर टिक गईं।
चुनाव प्रचार के अंतिम दिन दोनों ही उम्मीदवारों ने चुनावी सभा की। वर्तमान ऊंट पुल (जिंसी नाला नंबर-एक) चौराहे पर भाजपा की चुनावी सभा में अटलजी के साथ राजमाता विजयाराजे सिंधिया भी मौजूद थीं। राजमाता के भाषण के अंतिम शब्द थे कि एक तरफ सपूत है, तो दूसरी तरफ पूत, अब फैसला आप लोगों को करना है। इन्ही शब्दों ने चुनाव का पांसा पलट दिया। अटलजी हार गए और उसके बाद कभी ग्वालियर से कोई चुनाव नहीं लड़ा।