Gwalior Achaleshwar Mahadev News: ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि) नगरवासियों की आस्था का केंद्र अचलेश्वर मंदिर लंबे समय से अव्यवस्थाओं का शिकार है। प्रतिदिन साढ़े तीन से चार हजार श्रद्धालु अचलनाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं, लेकिन मंदिर के चारों तरफ फैली गंदगी और अव्यवस्थाओं के देखकर उनका मन भी दुखी हो जाता है। मंदिर में प्रति माह लगभग चार लाख का चढ़ावा आता है।
सफाई व्यवस्था के नाम पर केवल छह हजार रुपये वेतन पर एक सफाई कर्मचारी है, जो केवल सुबह-शाम मंदिर के बाहर सड़क पर झाड़ू लगाता है। गर्भगृह की सफाई दर्शन करने के लिए आने वाले श्रद्धालु करते हैं। हालत इतने खराब है कि मंदिर श्रद्धालु के पेयजल की व्यवस्था के लिए दो सार्वजनिक प्याऊ हैं। इन प्याऊ के चारों ओर गंदगी देखकर श्रद्धालुओं प्यास लगने पर जल ग्रहण करना तो दूर हाथ धोने तक नहीं पहुंचते हैं। ट्रस्ट का गड़बड़ियों का मामला कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण मंदिर की व्यवस्था का दायित्व जिला प्रशासन के हाथों में है। मंदिर की व्यवस्थाओं में सुधार की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है।
प्याऊ नंबर एक: जीवाएमसी की दीवार से लगी मंदिर की एक सार्वजनिक प्याऊ है। इस प्याऊ पर वाटर कूलर भी लगा है। यहां श्रद्धालुओं के पेयजल के लिए तीन नल लगे हैं। गर्मी शुरू हो गई है। प्याऊ के नलों के नीचे गुटखा भरा पड़ा है। इस कारण लोगों की पानी पीना तो दूर हाथ धोने तक की इच्छा नहीं होती है। प्याऊ के नीचे नाली भी ठस-ठस भरी हुई है। चाय के खाली गिलास पड़े हैं। नाली से उठती दुर्गंध के कारण इसके पास से निकलना भी मुश्किल है। इसकी सफाई भी कभी-कभार होती है। लोग भी इसी में कुल्ला कर गुटखा थूककर असभ्य होने का परिचय देते हैं।
प्याऊ नंबर दो: यह प्याऊ एमएलबी कालेज के गेट की तरफ मंदिर के ट्रस्ट के आफिस से लगी है। इस की नाली झूठे भोजन से भरी हुई है। इसमें से दुर्गंध आ रही है। प्रसाद वितरण का स्थान: श्रद्धालुओं की मदद से प्रतिदिन गरीबों को सुबह का नाश्ता व दोपहर का भोजन वितरण किया जाता है। भोजन (प्रसाद) का वितरण किया जाता है। टेबिलों के पास भोजन गिरकर जम गया है। किंतु कई दिनों से इसे साफ नहीं किया गया है।
जल चढ़ने के लिए दो नल: भगवान अचलनाथ का जल अभिषेक करने के लिए कुछ श्रद्धालु नियमित अपना लोटा लेकर आते हैं। इन श्रद्धालुओं की शुद्ध जल की व्यवस्था के लिए दो नल लगे हैं। इन दोनों नलों के आसपास भी कई दिनों से सफाई नहीं हुई है। चारों तरफ काई जमी हुई है। कोई भी श्रद्धालु फिसलकर दुर्घटना का शिकार हो सकता है। चलनाथ महादेव का श्रद्धालु प्रतिदिन दूध, दही, घी, शहद व गंगाजल से अभिषेक करते हैं। पंचामृत सीधे एक नाली के माध्यम से सीवर में जाता है। गर्मी के मौसम से दूध-दही की सड़ांध से पूरा मंदिर में दुर्गंध फैलती है। किंतु आज तक पंचामृत के निकासी की समूचित व्यवस्था किसी ने नहीं की है।
दो टूटी-फूटी डस्टबिन: गर्भगृह के बाहर दो टूटी-फूटी छोटी-छोटी स्टील के डस्टबिन रखे है। प्रतिदिन तीन से चार हजार श्रद्धालु आते हैं। डस्टबिन नहीं होने के कारण प्रसाद बांटने के बाद थैली व अन्य कचरा मंदिर के बाहर सड़क पर फैकने के लिए मजबूर होते हैं।
चार लाख की चढ़ौत्री प्रतिमाह आती है: मंदिर के लेखापाल ने बताया कि प्रतिमाह चार लाख रुपये से अधिक की चढ़ौत्री आती है। मंदिर की व्यवस्था के लिए कुल 28 कर्मचारी हैं। डेढ़ लाख रुपये के लगभग की राशि इनके वेतन पर खर्च होती है। शाम के समय 50 से 100 रुपये प्रसाद के लिए खर्च किए जाते हैं। बिजली के बिल के अलावा और मंदिर का खर्चा नहीं है।
बड़े-बड़े मंदिरों में साफ-सफाई का ठेका दिया जाता है: उज्जैन का महाकाल मंदिर हो, अन्य कोई बड़ा मंदिर। हर मंदिर की समुचित साफ- सफाई का ठेका दिया जाता है। किंतु इतने बड़े मंदिर में सफाई कर्मचारी के नाम पर एक कर्मचारी है। वहां केवल मंदिर के सड़क के बाहर की झाडू लगाता है। यहां तो झाड़ू नगर निगम के कर्मचारी भी लगाते होंगे।