Gwalior smart city News: ग्वालियर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शहर में स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन द्वारा साढ़े चार करोड़ रुपये की लागत से तैयार कराए गए 10 स्मार्ट टायलेट के उपयोग में चिल्लर की उपलब्धता बाधा बन रही है। यदि आपके पास दो या पांच रुपये का सिक्का नहीं है, तो आप लाख इमरजेंसी के बावजूद इन टायलेट का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। यही कारण है कि जिन लोगों के पास खुल्ले पैसे नहीं हैं, वे इन टायलेट का इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे लोगों को इन टायलेट के नजदीक बने कैफे या अन्य दुकानों से पैसे खुल्ले कराने के लिए घूमना पड़ रहा है।
इसके अलावा टायलेट का उपयोग करने के बाद मशीन में इकट्ठी हो रही चिल्लर फिर से इन्हीं टायलेट में घूम रही है, क्योंकि इस चिल्लर को अब बैंक भी नहीं ले रही है। स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन ने शहर में 10 स्थानों पर स्मार्ट टायलेट कैफे बनाए थे। ये टायलेट वाकई में स्मार्ट हैं, लेकिन आनलाइन ट्रांजेक्शन के बढ़ते चलन के कारण इनमें लगी मशीनरी अब आउट आफ डेट हो रही है। दरअसल, इन स्मार्ट टायलेट को सुकृति सोशल फाउंडेशन ने पूरी तरह से सेंसर आधारित बनाया गया है। जब टायलेट का उपयोग करने के लिए लोग पहुंचते हैं, तो सेंसर के जरिए गलियारे की लाइट चलती है। गलियारे में सेंसर आधारित मशीनें ही लगाई गई हैं, जो दो और पांच रुपये के सिक्के को पहचानती हैं। जब मशीन में सिक्का डालते हैं, तो टायलेट के गेट का लाक खुल जाता है। तभी लोग इसका उपयोग करने के लिए अंदर जा सकते हैं। अब समस्या इन्हीं सिक्कों के कारण उत्पन्न हो रही हैं, क्योंकि अब धीरे-धीरे दो रुपये के सिक्के बाजार से गायब होते जा रहे हैं। पांच रुपये का सिक्का भी बहुत कम नजर आता है। जिन लोगों के पास सिक्के नहीं हैं, उनसे केयर टेकर खुल्ले पैसे लाने के लिए बोलता है। ऐसे में इमरजेंसी में टायलेट का उपयोग करने पहुंचे लोग आसपास की दुकानों पर चिल्लर लेने के लिए पहुंचते हैं या फिर यहां बने कैफे के काउंटर पर बड़ा नोट देकर सिक्के लेते हैं। इसके बाद ही टायलेट का उपयोग कर पाते हैं।
नईदुनिया रिपोर्टर गुरुवार की दोपहर एक बजे एयरटेल आफिस के पास बने स्मार्ट टायलेट कैफे पहुंचा। यहां टायलेट के बाहर मशीन लगी थी, जिसमें दो रुपए डालने के निर्देश प्रदर्शित हो रहे थे। रिपोर्टर ने यहां मौजूद केयर टेकर से आनलाइन भुगतान की बात कही, तो उसका कहना था कि आप खुल्ले पैसे लेकर आओ, तभी मशीनें काम करेंगी। अन्यथा टायलेट का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। इसके बाद रिपोर्टर उच्च न्यायालय के पास बने टायलेट कैफे पर पहुंचा। यहां कैफे काउंटर बंद था। यहां मौजूद केयर टेकर का कहना था कि यदि दो रुपए का सिक्का नहीं है, तो 10 रुपये का सिक्का डाल दो।
इस समस्या से जूझने वाले लोगों के अलावा कैफे का संचालन करने वालों ने भी स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन से मांग की है कि इन टायलेट में आनलाइन पेमेंट का कोई सिस्टम लगाया जाए। नोटबंदी के बाद से लोग जेब में कम कैश लेकर चलते हैं। वे यूपीआइ के माध्यम से आनलाइन भुगतान करते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि खुल्ले पैसों के बजाय आनलाइन भुगतान की व्यवस्था की जाए। इससे लोगों को भी सुविधा होगी, साथ ही मशीनों में इकट्ठे होने वाले सिक्कों के उपयोग की समस्या का भी समाधान हो जाएगा। इसमें समस्या यह है कि टायलेट में लगी मशीनरी को पूरी तरह से बदलना होगा, क्योंकि वर्तमान मशीनें व सेंसर सिक्कों पर काम करते हैं। उन्हीं से टायलेट के दरवाजे भी जुड़े हुए हैं। मशीनरी बदलने पर दरवाजों के आटोमेटिक लाक सिस्टम को भी बदलना पड़ेगा, जिसमें लाखों का खर्चा आएगा।
पुराने 10 स्मार्ट टायलेट कैफे में खुल्ले पैसों की समस्या है। यह बिल्कुल सही बात है कि अब लोग आनलाइन भुगतान ज्यादा करते हैं और खुल्ले पैसे लेकर नहीं चलते। सिक्कों का लेनदेन भी कम हुआ है। ऐसे में हमने 10 नए प्रस्तावित कैफे में आनलाइन भुगतान का प्रविधान किया है। पुराने टायलेट में भी आनलाइन भुगतान लेने की व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए जल्द ही हम प्रक्रिया करेंगे, ताकि लोग आसानी से इन टायलेट का इस्तेमाल कर सकें।
नीतू माथुर, सीइओ स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन
10 नए स्मार्ट टायलेट कैफे में तो आनलाइन पेमेंट का प्रावधान किया गया है। पुराने टायलेट कैफे में लगी मशीनें, सेंसर व दरवाजे सिक्कों को पहचानकर ही काम करते हैं। यहां आनलाइन भुगतान लेने की व्यवस्था करने पर मशीनें और दरवाजे बदलने पड़ेंगे।
आदित्य तोमर, प्रतिनिधि सुकृति सोशल फाउंडेशन