Bura Na Mano Holi hai: वीरेंद्र तिवारी. नईदुनिया ग्वालियर। कमलनाथ की सरकार तीन साल पहले इसी होली के त्योहार के आसपास गिरी थी। कैसे गिरी, इसकी पिछले तीन साल से इतनी कहानियां सुन रहा हूं कि अब तो कई असली भी लगने लगी हैं। बेंगलुरु के रिसोर्ट में ठहरने वाले हर विधायक को 35-35 करोड़ रुपये देने के चर्चे तो रस ले लेकर सुनाए जाते हैं। खुद को "सत्ताहरण" की इस कहानी का असली किरदार बताने के चक्कर में एक व्यक्ति दावा करता है कि फलां विधायक को पैसों की डिलीवरी तो उसने ही की थी. दूसरा कहता है अरे मैडम ने तो सोना लिया था, उन्हें कैश थोड़े ही पसंद है। मैं सबकी सुनता हूं और मन ही मन हिसाब लगाता हूं कि काश 35 करोड़ में तत्कालीन विधायक या मंत्री साहिबा ने यदि अडाणी जी के शेयर खरीद लिए होते तो आज वह पैसा पांच अरब से ज्यादा हो जाता। इतने पैसे में तो खुद की अच्छी खासी पार्टी खड़ी कर लेते या विधायक लड़ा देते। अब पछताए होत का..न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम।
देश के "सज्जन" सांसदों में से एक अंचल के एक सांसद जी को अब "विवेक" से काम लेने की जरूरत है। देखो क्या है कि दिक्क्त आपसे नहीं है, लेकिन आपकी सीट से है। आपकी यह जो कुर्सी है न वह एक बादशाह की जंग में हारी हुई उस बेगम की तरह है, जिसके बिना उन्हें नींद नहीं आती। अब बादशाह वह हर हाल में वापस पाना चाहते हैं। तभी तो सड़क नाली से लेकर बावर्चीखाना तक में तसरीफ लेकर जा रहे हैं। वैसे एक बात तो आपकी दाद देनी होगी, आप बादशाह के पहरेदारों को लेकर समय-समय पर जो चिट्ठी से चिमटी खोड़ते हो न वह कमाल लगती है बाय गाड। लेकिन इतने से ही काम कहां चलता है आजकल। कुछ बड़ा करना होगा नहीं तो जैसे मुए टि्वटर वालों ने ब्लू टिक छीन लिया, ऐसी सांसदी भी न चली जाए। मैं तो कहता हूं आप भी माई के दर पर पंडित बिठा दो. सांसदी जाए तो जाए कुछ सम्मानजनक तो मिल ही जाएगा।
न तो नाले में लोट लगाते हैं. न आड़े-तेड़े बयान देकर सुर्खियां बटोरने का शौक है। गांव के यह मंत्री जी कंबल ओढ़कर इन दिनों घी पी रहे हैं। दिल्ली के एक बड़े मंत्री की कृपादृष्टि से फिलहाल तो उनकी यहां से लेकर भोपाल तक तूती बोल रही है। उनके क्षेत्र की पुलिस से लेकर तहसीलों तक का स्टाफ न तो अपने कप्तानों की सुन रहा न अपने थाने या तहसीली के बास की। पुलिस एसपी ने तो अपनी लिस्ट से उनके क्षेत्र के थानों के नाम ही काट दिए हैं, क्योंकि कर तो कुछ पा नहीं रहे। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि मंत्रीजी ने कुछ पुलिसकर्मियों के मनमाफिक पोस्टिंग करवा के उनके एटीएम कार्ड तक खुद के पास रख लिया है। इन पुलिसकर्मियों का हर दिन सिंगल सूत्रीय एजेंडा रहता है रेत के डंपरों को पकड़ा और फिर तोड़पट्टा करके खाते में पैसा जमा करो। देखना नेताजी ऐड़ा बनकर पेड़ा खाने में पेट का हाजमा खराब न हो जाए।
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ । किस-किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम, तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ . ह ग्वालियर के दिल से निकली दर्द भरी शायरी उस अधिकारी के लिए है जो सिटी को स्मार्ट बनाने के लिए इतनी अधिक समर्पित थीं कि कोई गलती से उनके ट्रांसफर की बात कर देता था तो उनका खून खौल जाता था। मातृत्व अवकाश पर जाने से पहले चीफ सेक्रेटरी तक अपनी पहुंच का फायदा उठाते हुए एक चर्चित आर्डर निकलवाया था। आर्डर का लब्बोलुबाब था कि मैं राजपाठ छोड़कर कुछ माह के लिए ही अपनी इच्छा से जा रही हूं। जब लौटूंगी तो इसी कुर्सी पर, तब तक मेरी खड़ाऊं को सिंहासन पर रखकर काम होगा। आर्डर देखकर लगा था कुछ माह में ही वापसी हो जाएगी लेकिन कई रुत आईं लेकिन वह नहीं आईं। अब तो राजपाट (स्मार्ट सिटी) की ही एक्सपायरी डेट आ गई। सोच रही होंगी स्मार्ट सिटी के हर प्रोजेक्ट का तो रायता फैला हुआ है.अब जाकर बटोर तो पाना नहीं है तो तोहमते भी क्यों लूं।
तुलसी तेरे आगन की तर्ज पर हर हफ्ते ग्वालियर में डेरा डाले रहने वाले मालव माटी के बेहद सरल मंत्री का अचानक से चंबल की राजनीति से मोहभंग क्यों हो गया। न तो आ रहे हैं न ही अधिकारियों की उनका मजाकिया लहजा देखने को ही मिल रहा है। बताते हैं कि मंत्री के होम करने में हाथ जल गये है। सोचा था भाजपा के पितृ पुरुष अटलजी के नाम पर ग्वालियर का गौरव दिवस मनाएंगे तो सरदार शाबासी देगा लेकिन हुआ उल्टा। किरकिरी कराने के बाद भोलेभाले मंत्री अब ग्वालियर की ओर पैर करके भी नहीं सो रहे हैं। जाने यह बेरुखी कब तक चलेगी। मंत्रीजी के सहारे ही अपनी राजनीति में पैठ जमा रहे लोग तो भरभर आंसू रो रहे हैं। हर दिन गाते हैं- तू नहीं तो यह रुत यह हवा क्या करूं,दूर रह के भी तुझसे से बता क्या करूं क्या करूं.. सूना सूना ये जहां अब जाऊं मैं कहां,,आ जाआआआ..