पांच साल में लापता हुई 800 बच्चियां, पुलिस जानकारी देने तैयार नहीं, हाईकोर्ट ने शासन से मांगा जवाब
एक ऐसी याचिका वर्तमान में हाईकोर्ट में लंबित है, जहां सिर्फ इस बात की जांच हो रही है कि आखिर बीते वर्षों में कितने बच्चे-बच्चियां या महिलाएं गायब हुए हैं और उसमें से कितने वापस मिले हैं। वर्तमान में इस मामले में हाईकोर्ट ने पुलिस प्रबंधन से जवाब तलब किया है। पुलिस के अधिकारियों को जवाब देना है कि वह खोए हुए बच्चों की जानकारी साझा नहीं कर सकते हैं
By Vikram Singh Tomar
Publish Date: Fri, 08 Nov 2024 10:30:17 AM (IST)
Updated Date: Fri, 08 Nov 2024 10:30:17 AM (IST)
पांच साल में लापता हुई 800 बच्चियां, पुलिस जानकारी देने तैयार नहीं। सांकेतिक चित्र। HighLights
- पुलिस की वेबसाइट पर रहता है केवल 15 दिन का डाटा
- आरटीआई के तहत भी जानकारी नहीं देती पुलिस
- अधिवक्ता ने लगाई है हाई कोर्ट में याचिका
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। शहर में आए दिन बच्चों के गुमशुदा होने की घटनाएं सामने आती हैं, थानों में शिकायतें दर्ज होती हैं, कई मामले न्यायालय में भी आते हैं। लेकिन इनमें से कितने मामले ऐसे हैं जिनमें खोई हुई बच्चियां वापस मिलती है ? कोई अंदाजा नहीं है, पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर भी सिर्फ 15 दिन का ही डाटा उपलब्ध होता है। एक ऐसी ही याचिका वर्तमान में हाईकोर्ट में लंबित है, जहां सिर्फ इस बात की जांच हो रही है कि आखिर बीते वर्षों में कितने बच्चे-बच्चियां या महिलाएं गायब हुए हैं और उसमें से कितने वापस मिले हैं।
अधिवक्ता आशीष प्रताप सिंह ने अपने यादगार मुकदमें के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से शुरू हुई चर्चा अब हाईकोर्ट में एक मुहिम की तरह चल रही है। जहां हर सुनवाई पर कई ऐसी चीजें सामने आती हैं जो चौकाने वाली होती हैं। अधिवक्ता ने बताया कि वर्तमान में इस मामले में हाईकोर्ट ने पुलिस प्रबंधन से जवाब तलब किया है। पुलिस के अधिकारियों को जवाब देना है कि वह खोए हुए बच्चों की जानकारी साझा नहीं कर सकते हैं तो ऐसा क्यों ?
ऐसे समझें पूरा मामला
- अधिवक्ता आशीष प्रताप सिंह बताते हैं कि यह याचिका वर्ष 2022 में दायर की गई थी। इसकी शुरूआत एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से हुई थी, जहां अपनी छोटी बच्ची के कहीं गायब हो जाने पर एक महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर काफी समय तक सुनवाई चली लेकिन अंत में पुलिस ने कहा कि बच्ची को खोजने का हर संभव प्रयास किया जा चुका है, उसे बाहरी राज्यों में भी खोजने की कोशिश की है। पोस्टर तक चिपकाए हैं, लेकिन उसका कोई अता पता नहीं चल पा रहा है। कोर्ट ने पुलिस को यह निर्देश देते हुए याचिका को निस्तारित कर दिया कि बच्ची जब मिल जाए तो उसे मां को सुपुर्द कर दिया जाए।
- जब काफी समय तक कोई जानकारी नहीं मिली तो महिला खुद ही पुलिस के पास जा पहुंची। पुलिस ने महिला को बजाए सही जानकारी देने के वहां से भगा दिया। जब परेशान महिला अधिवक्ता आशीष प्रताप सिंह के पास आई और बोली ‘वकील साहब! जैसे मेरी बेटी गायब हुई है, वैसे ही न जाने कितनी और बच्चियां गायब होती होंगी’। आशीष के जहन में यह बात ठहर गई और उन्होंने आरटीआई लगाकर 2008 से 2020 तक गायब हुई बच्चियों की जानकारी मांगी।
- साथ ही यह भी पूछा कि कितनी बच्चियां मिली हैं और उन्हें किसके सुपुर्द किया है। पुलिस ने जानकारी देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि जेजे बोर्ड के नियम के हिसाब से नाबालिग की पहचान उजागर नहीं की जा सकती है। जब पुलिस से कोई मदद मिलती नहीं दिखी तो अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
बहस करते रहे फिर दिया आंकड़ा
- अधिवक्ता बताते हैं कि उन्होंने आरटीआई के माध्यम से पुलिस से जानकारी मांगी थी। जब पुलिस ने जानकारी नहीं दी तो एसपी के समक्ष अपील लगाई। जिसके बाद पुलिस की ओर से जवाब आया कि जानकारी 6000 पन्नों में है तो 3000 रुपये जमा करें और जानकारी ले जाएं। जब अधिवक्ता पैसे लेकर पहुंचे तो दस्तावेज देने से मना कर दिया। दोनों में काफी देर बहस होती रही। जिसके बाद पुलिस की ओर से अधिवक्ता को वर्ष 2016 से 2021 तक का आंकड़ा दिया गया।
- इसके अलावा चाही गई कोई अन्य जानकारी नहीं दी गई। इस आंकड़े के अनुसार उक्त वर्षों में गायब हुई 800 बच्चियां ऐसी हैं, जिनका अब तक कोई पता नहीं चला है। अब मामला न्यायालय में आया तो हाईकोर्ट ने पूछा है कि क्यों जानकारी नहीं दी जा सकती। इस बात का जवाब अब आगामी सुनवाई पर शासन को पेश करना होगा।