प्रेमविजय पाटिल (धार)। तपेदिक यानी टीबी की बीमारी जिले में महिलाओं के लिए किस तरह से अभिशाप है, इसका उदाहरण सोमवार को देखने को मिला। लंबे समय से जिला चिकित्सालय में टीबी का इलाज करवा रही 23 वर्षीय रीता बाई (परिवर्तित नाम) का सोमवार को इंदौर में निधन हो गया। टीबी की बीमारी होने के कारण परिवार के लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया। पति भी साथ छोड़कर चले गए और इंदौर में उसका अंतिम संस्कार करने वाला भी कोई नहीं पहुंचा। ऐसी दर्दनाक दशा के बीच में एक और पीड़ा यह भी उभरकर सामने आई कि उसकी छह वर्ष की बच्ची है, वह लावारिस हो गई। महिला होने का यह गुनाह हुआ कि उसे इस तरह की दुखद व लावारिस मौत का सामना करना पड़ा।
आदिवासी अंचल के रहने वाली यह महिला कुछ समय से धार में रह रही थी। टीबी की बीमारी हो चुकी थी और उसका पहले भी उपचार हो चुका था। परिवार के लोगों ने पहले ही उसे अपने से दूर कर दिया था। ताकि उसके कारण उन्हें टीबी की बीमारी परेशानी नहीं हो। वह धार में आकर फुटपाथ पर रहने लगी। जब कुछ हद तक ठीक हो गई तो फिर से अपने छोटी सी मासूम छह साल की बच्ची के लिए भिक्षावृत्ति करके या छोटा मोटा काम करके उसका लालन-पालन करने लगी। लेकिन सही इलाज और पूरा इलाज नहीं होने के कारण उसकी मुसीबत हो गई। दिक्कत ये थी कि उसका पति भी उसका साथ छोड़ चुका था। वहां कहा है किसी को पता नहीं है। इस महिला का न तो आधार कार्ड है ने ही कोई पहचान को कोई दस्तावेज। यहां हम महिला का नाम उजागर नहीं कर रहे हैं। इससे उसकी बच्ची पर बुरा असर पड़ सकता है। पिछले एक पखवाड़े से रीता बाई इस हालत में थी कि उसके शरीर में असहनीय बदबू आ रही थी। उसकी एक ही इच्छा थी कि किस तरह से उसकी बच्ची का भला हो जाए। वह अंतिम समय तक अपनी बच्ची को निहारती रही। शनिवार को जब उसकी तबीयत बेहद चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई तो उसे इंदौर भेज दिया गया। इन सब के बीच में परिवार की तलाश की गई, लेकिन परिवार का कोई पता नहीं चला। अंततः सोमवार को सूचना मिली कि उसकी मौत हो गई।
बच्ची पढ़ना चाहती है लेकिन अनाथ जैसी दशा
जब मां का उपवार चल रहा था तक उसकी छह साल की बच्ची को जिला चिकित्सालय के वार्ड विशेष के स्टाफ के लोग लगातार ध्यान दे रहे थे। इस बच्ची को धार में लाड़ मिला। मां से दूर होने और उसकी मौत होने के बाद में बच्ची को स्थाई मदद की जरूरत थी। ऐसे में जिला बाल कल्याण समिति के समक्ष उसे प्रस्तुत किया गया। समिति के अध्यक्ष हर्ष रूणवाल , सदस्य संदीप कानूनगो और मिताली प्रधान ने इस बच्ची को उसके पिता की जानकारी निकलवाने के लिए चाइल्ड लाइन को निर्देश दिए। साथ ही अस्थायी रूप से इस बच्ची के रहने के इंतजाम के लिए बच्ची को इंदौर के बालिका गृह भेजा गया। इस तरह से टीबी की बीमारी का एक बहुत बड़ा जख्म सामने आया है। यह बच्ची बहुत ही नटखट और चंचल है। उसे इस बात का भान ही नहीं है कि उसकी मां इस दुनिया में नहीं रही है। बस वह तो एक बात कहती है कि स्कूल भेज दो में पढ़ना चाहती हू। लेकिन टीबी बीमारी का दंश इतना घातक एक महिला के लिए होता है उसे शायद बड़ा होने पर समझ आए।
इस मामले में टीबी संबंधी प्रोजेक्ट पर कार्य कर चुके गगन मुद्गल ने बताया कि आदिवासी बहुल जिले में देखने में आया है कि महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। जब तपेदिक के बीमारी हो जाती है तो इन महिलाओं को विशेष रूप से उपेक्षित कर दिया जाता है। रीतर बाई के मामले में भी इसी तरह की स्थिति हुई है कि आखिर में उससे सब दूर हो गए। पति भी दूर हो गया और उसकी मौत हो गई। आज हम भले ही उन्नात समाज में रह रहे हैं, लेकिन आज भी टीबी की बीमारी सामाजिक बुराई के तौर पर है। महिलाओं के लिए तो यह बहुत बड़ी परेशानी व कलंक की बात बन जाती है।
इस संबंध में जिला टीबी अधिकारी डाक्टर संजय जोशी ने बताया कि इस महिला का पहले उपचार किया गया था। कुछ दिन पूर्व वह फिर से गंभीर स्थिति में हमारे पास आई थी। उसका उपचार किया गया, लेकिन उसे इंदौर रेफर किया। जहां उसकी मौत हो गई और वहां पर भी उसके परिजन नहीं आए। ऐसे में उसे लावारिस मानकर ही उसका अंतिम क्रिया कर्म किया गया। उसकी देखभाल करने वाला अंतिम समय तक कोई नहीं था।