प्रेमविजय पाटिल, धार। इन दिनों मालवा-निमाड़ के तमाम जिलों में किसान परेशान हैं क्योंकि जाते हुए मानसून ने उनकी सोयाबीन की तैयार फसल खराब कर दी है। मगर, इन सब के उलट धार जिले के कुछ किसानों के चेहरे पर मुस्कान है क्योंकि उन्हें मौसम के कारण नुकसान नहीं उठाना पड़ा है।
ऐसा नहीं है कि मानसून ने जाते-जाते धार में पानी नहीं बरसाया। दरअसल, यहां किसानों ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने की पद्धति को अपनाकर तथा मौसम के अनुसार रणनीति बनाकर स्वयं को इस नुकसान से बचा लिया है। एक तरह से धार के कुछ किसानों ने प्रदेशभर के किसानों को यह राह दिखाई है कि कैसे सूझबूझ से नुकसान को टाला या कम किया जा सकता है।
जिले में किसानों ने इस बार सोयाबीन की अर्ली वैरायटी के साथ-साथ लेट वैरायटी की बोवनी भी की। साथ ही सोयाबीन की प्रजातियां भी अलग-अलग बोईं। इसका लाभ यह हुआ कि किसानों को एक ही समय में पूरी फसल पर फोकस नहीं करना पड़ा।
जैसे, अर्ली वैरायटी में जब दवा छिड़कनी थी, तब तक लेट वैरायटी खेतों में तैयार नहीं हुई थी। जब किसान अर्ली वैरायटी पर दवा छिड़ककर फ्री हो गए, तब लेट वैरायटी पर दवा छिड़कने का समय आया। यही बात मौसम के मामले में भी फायदेमंद साबित हुई।
जाते हुए मानसून की वर्षा से अर्ली वैरायटी पूरी तरह खराब होने से बच गई, क्योंकि इसकी फसल कटकर पहले ही किसानों के घरों में पहुंच चुकी थी। ऐसे में किसानों को बची हुई लेट वैरायटी को संभालने के लिए पर्याप्त समय मिल गया।
हम किसानों को यही समझाते हैं कि वे एक ही वैरायटी के भरोसे नहीं रहें, क्योंकि मौसम तेजी से बदल रहा है। ऐसे में यदि वे अलग-अलग तीन वैरायटी लगाते हैं तो और भी बेहतर है। हजारों किसानों ने इस तरह का प्रयोग किया है। यह प्रयोग सफल भी रहा है। डॉ. जीएस गाठिया, वरिष्ठ कृषि विज्ञानी, धार
भारतीय किसान संघ के मीडिया प्रभारी अमोल पाटीदार, किसान विजय पटेल, ग्राम कागदीपुरा, कमल पाटीदार, ग्राम पिंजराया और इरफान पटेल, ग्राम मगजपुरा ने बताया कि जिले में सोयाबीन में कम नुकसान हुआ है, जिसका सर्वे हो रहा है। किसानों ने जलवायु परिवर्तन से लड़ना सीख लिया है।
उन्होंने बताया कि किसानों ने अर्ली वैरायटी जेएस 9560 और 2218 श्रेणी की सोयाबीन लगाई थी। बाद में पकने वाली सोयाबीन की वैरायटी आरबीएस 2011-35 भी लगाई थी। जेएस 1135 में किसानों को वायरस के कारण नुकसान हुआ, जबकि अर्ली वैरायटी में किसानों की फसल संतोषजनक स्थिति में रही है।
जिले में करीब 20-25 हजार किसानों ने यह प्रयोग किया है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि एक किसान के पास 10 बीघा जमीन है, तो उसने अपने क्षेत्र में मानसून की शुरुआत की वर्षा के हिसाब से बोवनी की। उसने 60 प्रतिशत अर्ली और 40 प्रतिशत लेट वैरायटी लगाई।