प्रेमविजय पाटिल धार (नईदुनिया)
कोरोना संक्रमण काल में सबसे तकलीफ बच्चों और बुजुर्गों को रही है। इस दौरान बुजुर्गों को कई बंदिशों में रहना पड़ा। बच्चों और परिवार के सदस्यों ने कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए उनको घर से नहीं निकलने दिया। सार्वजनिक आयोजनों से दूर रखा। ऐसी तमाम सावधानियां रखी। इन सब के बीच में कहीं न कहीं बुजुर्गों की मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति बहुत ही चिंताजनक हुई। एक निष्कर्ष यह निकला है कि बुजुर्ग अलग-अलग तरह के फोबिया से परेशान हुए हैं। उसके अलावा नींद नहीं आना सहित अन्य कई परेशानियों से वह गुजरे हैं।
कोरोना वायरस संक्रमण काल जैसे ही शुरू हुआ तो उस समय सबसे ज्यादा इस बात को ही प्रचारित किया गया कि कोरोना से बुजुर्गों और बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी है। वास्तव में बुजुर्गों के लिए यह बीमारी बहुत बड़ी चिंता का कारण थी। क्योंकि जिले में जो 60 मौतें हुई हैं। उसमें से करीब 52 लोग 60 साल या उससे अधिक उम्र के थे। ऐसे में प्रतिदिन मीडिया के माध्यम से बुजुर्गों के बीमार होने तथा मौतों की खबरें भी सामने आती रही। घर में रह रहे वरिष्ठ नागरिकों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई थी।
मनोरोग चिकित्सक का अध्ययन
इस संबंध में जिला चिकित्सालय में पदस्थ मनोरोग विशेषज्ञ डा. अपूर्वा तिवारी ने नईदुनिया को चर्चा में बताया कि जब हम आनलाइन काउंसिलिंग कर रहे थे। और अब प्रत्यक्ष रूप से हम मरीजों से रूबरू हो रहे थे तब भी हमारे सामने यह बात आई कि बुजुर्गों को कई तरह की परेशानी से गुजरना पड़ा है। खासकर उनके मानसिक स्वास्थ्य की दशा चिंताजनक हुई है। उन्होंने बताया कि अलग-अलग श्रेणी के फोबिया से बुजुर्ग गुजरे हैं। उन्हें एक सोशल फोबिया भी रहा। यह सामाजिक रूप से भी वह दूर हो गए थे। इस दौरान नींद नहीं आना, घबराहट यानी एंग्जाइटी उनके लिए एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बना रहा। ऐसे बुजुर्गों की मानसिक दशा कि हमने जितनी मदद कर सकते थे उतनी की। लेकिन यह एक बहुत बड़ी चिंता का विषय था।
दवा लेने के लिए भी बाहर नहीं निकले
डा. अपूर्वा तिवारह ने बताया कि हमारे सामने कई ऐसे बुजुर्गों की बातें सामने आई हैं। जो अपनी मेडिसिन लेने के लिए नियमित रूप से बाहर निकला करते थे, वे भी छह महीने से ज्यादा समय से दवाइयां लेने के लिए बाहर तक नहीं निकल पाए। ऐसे में उन्होंने या तो अपने रिश्तेदारों, पड़ोसी या अन्य सदस्यों से दवाइयां बुलवाई। जिन परिवारों में बेटे और सदस्य थे, उनके लिए तो आसानी रही। लेकिन जिन बुजुर्गों के घर में सदस्य नहीं थे और वे परेशान रहे थे। अन्य लोगों ने जरूर उनकी मदद की है।
हर पल दर्द की शिकायत करते थे
डा. तिवारी ने बताया कि वर्तमान में हमारे पास में जो लोग आए हैं। उनमें सोमोटो के पेशेंट भी आए। उन्होंने बताया कि बुजुर्गों को एक अजीब तरह से मानसिक परेशानी रही। इसमें वह फिजिकली दर्द महसूस करते थे। उनको लगता था कि शरीर में उनके दर्द है और उसकी कंप्लेंट को लेकर गए अलग-अलग तरह की जांच करवाने और उपचार में लगे रहे। जबकि कोरोना वायरस संक्रमण काल में यह एक बहुत बड़े तनाव और एंग्जाइटी का विषय था। इसका कारण उनकी मानसिक स्तर की स्थिति रही। हमारे पास में सोमोटो के भी बहुत सारे पेशेंट आए। हमने उनको ठीक भी किया है और उनकी सही काउंसिलिंग भी की है। उल्लेखनीय है कि एक मार्च से 60 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों को यानी बुजुर्गों को टीका लगने का अभियान शुरू हो चुका है। ऐसे में इन बुजुर्गों को टीका लगने से मानसिक स्वास्थ्य को एक बार फिर बेहतर स्थिति में पा सकेंगे।