बागली(देवास), नईदुनिया न्यूज। प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच जिले के बागली से तीन किमी दूर विंध्याचल पर्वतमाला की श्रृंखला में जटायु की तपोभूमि जटाशंकर तीर्थ स्थित है। यहां पर प्राकृतिक रूप से बने गौ मुख से शिवलिंग पर अखंड जलधारा प्रवाहित होकर अनादिकाल से भगवान शंकर का जलाभिषेक कर रही है। साथ ही बिल्व पत्र का पेड़ ठीक शिवलिंग के ऊपर होने से स्वमेव बिल्व पत्र अर्पित हो जाते हैं। यहां का शिवलिंग नील लोहित है यानी लाल और नीले रंग से चंदन, तिलक और ओम की आकृति उस पर प्राकृतिक रूप से बनी है।
मुकुंदमुनि पं. रामाधार द्विवेदी ने बताया कि प्राचीन समय में जटायु ने यहां तपस्या की थी, इसलिए इसे जटाशंकर नाम से जाना जाता है। प्राचीन समय में घना जंगल मंदिर के आसपास हुआ करता था और शेर सहित अन्य जंगली जानवर यहां दिखाई देते थे। इस स्थान को चेतन्यता खाकी संप्रदाय के तपोनिष्ठ संत केशवदास जी त्यागी महाराज (फलाहारी बाबा) ने दी। यहां ऋषिमुनि प्राचीन समय में साधना करते थे और ब्रह्मलीन तपोनिष्ठ संत केशवदासजी त्यागी महाराज ने अपना पूरा जीवनकाल यही व्यतित किया।
प्रसन्न् होकर अवतरित हुई मां नर्मदा
एक किवदंती यह भी है की यहां जटायु सहित अनेक ऋषिमुनि तपस्या करते थे और नर्मदा स्नान के लिए यहां से 60 किमी दूर नर्मदा तट धाराजी नियमित रूप से जाते थे। लेकिन जब ऋषिमुनि बुजुर्ग हुए और नियमित नर्मदा स्नान के लिए जाना संभव नहीं हुआ तो उन्होंने मां नर्मदा से विनती की। उनकी घोर तपस्या भक्ति से प्रसन्न् होकर स्वयं मां नर्मदा यहां अवतरित हुई और जलधारा के रूप में यहां के पहाड़ों से बहने लगी। तब से आज तक अखंड जलधारा बहा रही है।
अदृश्य शक्ति करती है महादेव की पूजा
जानकार बताते है कि यह शिवलिंग चमत्कारिक है। यहां तड़के चार बजे कोई अदृश्य शक्ति भगवान जटाशंकर महादेव की पूजा करती है जिसे आज तक कोई नहीं जान पाया है। मंदिर से जुड़े सोमेश उपाध्याय व नारायण पाटीदार बताते है कि फलाहारी बाबा दिव्य महात्मा थे। वे जंगलों में शेर की सवारी के साथ भगवान से साक्षात्कार भी किया करते थे। श्रावण मास में यहां पूरे माह विशेष अनुष्ठान व पार्थिव पूजन किया जाता है। महामृत्युंजय, कालसर्प योग, त्रिपंडि शास्त्र आदि के विशिष्ट अनुष्ठान भी होते हैं। वर्षों से यहां अखंड रामायण पाठ भी चल रहा है। यहां मंदिर के समीप ही प्राकृतिक झरने की कलकल आवाज दूर तक गूंजती रहती है।
पहाड़ी पर बने यज्ञ स्थल के समीप पेड़ पर बंधा रस्सी वाला सावन का झूला, नदी किनारे नर्सरी, बगीचा, कुंड आदि पर्यटकों और श्रद्धालुओं का मन मोह रहे है। अभी गादीपति महंत बद्रीदास जी महाराज है। जिनके सानिध्य में धर्मशाला और मंदिर निर्माण के साथ-साथ वर्ष भर विभिन्न् अवसरों पर भंडारे और धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। श्रावण में यहा पं. ओमप्रकाश शर्मा व मुकेश शर्मा के आचार्यत्व में प्रतिदिन पंचामृत से सनी मिट्टी के आकर्षक और मनमोहक 1008 शिवलिंगों का निर्माण पिछले कई सालों से हो रहा है। श्रावण माह में यहां मेले जैसा माहौल बन जाता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं।