Deepak Joshi: देवास। देवास जिले में भाजपा से तीन बार विधायक रहे दीपक जोशी आज कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दीपक पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे हैं और इनका परिवार जनसंघ के जमाने से एक ही विचारधारा में रहा है। भाजपा के टिकट पर दीपक जोशी 2000 में बागली, 2003 और 2008 में हाटपिपलिया से विधायक बने। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में 2008 के चुनाव के बाद वे राज्यमंत्री भी रहे।
दीपक जोशी ने बी. काम, एलएलबी किया है और इनका एक लघु उद्योग भी है। 13 जून 1962 को जन्मे दीपक जोशी वर्ष 1983 से भारतीय जनता युवा मोर्चा की कार्यकारी समिति के सदस्य रहे। हमीदिया कालेज भोपाल के छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए। बरकतुल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल की कार्यकारी परिषद के 1994 तक सदस्य थे। पूर्व में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे।
2018 में कांग्रेस के मनोज चौधरी से हाटपिपलिया सीट से हारने के बाद भी वे क्षेत्र में सक्रिय रहे। मनोज चौधरी के सिंधिया के साथ भाजपा में आने और उपचुनाव में जीतने के बाद से दीपक जोशी पार्टी में हाशिये पर थे। हाटपिपलिया में उनके पिता कैलाश जोशी के स्मारक को लेकर सरकारी बेरुखी से वे खासे नाराज हैं। हर फोरम पर इसी बात को उठाने के बाद आखिरकार कांग्रेस का दामन थामने का फैसला उन्होंने किया।
दीपक जोशी के बेटे जयवर्धन जोशी भाजपा में ही रहेंगे। वहीं उनके पिता कैलाश जोशी के साथ और दीपक जोशी के निकट सहयोगी सुनिल पुरोहित भाजपा में ही रहकर काम करेंगे। पुरोहित ने बताया की वे जोशी को भविष्य में पुनः भाजपा में देखना चाहते हैं। देर सवेर उन्हें मना लेंगे। आज हालात बेहद अलग हैं उनके साथ जो बर्ताव हुआ उसका जवाब फिलहाल नहीं है। लेकिन दीपक जोशी जो आज करके जा रहे हैं उससे कार्यकर्ता की और भाजपा संगठन बदलाव करेगा, भविष्य में कोई दीपक जोशी बनने पर मजबूर न बने। पुरोहित ने कहा कि आज भाजपा ने एक ईमानदार और काम करने वाला व्यक्ति खो दिया है। जिसकी भरपाई सहज नहीं है। मैं स्वय भी दुखी हूं और क्षेत्र के लोग भी।
बागली ऐसे बना भाजपा का गढ़
वर्ष 1952 के एक चुनाव में राजा छत्रसिंह जी हिंदू महासभा के उम्मीदवार थे। उस समय एक मतदाता दो मत डालता था, वे पराजित हुए और 1956 में मध्य प्रदेश का गठन हुआ। वर्ष 1960 में राजपूत क्लब का गठन हुआ, जिसमें बागली राजा छत्रसिंह सचिव थे। क्लब का नियम था कि राजपूत उम्मीदवार चाहे किसी भी दल का हो क्लब उसकी मदद करेगा लेकिन पदाधिकारी चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस वजह से वर्ष 1962 के चुनाव में राजा साहब ने उम्मीदवारी छोड़ी और अपने मित्र व चुनाव संचालक कैलाश जोशी उम्मीदवार चयनित हुए और बाद में बागली जनसंघ और भाजपा के गढ़ में तब्दील हुआ।
राजा साहब सिंधिया के साथ कांग्रेस में चले गए और दो बार कांग्रेस से चुनाव भी लड़े लेकिन कैलाश जोशी को वर्ष 1998 तक हराया ही नहीं जा सका। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में स्व श्याम होलानी बागली विधानसभा से निर्वाचित होने वाले पहले गैर भाजपाई विधायक बने लेकिन वर्ष 2003 में दीपक जोशी ने उन्हें हराकर फिर से बागली में कमल खिलाया।
बागली विधानसभा परिसीमन में अजजा आरक्षित हुई तो दीपक जोशी ने वर्ष 2008 का चुनाव हाटपिपल्या से लड़ा और यह सीट भी कांग्रेस से जीतकर भाजपा को दी। लेकिन वर्ष 2018 के चुनाव में वे हाटपिपल्या से फिर से जीतने में नाकाम रहे और यहीं से बुरे दिनों की शुरुआत हुई। इसके बाद से ही उनके परिवार से माता - पिता और पत्नी का देहांत हुआ।