नईदुनिया प्रतिनिधि, बुरहानपुर। डिजिटल युग के दौर में यदि कोई यह कहे कि किसी गांव अथवा समाज में आज भी गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक रिश्ते तय किए जाते हैं, तो आसानी से इस पर विश्वास करना कठिन होगा, लेकिन यह सच है। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले का भोलाना गांव ऐसा है, जहां रहने वाले धनगर समाज के लोग सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा का निर्वाह अब भी कर रहे हैं।
धनगर समाज के करीब 700 परिवारों वाले इस गांव में आज भी गर्भावस्था के दौरान दो मित्र, रिश्तेदार अथवा पड़ोसी इस बात का वादा करते हैं कि यदि उनके घरों में विपरीत लिंग के बच्चे जन्म लेंगे तो वयस्क होने पर उन्हें विवाह के बंधन में बांध दिया जाएगा। हालांकि उच्च शिक्षित हो चुके कई परिवार अब इस परंपरा को त्याग चुके हैं।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके लिए दिया गया वचन सबसे महत्वपूर्ण होता है, फिर चाहे वह विवाह को लेकर दिया गया हो अथवा धन-संपत्ति को लेकर दिया गया हो।
धनगर समाज मूलत: पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की जाति है, लेकिन कुछ परिवार सैकड़ों साल पहले बुरहानपुर आ गए थे और जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर भोलाना में बस गए थे। तब उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी।
धीरे-धीरे यहां उन्होंने खेती करना शुरू किया। इसके बाद भेड़, बकरी और गोपालन प्रारंभ किया, जिसके चलते वर्तमान में अधिकांश परिवार आर्थिक रूप से बेहद संपन्न हो चुके हैं। अकेले भेड़ बेच कर ही वे सालाना दस से पंद्रह लाख रुपये तक कमा लेते हैं।
गांव के पूर्व सरपंच ओमराज बाविस्कर बताते हैं कि मल्हार धनगर समाज के नाम से पहचानी जाने वाली यह जाति न केवल इमानदार है, बल्कि धार्मिक भी है। वे अपने इष्टदेव की चांदी की भारी भरकम मूर्तियां बनवा कर पूजा करते हैं। साथ ही समाज के संत बाड़ू मामा के अनन्य भक्त हैं। साल में एक बार इष्ट देव के पूजन के दौरान पूरे गांव काे आपस में चंदा कर भोज कराते हैं।
हम सब साल में एक बार इष्ट देव का पूजन कर उत्सव मनाते हैं। इस दौरान गुलाल खेला जाता है और पूरे गांव को समाज की ओर से भोजन कराया जाता है।
- ओमकार घूमन, ग्रामीण।
बच्चों को गिरवी रखने की कुप्रथा से पाई मुक्ति
दो से तीन दशक पहले तक इस समाज में भेड़, बकरियों आदि को चराने के लिए बच्चों को गिरवी रखने की कुप्रथा थी। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार अपने बच्चों को दो से चार साल के लिए संपन्न लोगों के पास गिरवी रख देते थे। बदले में उतने साल की एकमुश्त राशि ले लेते थे। अनुबंध की अवधि समाप्त होने पर बच्चे उनके पास वापस आ जाते थे। वर्तमान में यह समाज इस कुप्रथा से मुक्ति पा चुका है।