नईदुनिया, तेंदूखेड़ा दमोह (Damoh News)। धीरे-धीरे बंदरों को इंसानों के खाने का शौक लग गया है, बंदर जंगल छोड़कर आबादी की तरफ रुख कर रहे हैं, जंगल की पत्ती और फलों की जगह इंसानों की खाने वाले चीजें उन्हें पसंद आ रही हैं। इसी का नतीजा है कि हाईवे, सड़कों और गांवों में बंदरों के झुंड आसानी से देखने को मिल जाते हैं।
बंदरों की बदलती आदतों को लेकर कई रिसर्च किये गए हैं, जिनमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। इन रिसर्च से पता चला है कि बंदरों को इंसानों का भोजन देने के कारण उनकी आदतों में बदलाव आ रहा है, सबसे पहले उनकी खाने की आदत में तेजी से बदलाव हो रहा है।
इन दिनों गांवों, धार्मिक स्थलों और सड़कों पर आसानी से वो नजारा देखने को मिल रहा है जिसे देखने लोग पहले जंगल या चिड़ियाघर जाते थे। किसी जंगल या बस्ती से दूर बने मंदिर जाएंगे तो आसानी से बंदर देखने मिल जाएंगे, अगर आपके हाथ में कुछ दिख गया तो बंदर उसे छीनने की कोशिश करेंगे। उन्हें इंसानों के भोजन की आदत लग गई है।
आदत की वजह से सड़कों पर बंदरों के झुंड आसानी से मिलने लगे हैं। जंगल से लगी सड़कों पर सुबह होते ही बंदरों का कब्जा हो जाता है, बंदर निकलने वाले राहगीरों का पीछा करते है ताकि उन्हें कुछ ना कुछ खाने को दिया जाए।
कई बार खुद दुर्घटना का शिकार होते हैं या दुर्घटना का सबब बनते हैं। बदलते हालातों में जंगलों के आसपास के गांवों में भी बंदरों के झुंड देखने मिलने लगे हैं। कई बार तो बंदर झुंड में खाना खाते लोगों और खाने की तलाश में घरों पर हमला कर देते हैं।
तेदूखेड़ा और उसके समीप लगे नोरादेही अभ्यारण मे बंदरों की संख्या बहुत ज्यादा है कुछ वर्षो से तेंदूखेड़ा-झलोन और तेंदूखेड़ा-दमोह मार्ग पर बंदर सैकड़ों की संख्या में झुंंड के रूप में मिलते हैं, जो मनुष्य द्वारा फेंकी गई सामग्री के इंतजार मे बैठे रहते हैं। पूर्व में यदि बंदरों को मनुष्य दिख जाता था तो वह जंगल की और पलायन कर जाते थे।
अब यदि मनुष्य उनको दिखता है तो जंगल में अलग-अलग जगह पर बैठे बंदर मुख्य मार्गो पर खडे़ हो जाते हैं। बदलती प्रवृत्ति से बंदर हिंसक भी होते जा रहे हैं जो भोजन के लिए फेकी गई सामग्री को खुदको पर अपने परिवार को देने के लिए आपस झुंड में विवाद करते दिखाई देने लगे हैं।
अब उनको उस श्रेणी से बाहर कर दिया गया है और तेंदूखेड़ा ब्लाक के जिन मार्गो पर यह बंदर दिखते हैं वह लगे पेड़ो में गर्मियों के दिनों मे न पत्ती रहती है न फल इसलिए बंदरों को अपना भरण पोषण करने मुख्य मार्गो पर बैठना पड़ता था। गुजरने वाले राहगीर आज भी बंदर जो हनुमान का स्वरूप मानते हैं इसलिए उनके भोजन के लिए सब्जी, फल, चने जैसी सामग्री लेकर पहुंचते हैं।
अब बंदरों को मनुष्य की फेंकी गई सामग्री ज्यादा पसंद आने लगी है इसलिए उन्होंने जंगल में लगी पत्ती और फलो को छोड़ मनुष्य के भोजन की आदत आ गई है, जिसके लिए सुबह से शाम तक वह मुख्य मार्गो पर झुंंड में बैठे रहते हैं।
अभी बंदरों को एक जगह भोजन मिलने से उनके अंदर आलसीपन आना भी शुरू हो गया है जो उके लिए नुकसानदायक है। सड़क पर भोजन डालने से खाते समय कई बंदरों की मौत भी हो चुकी है, इसलिए राहगीरों से अपील भी है बंदरों की आदतों में सुधार लाना है तो सड़कों पर उनको भोज सामग्री खाने न दें।