Damoh News: तेंदूखेड़ा (नईदुनिया न्यूज)। नौरादेही अभयारण्य में सालों से अफ्रीकन चीता लाए जाने की कवायद चल रही थी जिसके लिए पूर्व डीएफओ चीता देखने अफ्रीका भी गए थे और वहां से वापस आने के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम भी शुरु किया गया था, लेकि न पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तीस सदस्यीय टीम प्रदेश के अन्य अभयारण्य के साथ ही नौरादेही का निरीक्षण करने आई थी। जिसने अपनी रिपोर्ट बनाकर केंद्र सरकार को दी है और सरकार ने रिपोर्ट के आधार पर मुरैना और श्योपुर जिले के बीच बसे कूनो पालपुर पार्क में चीता लाए जाने की अनुमति दे दी है। नौरादेही अभयारण्य में कुछ कमियां टीम को मिली थी जिससे यह चीता प्रोजेक्ट उसके हाथ से निकल गया।
नौरादेही अभयारण्य को मिला तीसरा स्थान
तीन जिलों में फैले नौरादेही अभयारण्य में चीता लाने की तैयारियां जोरों से चल रही थीं। ऐसा माना जा रहा था कि भारत से विलुप्त हो चुके चीता को नौरादेही अभयारण्य में ही लाया जाएगा पूरे बुंदेलखंड इलाके के लिए यह सबसे बड़ी सौगात थी। चूंकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ही चीता भारत लाया जाना था और पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने चीता को भारत में शिफ्ट करने की अनुमति दे दी और तीस सदस्यी टीम का गठन भी कर दिया। जिसे नौरादेही अभयारण्य के अलावा कूनो पार्क व अन्य अभयारण्य का निरीक्षण करने जाना था।
देहरादून से आई टीम ने नौरादेही अभयारण्य का निरीक्षण किया इसके अलावा कूनो पालपुर पार्क जो कि मुरैना और श्योपुर जिले के बीच में है वहां भी टीम चीता के लिए उपयुक्त स्थान देखने पहुंची थी। इसके अलावा गांधी सागर पार्क और राजस्थान के अभयारण्य का निरीक्षण भी किया था जिसमें से कूनो पालपुर पार्क का चयन चीता लाने के लिए टीम के द्वारा किया गया है और इसे पहला स्थान मिला है। दूसरे स्थान पर गांधी सागर पार्क और तीसरे स्थान पर नौरादेही अभयारण्य है।
बाघों का होना और व्यवस्था में कमी बनी बाधा
नौरादेही अभयारण्य प्रदेश का सबसे बड़ा अभयारण्य है, लेकिन देहरादून से आई टीम को यहां कमियां मिली और इस अभयारण्य को चीता के लिए सही नहीं माना। टीम के सदस्यों को यहां फैंंसिंग की कमी दिखी और घास के मैदान भी कम मिले चूंकि चीता घास में रहता है और यहीं छिपकर अपना शिकार करता है।
नौरादेही अभयारण्य में मांसाहारी जानवरों में बाघ और बाघिन के साथ तीन शावक भी रह रहे हैं। जिसके चलते टीम ने चीता प्रोजेक्ट के लिए नौरादेही को उपयुक्त नहीं समझा। टीम के सदस्यों का कहना था कि हो सकता है बाघ चीता को देखकर उस पर हमला कर दें और इसीके चलते देहरादून से आई टीम ने नौरादेही अभयारण्य को तीसरे स्थान पर रखा। जबकि कूनो पालपुर पार्क और गांधी सागर पार्क में बाघ जैसा कोई बड़ा जानवर नहीं है इसलिए यहां कूनो पालपुर पार्क को चीता के लिए सही माना गया।
कुनो पालपुर को नहीं मिले बब्बर शेर
गौरतलब हो कि कूनो पालपुर पार्क का निर्माण मुख्य रुप से गुजरात से बब्बर शेर लाने के लिए कि या गया था, लेकि न गुजरात सरकार ने कूनो पालपुर पार्क को बब्बर शेर नहीं दिए और इसीके कारण वह पार्क बड़े जानवर से खाली पड़ा है। हालांकि यहां छोटे जानवर बहुत हैं, लेकिन बड़ा मांसाहारी जानवर नहीं है और इसीके कारण यहां चीता आसानी से रह सकता है।
चीता को भारत लाने का प्रयास साल 2010 से चल रहा है और साल 2017 में मप्र के सागर जिले में आने वाले नौरादेही अभयारण्य में चीता लाने की सहमति बनी थी और इसके तहत नौरादेही अभयारण्य के अंतर्गत आने वाले गांव का विस्थापन भी कराया गया था, लेकि न लगातार चीता प्रोजेक्ट में रुकावटें आती रही और चीता आने के पहले यहां साल 2018 में बाघ-बाघिन को शिफ्ट कर दिया गया। जिनके तीन शावक भी हैं और इसीके चलते चीता प्रोजेक्ट नौरादेही अभयारण्य के हाथ से निकल गया। कूनो पालपुर पार्क 28 वर्ष पहले बनाया गया था यहां गुजरात से बब्बर से लाने थे और इसीके कारण पूरा पार्क खाली पड़ा है, लेकिन शेर नहीं आ पाए।
इस संबंध में नौरादेही डीएफओ राखी नंदा ने बताया कि यह बात सही है देहरादून से आई सर्वे टीम ने चीता लाने कूनो पालपुर पार्क का चयन किया है और दूसरा स्थान गांधी सागर पार्क को दिया है। नौरादेही अभयारण्य को तीसरा स्थान मिला है। टीम को नौरादेही में कु छ फैंंसिंग की कमी मिली है जिसे शीघ्र पूरा करने के निर्देश दिए है। साथ ही नौरादेही में बाघ का होना भी चीता के लिए उपयुक्त नहीं माना गया इसलिए चीता प्रोजेक्ट नौरादेही अभयारण्य के हाथ से निकल गया, लेकिन भविष्य में हो सकता है कि चीता नौरादेही लाया जाए।