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अशोक विजयादशमी मनाने जुड़े बौद्ध अनुयायी ।
दमुआ। करुणा बुद्ध विहार में अशोक विजय दशमी एवं धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर क्षेत्र के बुद्ध तथा आंबेडकर अनुयायी जुड़े। आज ही के दिन बाबा साहब आंबेडकर ने नागपुर स्थित दीक्षा भूमि में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। साल 1956 के अक्टूबर माह की 14 तारीख को विजया दशमी थी। तभी से बौद्घों और आंबेडकर अनुयायियों के लिए यह पर्व महत्वपूर्ण हो गया। बौद्ध विहार में जुड़े अनुयायियों ने बुद्ध वंदना के साथ त्रिशरण पंचशील ग्रहण किया। इस मौके पर वक्ताओं के रूप में अशोक विजया दशमी और इसी दिन बाबा साहब द्वारा बौद्ध धम्म स्वीकारने की घटना पर प्रकाश डालते हुए बौद्धों के लिए इसके महत्व पर प्रकाश डाला गया। वक्ताओं ने बाबा साहब के जीवन पर तथा उनके द्वारा समाज और देश के लिए दिए गए योगदान के विषय में जानकारी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करुणा बुद्धविहार अध्यक्ष मनोज दवंडे ने की। मंच संचालन समता सैनिक दल अध्यक्ष ईशान सातनकर ने किया। करुणा बौद्ध विहार समिति के पूर्व अध्यक्ष विनोद निरापुरे और कमल चौकीकर ने वक्ताओं के रूप में बौद्ध उपासकों, उपासिकाओं से कहा हमारे लिए यह दिवस बौद्ध धम्म और बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर दोनों के लिहाज से महत्वपपूर्ण है, क्योंकि सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद आज ही दिन यह कहते हुए धम्म स्वीकार किया था कि दूसरों पर विजय पाने वाला नहीं बल्कि खुद पर जीत हासिल करने वाला वास्तविक विजयी कहलाता है। सम्राट अशोक के बुद्ध धम्म अपनाने की वजह से यह दिन विजया दशमी कहलाया। वक्ताओं ने उस दौर के समृद्ध भारत की तस्वीर खींचते हुए कहा कि राष्ट्र की सीमा काबुल, कंधार तक थी और राष्ट्र विश्व का 33 प्रतिशत उत्पादन अकेला ही करता था। बड़े-बड़े विश्वविद्यालय सम्राट अशोक काल में ही अस्तित्व में आए, जिसकी वजह से उस समय भारत में पढ़े-लिखे शिक्षितों की संख्या 80 प्रतिशत थी।