नईदुनिया प्रतिनिधि, छतरपुर। बुंदेलखंड में इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लहर चल रही थी लोग बदलाव के मूंड में नजर आ रहे थे। कांग्रेस की हवा को देखकर कहीं न कहीं भाजपाई परेशान थे। लेकिन एनवक्त पर कांग्रेस अपनी ही अंदरूनी राजनीति में उलझ गई और भाजपा की रणनीति सफल हो गई। हुआ ये कि बुंदेलखंड में कांग्रेस को जहां बड़ी संख्या में सीटें मिलने की उम्मीद थी वहां सिर्फ सात सीटें ही मिल सकी। यह सीटें भी कांग्रेस की मेहरबानी से नहीं बल्कि जनता ने दिलाई हैं।
कांग्रेस को मिली करारी हार के पीछे कहीं न कहीं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की रणनीति रही है। क्योंकि इन्होंने इस बार चुनावी मैदान में उन लोगों को उतारा जिनको चुनावी सर्वे में जनता ने पसंद नहीं किया। फिर भी कांग्रेस से टिकट लेने में कामयाब होने वाले यह चेहरे चुनावी रण में हार गए और कांग्रेस का सफाया कराने में सहभागी बन गए।
चुनाव से पहले तक कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और बुंदेलखंड के प्रभारी बनाए गए अरुण यादव अपने अपने नेताओं की पीट पर हाथ ठोकते रहे। जब कांग्रेसी कार्यकर्ता कमलनाथ के पास टिकट लेने गए तो उनको टिकट का भरोसा दे दिया गया। भरोसा मिलने के बाद एनवक्त पर उनका टिकट काट दिया गया। इस कारण कांग्रेस की अधिकतर सीटों पर बागी खड़े हो गए और कांग्रेस की सफलता में रोड़ा साबित हुए।
चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ कहते रहे कि जिनका नाम सर्वे में आएगा उनको टिकट देंगे। चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले कार्यकर्ता अपनी अपनी टीमें लेकर क्षेत्र में दौड़ते रहे। अगर राजनगर की बात करें तो मुन्ना राजा के बेटे सिद्धार्थ बुंदेला का नाम लोगों के बीच खूब चला।
क्षेत्रीय लोग नए चेहरे को पसंद कर रहे थे लेकिन कांग्रेस ने फिर पुराने चेहरे विक्रम सिंह नातीराजा को ही रिपीट कर दिया। लेकिन उनको बड़ी हार झेलनी पड़ गई। इधर महाराजपुर में अरुण यादव ने टिकट दिलाने का भरोसा अलग दे रखा था। संगठन के लोग बीच बीच में आ रहे थे वो अलग टिकट मांगने वालों की पीठ थपथपाते रहे। बाद में यह थपथपाहट भारी पड़ गई।
छतरपुर जिले की तीन सीट छतरपुर, महाराजपुर और चंदला में बागियों की नाराजगी कांग्रेस को अखर गई। जितनी तेजी से बागी चुनाव लड़ रहे थे उतनी ही भाजपा उत्साहित थी। क्योंकि इन बागियों की नाराजगी से सीधा फायदा भाजपा प्रत्याशी को होने वाला था। जब चुनाव हुए तो यहीं फायदा सामने आया। चंदला में पुष्पेंद्र अहिरवार ने बड़ी संख्या में कांग्रेस के वोट काट दिए और कांग्रेस के हरिप्रसाद अनुरागी हार गए।
छतरपुर में कांग्रेस से बागी हुए डीलमणि सिंह की नाराजगी वर्तमान विधायक आलोक चतुर्वेदी को ले डूबी। दस हजार से ज्यादा वोट पाने का असर कांग्रेस पर हार के रूप में पड़ा। भाजपा प्रत्याशी ललिता यादव ने 2013 का चुनाव दोहरा दिया। इधर महाराजपुर में कांग्रेस को बड़ी हार झेलनी पड़ी है। जहां नाराज कांग्रेसियों को अगर मनाया होता तो समीकरण बदल सकते थे। हालांकि इस बार कामाख्या के नाम ही लहर में किसी के समीकरण नहीं चल सके।