MP News: नईदुनिया प्रतिनिधि, बुरहानपुर। भावसा बांध के पानी से घिरे पेड़ पर साढ़े चार माह से फंसे वानरों को उनके हाल पर छोड़ने वाले जिम्मेदार अधिकारियों का अमानवीय चेहरा जब दुनिया के सामने आया तो उन्हें मानव धर्म याद आ गया।
पेड़ पर रह रहे अपनों को खो चुके पांच वानरों को निकालने के लिए वन अमले ने जतन शुरू कर दिए हैं। इसके लिए अमला लकड़ी के लट्ठों और रस्सी से एक सीढ़ीनुमा पुल तैयार कर रहा है। ढाई सौ मीटर लंबा यह पुल बुधवार तक तैयार हो पाएगा।
साथ ही वानरों के लिए केले भी रखे हैं। बता दें कि ग्राम भावसा बुरहानपुर जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर है और वहां से भी करीब पांच किमी दूर पहाड़ों से उतरते पानी को रोकने के लिए बांध बनाया गया है।
जुलाई माह में बांध में पानी आ जाने से बीच में इमली के पेड़ पर रह रहे वानर घिर गए, लेकिन जिम्मेदारों ने इन्हें बचाने के कोई प्रयास नहीं किए। वन और जल संसाधन विभाग की लापरवाही से पानी से घिरे पेड़ पर फंसे 55 में से 50 वानरों की मौत की खबर नईदुनिया में मंगलवार को प्रमुखता से प्रकाशित की गई है। इससे वन विभाग में हड़कंप मच गया।
मंगलवार दोपहर उप वन मंडलाधिकारी अजय सागर, बोदरली रेंजर विक्रम सुलिया, शाहपुर रेंजर संजय मालवीय सहित अन्य कर्मचारी भावसा डैम पहुंचे और शेष बचे पांच वानरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए जतन करना शुरू किया। वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में चार बड़े ट्यूब पर बनाया गया मचान पेड़ के पास रखा गया है। इसे रस्सी से बांधा गया है।
वन विभाग द्वारा वानरों को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास कितने सफल होंगे, इसे लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि जो भी उपाय किए जा रहे हैं, वे संभावित हैं। वन विभाग के पास टाइगर रिजर्व और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी सहित मुख्यालय में विशेषज्ञ मौजूद हैं। उन्हें इस तरह के रेस्क्यू आपरेशन का अनुभव भी है, लेकिन अब तक विभागीय अफसरों ने न तो उनकी राय ली है और न मदद मांगी है।
वन विभाग द्वारा लकड़ी और रस्सी से पानी पर तैरने वाला सीढ़ीनुमा पुल बनाना रामायण काल की याद दिलाता है। तब माता सीता को लंका से वापस लाने के लिए वानर सेना ने पानी पर तैरने वाले पत्थरों से बड़ा पुल तैयार किया था। आज उन्हीं वानरों को बचाने के लिए हमें लकड़ी का पुल बनाना पड़ रहा है।