संदीप परोहा, बुरहानपुर। यह मनुष्यता पर कलंक की एक ऐसी कहानी है, जिसे जब-जब याद किया जाएगा, तब-तब हम मनुष्यों की रूह कांप उठेगी और हमें मनुष्य होने पर शर्मिंदगी होगी। दरअसल, बुरहानपुर जिले में मनुष्यों द्वारा अपने फायदे के लिए बनाया गया एक बांध 50 निरीह बंदरों की मर्मांतक मौत का कारण बन गया है। नया बना यह बांध बीती जुलाई की बरसात में जब पूरा भरा, तो एक पेड़ इस बांध की डूब में आ गया और इस पर रहने वाले 55 बंदर पेड़ पर ही फंस गए। फिर शुरू हुआ भूख और प्यास से अंतहीन लड़ाई का सिलसिला, जिसने साढ़े चार माह में 50 बंदरों को तिल-तिलकर मरने पर मजबूर कर दिया।
शासकीय अधिकारियों को इसकी जानकारी थी लेकिन वे खानापूर्ति करते रहे। वे अपनी ड्यूटी के लिए जरा भी संवेदनशील और शर्मिंदा होते, तो मर जाने वाले 50 वानर आज जिंदा होते। भारत के धार्मिक व लोकजीवन में पूज्य माने जाने वाले वानरों के एक-एक कर मरने की यह घटना बुरहानपुर जिले के सुदूर गांव भावसा में हुई है। इस मर्मांतक कहानी की शुरुआत जुलाई माह में तब हुई, जब करीब 35 करोड़ की लागत से बना भावसा बांध तेज वर्षा से अचानक भर गया और 55 वानर इमली सहित अन्य पेड़ों पर फंस गए।
ये करीब साढ़े चार माह तक पेड़ के पत्ते व छाल खाकर जिंदगी की जंग लड़ते रहे। मूलत: इनका आहार फल आदि होता है, इसलिए पत्ते उनकी भूख शांत नहीं कर पाए। अंतत: एक सप्ताह पहले (नवंबर माह की शुरुआत में) भूख व बीमारी से बेहाल वानरों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ और एक-एक करते वे जिंदगी से हारते गए और मर-मरकर बांध के पानी में गिरते रहे। अब केवल पांच वानर जिंदा बचे हैं, जिनके लिए ग्रामीण जैसे-तैसे भोजन पहुंचा रहे हैं। सरकारी अफसर अब भी इन वानरों के लिए कतई चिंतित दिखाई नहीं दे रहे।
ग्रामीण गोविंदा व अन्य का कहना है कि उन्हें पहले इसकी जानकारी नहीं लग पाई थी। बांध में मछली मारने गए मछुआरों ने सूचना दी, तो वानरों के लिए भोजन पहुंचाना शुरू किया। ग्रामीण अब बांध बनाने वाले जल संसाधन विभाग और वन विभाग के अफसरों को दोषी ठहरा रहे हैं। उनका आरोप है कि हिंसक वन्य जीवों की मौत होने पर ग्रामीणों को जेल में डाल दिया जाता है, लेकिन वानरों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए।
भावसा बांध का निर्माण इसी वर्ष पूरा हुआ। यह वन क्षेत्र से लगा है। नियमानुसार बांध को भरने से पहले संबंधित विभाग अच्छी तरह जांच करता है कि डूब क्षेत्र में कोई इंसान या वन्य प्राणी तो नहीं। किंतु दोनों विभागों ने यह औपचारिकता नहीं निभाई। नतीजा, 50 वानरों को तिल-तिलकर मरना पड़ा। इधर, वानरों की मौत का मामला उछलने के बाद वन विभाग के अफसर शेष बचे पांच वानरों को बचाने के लिए रेस्क्यू आपरेशन चलाने की बात कह रहे हैं, किंतु ये प्रयास खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं। जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री अरुण सिंह चौहान तो कहते हैं- हमारे विभाग का काम केवल बांध बनाना था।
वन्य प्राणी विशेषज्ञ सोहनलाल दसोरिया बताते हैं कि बंदर को पानी से कम लगाव होता है। वनक्षेत्र में भी बंदर जलस्रोत के नजदीक कम जाते हैं। वैसे नदी, तालाब के किनारे पर बंदर रहते हैं और उन्हें तैरना भी आता है। किंतु वे पानी में जाना पसंद नहीं करते।
ग्रामीणों से बांध डूब क्षेत्र में वानरों के फंसे होने की जानकारी मिली थी। उन्हें बाहर निकालने के लिए नाव लगाई थी, लेकिन वे पेड़ से नहीं उतरे। उन्हें बचाने के लिए फिर प्रयास किए जाएंगे।
- विक्रम सिंह सूर्या, रेंजर, बोदरली
ग्रामीणों के आरोप निराधार हैं। हमारा काम बांध बनाना था। जुलाई में तेज वर्षा से अचानक बांध में पानी आ गया था। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है।
- अरुण सिंह चौहान, कार्यपालन यंत्री, जल संसाधन विभाग, बुरहानपुर