World Water Day: भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। नदियों के ऊपर उड़ने वाले टिड्डे और विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की मछलियां अब बताएंगी कि नदियां कितनी स्वस्थ है और नदियों का जल कितना स्वच्छ है। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) अब इसी आधार पर नर्मदा, ताप्ती, बेतवा सहित अन्य नदियों का हेल्थ कार्ड बना रहा है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने इसके लिए एक गाइड लाइन जारी कर विश्वविद्यालयों को भी इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। बीयू के पर्यावरण विशेषज्ञ डा. विपिन व्यास कई विद्यार्थियों के समूह के साथ करीब दो साल से नदियों का हेल्थ इंडेक्स तैयार कर रहे हैं, ताकि उनका हेल्थ कार्ड तैयार किया जा सके। इसमें तालाबों के पानी की सेहत से लेकर उसके प्राकृतिक स्वरूप और पर्यावरणीय संतुलन में उसकी क्षमता का भी आकलन किया जा रहा है। अभी तक किए गए शोध में यह बात सामने आई है कि प्रदेश में नदियों के आसपास 30 प्रकार के टिड्डे उड़ते हैं, जो नदियों को साफ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शोध में यह भी सामने आया है कि अगर किसी नदी के पास टिड्डों की संख्या अधिक है तो पता चल जाता है कि यहां का पानी स्वच्छ है। इसी तरह अगर नदियों में विभिन्न प्रजाति की मछलियां पाई जाती हैं तो नदियां स्वस्थ हैं, क्योंकि मछलियां पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाती हैं।
पूरे जीवन चक्र में मिलता रहता है फायदा
प्रो. विपीन व्यास ने शोध में पाया है कि नदियों के ऊपर उड़ने वाले ये टिड्डे जल के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करते हैं। दरअसल टिड्डे जब छोटे होते हैं तो जल के अंदर रहते हैं। तब ये छोटे-छोटे कीड़ों को खाकर नदियों को स्वच्छ करते रहते हैं। इसके बाद जब ये बड़े हो जाते हैं तो पानी के ऊपर रहने लगते हैं, तब भी ये कीड़े-मकोड़ों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि अमूमन टिड्डों की संख्या जहां अधिक होता है, वहां का पानी साफ होता है।
तटबंधीय क्षेत्र महत्वपूर्ण
नदी के दोनों तरफ तटबंधीय क्षेत्र होता है, जो नदियों के स्वस्थ होने का परिचायक होता है। इस कारण तटबंधीय क्षेत्र का मजबूत होना जरूरी है। तटबंधीय क्षेत्र मिट्टी के कटाव को रोकती है। आस-पास के प्रदूषकों को अंदर नहीं आने देती और जीव-जंतुओं को संरक्षण देती है। शोध में इसका भी आंकलन किया जा रहा है।
इसलिए महत्वपूर्ण है नदियों का हेल्थ कार्ड
हेल्थ कार्ड में नदियों के जल का गुण-अवगुण अंकित होगा। इसमें तटबंधीय क्षेत्र, जैव विविधता का आकलन किया जा रहा है। इस कार्ड के बनाए जाने के बाद प्राधिकरण नदियों की दशा-दिशा सुधारने की कवायद करेगा। बता दें कि इस हेल्थ कार्ड के साथ-साथ जलाशयों के आसपास की सामाजिक और आर्थिक प्रोफाइल भी तैयार की जानी है।
इनका कहना है
नदियों के हेल्थ इंडेक्स जानने के बाद उसे सुधारकर न केवल जल संरक्षण की दिशा में काम किया जा सकता है, बल्कि प्रदेश की आबोहवा को भी सुधारा जा सकता है। इससे क्लाइमेट चेंज के हानिकारक असर को भी कम किया जा सकेगा। हालांकि किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए अभी दो साल और लगेंगे।
डा. विपिन व्यास, डीन, जीव विज्ञान विभाग, बीयू