मनोज तिवारी भोपाल। नईदुनिया। शाही पक्षी कहे जाने वाले खरमोर के नौ जोड़े इन दिनों मध्य प्रदेश की सैर पर हैं। इनमें से पांच जोड़ों ने खरमोर अभयारण्य पानपुरा (सरदारपुर, धार) में डेरा डाला है तो नीमच के जीरन और झाबुआ के मोरझिरी क्षेत्र में भी दो-दो जोड़े दिखाई दे रहे हैं।
पक्षियों की दुर्लभ प्रजाति में शुमार खरमोर के जोड़े लगातार तीसरे साल पानपुरा आए हैं। यही कारण है कि वन विभाग के राज्य स्तर के अधिकारी पक्षियों को देखने से खुद को नहीं रोक पाए। अभयारण्य में पिछले साल की तुलना में इनकी संख्या बढ़ी है तो वर्ष 2018 की तुलना में कम हुई है। यहां वर्ष 2009 से 2017 तक ये पक्षी नहीं देखे गए थे।
जानकारों के मुताबिक खरमोर पक्षी पानपुरा और अन्य दोनों जगह प्रजनन काल में ही आते हैं। वे मानसून के हिसाब से हर साल अगस्त में आते हैं और सितंबर अंत या अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में वापस लौट जाते हैं। अभयारण्य के एसडीओ राकेश डामोर बताते हैं कि 20 हजार 343 हेक्टेयर में फैले खरमोर अभयारण्य के घास के मैदान को पक्षी पसंद करते हैं। इनमें से 584 हेक्टेयर वनभूमि है, जिसे तार फेंसिंग कर सुरक्षित किया गया है।
इसमें किसी तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं होता है। बल्कि कोशिश की जाती है कि पक्षियों के आने से पहले मूंग सहित अन्य फलीदार फसलों के बीज छिड़क दें, क्योंकि इन फसलों में कीड़े लगते हैं, जिससे खरमोर का पेट भरता है।
आठ साल नहीं आए पक्षी
खरमोर अभयारण्य में वर्ष 2009 से 2017 तक पक्षी नहीं आए। तब वन अधिकारी चिंता में पड़ गए थे। इस बीच अभयारण्य को तार फेंसिंग कर सुरक्षित किया गया और घास के मैदान तैयार किए गए। तब कहीं वर्ष 2018 में आठ जोड़े दिखाई दिए। 2019 में यह फिर तीन जोड़े रह गए। वन अधिकारी बताते हैं कि इन पक्षियों को जरा-सी भी दखलंदाजी पसंद नहीं हैं।
इन्हें अहसास भी हो जाए कि कोई देख रहा है तो छिप जाते हैं। हर साल 40 लाख का खर्च वर्ष 1983 में अस्तित्व में आए खरमोर अभयारण्य पर सरकार हर साल औसत 40 लाख रुपये खर्च करती है। यहां आठ चौकीदारों के अलावा तीन नियमित कर्मचारी पदस्थ हैं। संरक्षण में ग्रामीणों का सहयोग नहीं बताया जाता है कि इस दुर्लभ पक्षी के संरक्षण में ग्रामीणों का सहयोग नहीं मिल रहा है।
अभयारण्य की सीमा में 11 ग्राम पंचायतों के 33 गांव हैं। अभयारण्य का 19 हजार 759 हेक्टेयर क्षेत्र निजी भूमि है, जिसमें ग्रामीण खेती करते हैं। वे कीटनाशक का भी भरपूर इस्तेमाल करते हैं। चूंकि सरकारी कागजों में यह जमीन अभयारण्य के रूप में दर्ज है, इसलिए खरीदी और बेची नहीं जा सकती है। ग्रामीणों की खरमोर से नाराजगी का कारण भी यही है।
इनका कहना है
इस बार प्रदेश में तीन स्थानों पर खरमोर पक्षी दिखाई दे रहे हैं। उनकी सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गए हैं।
- जेएस चौहान, अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यप्राणी), वन विभाग, मप्र