Naidunia Dhananjay P Singh column: दोस्ती के राग में अनमना सा सुर
कई रहस्य समेटे शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय की एकरूपता का सावन माह में दर्शन दिग्गज दार्शनिकों के लिए पहेली बना हुआ है।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Wed, 18 Aug 2021 05:00:31 PM (IST)
Updated Date: Wed, 18 Aug 2021 05:00:31 PM (IST)
Naidunia Dhananjay P Singh column: धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। मप्र की राजनीतिक नौटंकी खास है, क्योंकि इसमें गीत-संगीत के साथ अभिनय और एक ही कलाकार की कई भूमिकाएं आदि सबकुछ हैं। कई रहस्य समेटे शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय की एकरूपता का सावन माह में दर्शन दिग्गज दार्शनिकों के लिए पहेली बना हुआ है। दोनों गले में हाथ डाले गाते हैं- ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर..। चलिए साहब गीत मधुर व कर्णप्रिय लगा, लेकिन डेढ़ साल बाद भी शिवराज कैबिनेट में एकरस के अभाव पर कौन, कब कौन सा गीत पेश करेगा? कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए नेताओं में कई हैं, जिनके अनमने सुर सुनाई देते रहते हैं। संगठन में आए दिन महसूस होता रहा है कि सरकार एक दल के बजाय दो धड़ों में संतुलन का गणित बनकर रह गई है। हर कदम पर नवागत नेताओं की संतुष्टि को साधते देखा गया है। ऐसे में जरूरी है कि शिव-ज्योति भी ऐसा तराना छेड़ दें, जिससे समरसता में बची कसर पूरी हो जाए।
ममता और शिवपाल की दस्तक
मध्य प्रदेश का सियासी इतिहास दो दलों का ही रहा है, जिसमें तीसरी ताकत की कई कोशिशें चुनावों में औंधे मुंह गिरी हैं। अब खंडवा लोकसभा सहित तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के बहाने ममता दीदी तृणमूल कांग्रेस और शिवपाल सिंह यादव प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की दस्तक की तैयारी में हैं। वैसे भी देशभर में ओबीसी पर सियासत की सबसे ज्यादा तपिश मप्र में ही महसूस की जा रही है। चूंकि इन उपचुनावों से सरकार की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा, तो ममता और शिवपाल इसे अवसर मानकर चल रहे हैं। ममता खुद को अल्पसंख्यक वर्ग की हितैषी के रूप में पेश करती रही हैं, वहीं शिवपाल ओबीसी, विशेषकर यादव वोट पर नजर रखे हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस आकलन कर रही है कि वोट बंटने की दशा में उसका क्या नफा-नुकसान होगा। इधर, भाजपा ओबीसी मामले पर भी शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के भरोसे निश्चिंत मुद्रा में है।
ओबीसी की पतवार से होगी नैया पार
सियासत में मास्टर स्ट्रोक लगाने में माहिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने ओबीसी को आरक्षण का ऐसा दांव खेला है, जिससे कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष न निगलने, न उगलने की स्थिति में है। इसका सबसे ज्यादा शोर-शराबा मध्य प्रदेश में सुना गया, लेकिन यहां भी कांग्रेस की राह मुश्किल है। भाजपा के लिए सुकून है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद ओबीसी हैं, वहीं उनकी कैबिनेट में एक-तिहाई मंत्री भी इसी वर्ग से आते हैं। चौहान ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की प्रतिबद्धता जताते हुए वर्ग की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक आदि की दशा जानने के लिए आयोग के गठन की घोषणा कर दी है। उधर, कांग्रेस की मुश्किल है कि जो ओबीसी चेहरे पार्टी के पास हैं, उन्हें भी मौका देना मुश्किल है, क्योंकि बड़ी वजह आपसी खींचतान और पुत्रमोह है। ऐसे में उपचुनाव से लेकर आने वाले विस और लोकसभा चुनाव तक ओबीसी की पतवार ही नैया पार कराएगी।
कम्प्यूटर गायब, अब मिर्ची की हसरतें
सियासत की मलाई किसे आकर्षित करके जनसेवा के लिए उतावला बना दे, कहा नहीं जा सकता। भाजपा में अवसर पाकर जो कम्प्यूटर बाबा बाद में कांग्रेस के हितैषी बन बैठे थे, वे तब से सियासी परिदृश्य से गायब हैं, जब उनका आश्रम अवैध पाए जाने पर जमींदोज किया गया। बाबा अब न भाजपा को निशाने पर रखते हैं, न नर्मदा की फिक्र जताते हैं और न ही कांग्रेस के लिए साधु-संतों की टोली जाेडते दिखते हैं। उनके अदृश्य होने का लाभ लेने की कामना अब मिर्ची बाबा के मन में कुलांचे मार रही है। वही मिर्ची बाबा, जिन्होंने दिग्विजय सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने को लेकर न जाने कितनी भविष्यवाणियां की थीं। वे इन दिनों सियासत में जगह बनाने के लिए काफी प्रयासरत हैं और कुछ नया करने की हसरत रखते हैं। अभी तो उन्हें ग्रीन सिग्नल मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। देखिए, कब उनके अरमान पूरे होते हैं।