MP Election 2023: धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। इस वर्ष पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन सभी राज्यों में भाजपा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश हमेशा से ही भाजपा का गढ़ रहा है इसलिए इस पर सभी की निगाहें हैं। मिशन-2024 यानी लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए सेमीफाइनल की तरह होंगे, जो भाजपा और आइएनडीआइए (विपक्षी दलों का गठबंधन) के बीच लड़ाई की दिशा तय करेंगे। मध्य प्रदेश भाजपा शासित बड़ा राज्य है इसलिए भाजपा के लिए यह किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।
मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों तैयार हैं। भाजपा इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ेगी तो कांग्रेस की ओर से केवल कमल नाथ ही एकमात्र चेहरा होंगे। मध्य प्रदेश में मिशन-2023 में भाजपा का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ‘लाड़ली बहना’ और अन्य नकद लाभ देने वाली योजनाओं पर है तो कांग्रेस अपनी गारंटियों और घोषणाओं की बदौलत जनता का भरोसा जीतने का प्रयास कर रही है।
चुनाव के तीन महीने पहले दोनों दलों में बराबरी की टक्कर तो है ही, दोनों की लोकप्रियता में भी शेयर मार्केट की तरह उछाल और गिरावट देखने को मिल रही है। कभी भाजपा का सेंसेक्स टाप पर दिखाई देता है तो कभी कांग्रेस का। बहरहाल, इस चुनावी कवायद का विश्लेषण किया जाए तो पहले जो भाजपा बहुत कमजोर सी दिख रही थी, वही अब आत्मविश्वास से भरी हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हर वर्ग को खुश करने की कोशिश ने कमल के फूल के गिरते सेंसेक्स को उछाल दे दी है। चुनावी प्रेक्षकों का मानना है कि शिवराज के तरकश में अभी और तीर बाकी हैं, जो वे कांग्रेस की घोषणाओं की हवा निकालने के लिए चलाएंगे।
किसान, कर्मचारी, पुलिस-पेंशनर, संविदाकर्मी, एससी-एसटी और गरीब महिलाओं के तीन करोड़ से ज्यादा बड़े वर्ग को साधकर शिवराज सिंह ने अपनी लाइन बड़ी कर दी है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भले ही यहां चुनाव की कमान संभालेगा लेकिन असली चुनाव शिवराज बनाम कमल नाथ के बीच ही होगा। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगा, जबकि आप, सपा, बसपा के अलावा कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी वजूद की तलाश में जोर-आजमाइश करेंगी। हालांकि, यह वोट काटने तक ही सीमित होंगी।
इधर, भाजपा पर हमले करने में कांग्रेस कोई अवसर नहीं छोड़ रही है। कांग्रेस आक्रामकता के साथ हर मोर्चे पर भाजपा की घेराबंदी कर उसे मनोवैज्ञानिक दबाव में लाने के प्रयास में है। इंटरनेट मीडिया हो या फिर मैदानी मोर्चा, कांग्रेस में कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जमीनी स्तर पर काम रहे हैं। पहली बार कांग्रेस ने बूथ प्रबंधन पर ध्यान दिया है। मंडलम और सेक्टर समितियां बनाईं और संगठन को मजबूत किया है। पटवारी भर्ती में गड़बड़ी का मामला हो या फिर आदिवासी या दलितों पर अत्याचार, कांग्रेस शिवराज सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
साफ्ट हिंदुत्व की लाइन पर कमल नाथ काफी आगे बढ़ चुके हैं। बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री से छिदंवाड़ा में कथा कराने के बाद अब सितंबर में कथावाचक प्रदीप मिश्रा की कथा प्रस्तावित है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा जबलपुर और ग्वालियर में जनसभा को संबोधित कर चुकी हैं। सरकार बनने पर उन्होंने प्रदेशवासियों को पांच गारंटी लागू करने का वचन दिया है। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 22 अगस्त को सागर और फिर राहुल गांधी विंध्य, मालवांचल सहित अन्य क्षेत्रों में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। इसी बीच, घोषणाओं और योजनाओं को लेकर भी दोनों पार्टियां डाल-डाल, पात-पात की रणनीति पर है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में एससी (अनुसूचित जाति) और एसटी (अनुसूचित जनजाति) वर्ग सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा करेंगे। मध्य प्रदेश में एसटी वर्ग के लिए 47 सीट आरक्षित हैं। इसमें से भाजपा के पास मात्र 16 सीटें हैं और कांग्रेस ने इतनी ही सीटें भाजपा से छीन ली थी। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इन वर्गों को साधने में जुटे हैं। इन दोनों वर्गों को साधने के नजरिये से ही प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश का दो बार दौरा किया। कांग्रेस भी एससी-एसटी को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
- विधायकों के प्रति क्षेत्र में एंटी इनकंबेंसी देखते हुए भाजपा को टिकट वितरण में पीढ़ी परिवर्तन को तवज्जो देनी होगी, नहीं तो विधायकों के विरुद्ध जनता का रुझान नुकसान पहुंचाएगा।
- मंत्रियों के प्रति क्षेत्र में नाराजगी है, कांग्रेस इसका लाभ लेते हुए मजबूत प्रत्याशी देने की तैयारी में है।
- ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कांग्रेस से आए नेताओं के साथ चुनावी समन्वय बनाना अब भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
- कांग्रेस के सामने कुनबे को संभालने की चुनौती है वरना चुनाव के समय पार्टी के नेता अपनी ही पार्टी के विरुद्ध गोल कर बैठेंगे।
दोनों के सामने चुनौतियां
1 - दोनों ही पार्टियां मतदाताओं को साधने के लिए रेवड़ियां बांटने में कसर नहीं छोड़ रही हैं। एससी-एसटी वर्ग के मतदाताओं को साधने में दोनों दलों ने ताकत झोंक दी है।
2 - दोनों दल सर्वे कर जनता की नब्ज टटोल रहे हैं। इसी आधार पर टिकट दिए जाएंगे। इससे अनुमान है कि बड़ी संख्या में टिकट कटेंगे। इसके बाद बगावत से निपटने की भी योजना बनानी होगी।
3 - युवा मतदाताओं की संख्या प्रदेश में तीस प्रतिशत से ज्यादा है। दोनों दलों के पास युवाओं के लिए कोई रोडमैप नहीं है, ऐसे में यह वर्ग किस पार्टी के साथ जाएगा, यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण होगा।