राज्य ब्यूरो नईदुनिया, भोपाल : मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की छह सीटों पर कम मतदान ने राजनीतिक दलों के साथ ही निर्वाचन आयोग की चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि बेहद गर्मी के कारण मतदाता घरों से नहीं निकले। 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार देशभर में औसत मतदान में दो प्रतिशत की ही कमी आई, लेकिन मध्य प्रदेश में लगभग 7.50 प्रतिशत घटा है। इस कारण प्रदेश के लिए अधिक चिंता की बात है।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत का कहना है कि जब मतदाता को यह आभास होने लगता है कि उसका प्रत्याशी जीत रहा है तो वह निश्चिंतता में मतदान करने नहीं निकलता। ऐसे में, उस दल को ज्यादा नुकसान होता है, जो जीत के प्रति आश्वस्त रहता है। गर्मी के चलते ही मतदान के आगामी चरण भी प्रभावित होने का अनुमान है।
वहीं, प्रथम चरण के लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव की तुलना में मतदान न करने वाले सात से आठ प्रतिशत मतदाता का रुख परिणाम को प्रभावित कर सकता है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में हुए पिछले कुछ चुनाव में यह देखने को भी मिला है कि कम मतदान होने का लाभ विपक्ष को हुआ है। 1991 में मतदान गिरा था तो 40 सीटों में से 28 कांग्रेस और 12 भाजपा को मिली थीं, तब कांग्रेस विपक्ष में थी।
मनोविज्ञानी डा. विनय मिश्रा कहते हैं कि आज लोगों की प्राथमिकताएं और सोच बदली है। हर व्यक्ति पहले खुद के लिए सोचने लगा है यानी पहले अपने लिए फिर समय बचा तो दूसरे कामों के लिए। चुनाव के दौरान भी लोगों को लगता है कि पहले अपना काम करने जाएं, मतदान करने नहीं। नतीजतन, मतदान प्रभावित होता है। कोरोना काल की परिस्थितियों के बाद तो लोगों में स्व के हित की भावना और बढ़ी है।
डा. मिश्रा कहते हैं कि किसी भी चुनाव में मतदाता का झुकाव किसी दल या प्रत्याशी के पक्ष में उसके मनोवैज्ञानिक-भावनात्मक प्रभाव या फिजिकल अपील के आधार पर सुनिश्चित होता है। मनोवैज्ञानिक तौर पर झुकाव उधर रहता है, जो पार्टी उनके विश्वास पर खरी उतरती है। ऐसे में, वह उसकी जीत के प्रति आश्वस्त होते हैं। सोचते हैं दूसरे लोग हैं तो वोट देने वाले, तो हम मतदान करने न भी जाएंगे तो भी दूसरे लोगों के वोट से जीत हो जाएगी।
एडीआर संस्था की राज्य समन्वयक रोली शिवहरे कहती हैं कि मतदान में कमी का एक तो गर्मी कारण है। राजनीति में दलबदल से राजनेताओं का रुख भी सीधा जनता को प्रभावित करने वाला नहीं रहा है। वह कहती हैं कि मैंने कई युवाओं से मतदान को लेकर बात की तो उनमें कुछ ने यह भी कहा कि राजनीति में बचा क्या है। युवाओं के मुद्दों को उतनी प्राथमिकता नहीं मिल रही है।
विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहना जैसे कई मुद्दे थे पर लोकसभा चुनाव में सीधा मतदाताओं को प्रभावित करने वाला कोई मुद्दा नहीं था। राष्ट्रीय मुद्दा ऐसा कोई नहीं है जो लोगों को अपील कर रहा हो। हितग्राही के नजरिए से ऐसा कोई विषय नहीं था।