मनोज तिवारी,भोपाल (राज्य ब्यूरो)। मध्य प्रदेश को युवा बब्बर शेर (एशियाटिक लॉयन) देने की सहमति देकर गुजरात मुकर गया है। अधिकारियों के स्तर पर दी गई सहमति पर विचार करने के नाम पर शेर देने की कार्रवाई रोक दी गई। अब मध्य प्रदेश को शेर देने की फाइल गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल तक जाएगी। वे ही अंतिम निर्णय लेंगे कि मध्य प्रदेश को शेर दिए जाएं या नहीं।
मध्य प्रदेश को बब्बर शेर देने को लेकर गुजरात के रवैये के चलते भारत सरकार की सिंह परियोजना अधर में है, इसलिए राज्य सरकार ने प्रदेश में शेर लाने का नया रास्ता निकाला था। योजना यह थी कि किसी चिड़ियाघर से युवा शेर लाए जाएंगे और वन विहार में रखकर ब्रीडिंग कराई जाएगी। उनके शावकों को जंगल के माहौल में रखा जाएगा और धीरे-धीरे उन्हें वाइल्ड (जंगली) बनाया जाएगा। अगले चरण में प्रदेश में एक संरक्षित क्षेत्र बनाकर उन्हें खुले जंगल में छोड़ा जाएगा। इसके लिए गुजरात के चिड़ियाघर से युवा शेर मांगे गए थे।
यह वन्यप्राणी अदला-बदली योजना के तहत था। गुजरात के वन अधिकारी शेर देने के लिए राजी हो गए और उनकी सहमति मिलने के बाद केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) ने भी मंजूरी दे दी। वन विहार के अधिकारी और डॉक्टर शेर पसंद करने के लिए गुजरात जाने वाले थे, पर ऐनवक्त पर गुजरात के अधिकारियों ने बताया कि फाइल मुख्यमंत्री तक जाएगी और वे ही अंतिम निर्णय लेंगे। आमतौर पर वन्यप्राणी अदला-बदली कार्यक्रम में मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक ही निर्णय लेते हैं।
कूनो में शेर लाने में आइयूसीएन की गाइड लाइन का पेंच
28 साल पहले (वर्ष 1992) श्योपुर के कूनो पालपुर में शुरू हुई सिंह परियोजना वर्ष 2003 में पूरी हो चुकी है। शेर लाने और उन्हें रखने की सारी व्यवस्थाएं जुटा ली गई हैं, इसके लिए कूनो पालपुर से 24 गांव शिफ्ट किए गए, पर गुजरात शेर देने को तैयार नहीं है। इसलिए कूनो पालपुर में वैकल्पिक रूप से चीता बसाया जा रहा है, जो दक्षिण अफ्रीका से अगले साल मध्य प्रदेश लाया जाएगा। 200 करोड़ से अधिक लागत की सिंह परियोजना पूरी करने के बाद मध्य प्रदेश ने गुजरात से शेर लेने के कई प्रयास किए।
सुप्रीम कोर्ट में मामला गया और कोर्ट ने वर्ष 2013 में भारत सरकार और गुजरात सरकार को छह माह में शेर कूनो पालपुर भेजने के निर्देश भी दिए, पर गुजरात ने इन निर्देशों का पालन नहीं किया। बल्कि आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) की गाइड लाइन की शर्त रख दी। इस गाइड लाइन की 35 में से 22 शर्तें मध्य प्रदेश पूरी कर चुका है, जबकि 13 शर्तें लॉग टाइम (लंबे समय) की हैं, जो शेर लाए जाने के बाद धीरे-धीरे ही पूरी होंगी।
फिर उत्तर प्रदेश को क्यों मिल गए शेर
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक शहबाज अहमद कहते हैं कि ये गुजरात सरकार की मोनोपॉली है। देश में कहीं और शेर न हो जाएं। ऐसा हुआ, तो पर्यटकों का बंटवारा हो जाएगा और गुजरात सरकार इसे अपनी अस्मिता से भी जोड़कर देखती है।
वहीं सेवानिवृत्त आइएफएस रामगोपाल सोनी कहते हैं कि शेर गुजरात की अस्मिता से जुड़ा है। सरकार कोई भी हो गुजरात के लोगों को नाराज नहीं करना चाहती है और अब तो चुनाव आने वाले हैं। ऐसे में शेर देने का फैसला लेना आसान नहीं है। जब ये पूछा गया कि गुजरात ने इटावा सफारी के लिए उत्तर प्रदेश को भी तो शेर दिए हैं, तो सोनी ने कहा कि वहां चिड़ियाघर के लिए दिए हैं और हम कुनबा स्थापित करने के लिए मांग रहे हैं। कल को हम प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे।
इनका कहना है
गुजरात के अधिकारी पहले शेर देने के लिए तैयार थे, हम तो शेर देखने के लिए जल्द ही अधिकारियों को भेजने वाले थे, पर अब सूचना आई है कि इस पर अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री लेंगे।
आलोक कुमार, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मध्य प्रदेश