शिखिल ब्यौहार, भोपाल। जल के बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं है। यह बात भी सच है कि अपनी आवश्यकताओं के लिए हमने प्रकृति का दोहन गलत तरीके से किया है। यदि यही हाल रहा तो भविष्य हमारे लिए बेहद कठिन परिस्थियों और चुनौतियों से भरा होगा।
दरअसल, प्रदेश में बेहद तेजी से जल स्तर गिर रहा है। प्रदेश के तमाम जिलों में केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट चौंकाने वाला खुलासा करती है। बीते 10 सालों में 63.24 प्रतिशत तक भूमिगत जल में गिरावट आई है। साल दर साल कई जिलों में गंभीर हालत पैदा हुए। 2007 से लेकर 2017 तक तैयार इस रिपोर्ट में हर जिले के पूर्व चिंहित कुएं पर रिपोर्ट तैयार की गई है।
भूमिगत जल स्तर को लेकर आगर मालवा, श्योपुर, टीकमगढ़, उमरिया और दतिया जिलों की हालत बेहद चिंताजनक है। वहीं देवास, डिडौंरी, ग्वालियर, होशंगाबाद, जबलपुर, मुरैना, रायसेन, शहडोल और शिवपुरी ऐसे जिले हैं जिनमें भूमिगत जल स्तर बेहद तेजी से गिरा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस भारी संकट के पीछे कई कारण है। पहला तो यह कि नियमों के विरुद्ध प्रकृति का दोहन और दूसरा शासन-प्रशासन की इस दिशा में की गई लापरवाही।
ऐसे हुआ सर्वे
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने प्रदेश के सभी जिलों में कुएं को 2007 में चिंहित किया। साथ ही साल दर साल जल स्तर की मॉनीटरिंग की गई। प्रदेश के सभी जिलों में कुल 1303 कुएं को चुना गया। हर साल नवंबर माह में कुएं के जल स्तर के आकड़ों लिए गए। 2007 से लेकर 2017 (नबंवर माह) की रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें पाया कि 63.24 प्रतिशत प्रदेश के भूजल स्तर में गिरावट आई है।
अब 500 फीट पर भी मुश्किल से मिल रहा पानी
भोपाल, दतिया, जबलपुर मुरैना, रीवा, टीकमगढ़ और देवास जैसे अन्य जिलों में भूमिगत जल स्तर गिरने से बोरिंग के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। राजधानी में दो साल पहले तक राजधानी के अधिकांश क्षेत्रों में 120 फीट से 170 फीट तक पानी मिल जाता था। वहीं कोलार, नीलबड़, रातीबड़ और सीहोर रोड की कई कॉलोनियों में 1000 फीट कर बोर करना पड़ रहा है। बाकी क्षेत्रों में जहां 200 फीट की गहराई में पानी मिल जाता था वहीं अब 500 से 700 फीट तक भूमिगत जल मिल रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी नलकूपों की स्थिति खराब है। भोपाल जिले में प्रशासन द्वारा 4000 नलकूप स्थापित किए थे। इसमें 378 आंशिक रूप से चालू है, 279 हैंडपंपो को असुधार योग्य होने के कारण निकाला जा रहा है और 143 को जल स्तर कम होने के कारण बंद कर दिया गया है।
जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध और स्थिति गंभीर
विशेषज्ञ बताते है कि गिरते जल स्तर के कई कारण है लेकिन प्रमुख कारण बोरिंग है। पूरे प्रदेश में बीते 15 सालों में बड़ी मात्रा में बोर कराए गए लेकिन इनके लिए प्रशासनिक अनुमति ही नहीं ली जाती। यदि नियमों की बात की जाए तो बिना अनुमति के बोर नहीं किया जा सकता। लेकिन अधिकारियों की सुस्त कार्रवाई के कारण प्रदेश में लगातार बोर की संख्या बड़ रही है। यह भूमिगत जल स्तर के लिए घातक साबित हो रहे हैं। वाटर हावर्ेिस्टंग को लेकर भी शासन-प्रशासन द्वारा कई पहल की गई। लेकिन इसके बाद भी अमल नहीं किया गया। जल विशेषज्ञ संतोष वर्मा बताते है कि प्रदेश में 60 फीसदी सरकारी इमारतों में ही वाटर हावर्ेिस्टंग की व्यवस्था नहीं की गई है और यह निगमों की अनदेखी है।
पर्यावरण से खिलवाड़ और गिरता जल स्तर
पर्यावरण विद् डॉ. सुभाष सी पांडे बताते हैं कि बीते सालों की अपेक्षा पर्यावरण के साथ खिलवाड़ ज्यादा किया जा रहा है। कैंचमेंट एरिया और ग्रीन वेल्ट क्षेत्र में अवैध रूप से निर्माण किए जा रहे हैं। यह स्थिति पूरे प्रदेश में है। इस कारण नदियों और तालाबों का जल स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है। भूमिगत जल का भंडारण जल स्त्रोतों पर भी निर्भर करता है। दूसरा कारण यह है कि 90 के दशक से सीमेटीकरण में तेजी आई वहीं वनों की कटाई भी की जा रही है। यह दोनों ही गिरते भूजल स्तर के बड़े कारण है।
इनका कहना है
जहां भूजल का दोहन बहुत ज्यादा हुआ है वहां पर जल स्तर गिरा है। इसका असर ट्यूब वेल, कुआं और नदियों के जल स्तर में देखने को मिल रहा है। नर्मदा जैसी नदियां सूख रही हैं। अगले साल छोटी नदियां तो दिवाली तक में ही सूख सकती हैं। जल स्तर को बढ़ाने के लिए बारिश का पानी सहेजना सबसे ज्यादा जरूरी है। इसका सबसे अच्छा तरीका वाटर हार्वेस्टिंग है।
केजी व्यास, पूर्व सलाहकार, राजीव गांधी वाटर शेड मिशन।