मनोज तिवारी, भोपाल(नवदुनिया स्टेट ब्यूरो)।मध्यप्रदेश के जंगल में बब्बर शेरों की दहाड़ सुनने का 28 साल पुराना सपना टूटने की स्थिति में आ गया है। शेर देने में गुजरात सरकार की ना-नुकुर और भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों का कुनो पालपुर को चीता परियोजना के लिए पसंद करना, इसी ओर इशारा कर रहा है। सरकार भी साफ कर चुकी है कि चीता परियोजना के लिए विशेषज्ञों को प्रदेश का जो संरक्षित क्षेत्र पसंद आएगा, वह दिया जाएगा। ऐसे में वन अधिकारी भी मानकर चल रहे हैं कि चीता सागर जिले के नौरादेही,मंदसौर-नीमच जिलों में फैले गांधीसागर अभयारण्य और शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क की बजाय कुनो पालपुर में ही बसाए जाएंगे।
भारत सरकार ने वर्ष 2010 में चीता परियोजना को मंजूरी दी है। इसके तहत अफ्रीका से चीता लाकर देश में बसाना है। पहले दिन से ही नौरादेही अभयारण्य में चीता बसाने की बात चल रही है। विशेषज्ञ भी इसे सही जगह बताते रहे हैं। यही कारण है कि वर्ष 2017 तक अभयारण्य खाली रखकर चीता के अनुकूल व्यवस्थाएं की गईं। जब अभयारण्य पूरी तरह से तैयार हो गया और चीता आने में देरी दिखाई दी, तब वहां बाघ शिफ्ट किए गए।
दिसंबर 2020 में चीता के लिए उचित स्थान तलाश करने के लिए मध्यप्रदेश आई सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी की सब कमेटी ने नौरादेही को दूसरे नंबर पर रखा है। विशेषज्ञों का तर्क है कि कुनो पालपुर में सिर्फ घास मैनेजमेंट करना है। जबकि दूसरे संरक्षित क्षेत्रों में ज्यादा काम करना होगा। जिस पर राज्य सरकार को खर्च करना पड़ेगा। इससे साफ है कि चीता नौरादेही अभयारण्य में नहीं, कुनो पालपुर में बसाए जाएंगे। पिछले दिनों वन विभाग की समीक्षा बैठक में यह बात सामने आ चुकी है।
बब्बर शेर के लिए खाली कराया कुनो
भारत सरकार ने वर्ष 1992 में सिंह परियोजना को मंजूरी दी है। दुर्लभ प्रजाति के इन शेरों (एशियाटिक लॉयन) का देश में सिर्फ गुजरात ही ठिकाना है। वे गिर अभयारण्य में पाए जाते हैं। इस प्रजाति को किसी महामारी से बचाने के लिए परियोजना मंजूर हुई।
वैज्ञानिकों ने कुनो पालपुर को शेरों के रहवास के लिए सबसे मुफीद जगह माना था। इसलिए कुनो अभयारण्य से 24 गांव विस्थापित किए गए और उसे नेशनल पार्क बनाया गया। इन तमाम कोशिशों के बाद भी गुजरात से शेर नहीं मिल पाए। जबकि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार को छह माह में शेर मध्यप्रदेश भेजने की कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दे चुका है, पर गुजरात सरकार लगातार कमियां निकालकर परियोजना में देरी कर रही है। इससे किसी हद तक यह भी साफ हो गया है कि मध्यप्रदेश को शेर नहीं मिलेंगे।
प्रतिष्ठा के प्रतीक की लड़ाई
जानकार बताते हैं कि लड़ाई प्रतिष्ठा के प्रतीक (स्टेटस सिंबल) की है। यह प्रजाति देश में सिर्फ गुजरात में पाई जाती है। यही कारण है कि शेर देखने देशभर के पर्यटक गुजरात पहुंचते हैं। जिससे प्रदेश का पर्यटन उद्योग चलता है। यदि कुनो पालपुर में शेरों को बसा दिया जाता है, तो दिल्ली से आने वाले पर्यटकों के लिए कुनो पालपुर नजदीक पड़ेगा और पर्यटक दो जगहों पर बंट जाएंगे। जिसका असर सीधा पर्यटन पर पड़ेगा।