मनोज तिवारी भोपाल । नईदुनिया स्टेट ब्यूरो । मध्य प्रदेश में चीतों को बसाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी) 23 नवंबर से तीन दिसंबर तक प्रदेश के दौरे पर रहेगी। समिति श्योपुर जिले के कूनो पालपुर नेशनल पार्क के अलावा सागर के नौरादेही अभयारण्य, शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क एवं नीमच के गांधी सागर अभयारण्य का भी निरीक्षण करेगी। इन जगहों पर चीतों के अनुकूल वातावरण और रहवास क्षेत्र का आकलन किया जाएगा। प्रदेश का दौरा खत्म करके समिति राजस्थान के चार जिलों में फैले मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व का निरीक्षण करने भी जाएगी।
राजस्थान सरकार ने वहां का वातावरण चीतों के अनुकूल होने का दावा किया है। दस साल की लंबी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी-20 में भारत सरकार की चीता परियोजना को मंजूरी दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने तीन सदस्यीय सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी का गठन किया, जो मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर नेशनल पार्क सहित उन तमाम संरक्षित क्षेत्रों का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी, जहां चीतों के अनुकूल वातावरण पाया गया है। वैसे तो समिति को मार्च-अप्रैल में ही आना था, पर कोविड-19 के कारण लॉकडाउन था और समिति नहीं आ सकी।
अब 23 नवंबर को आ रही है। समिति में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाईबी झाला सहित वरिष्ठ अधिकारी और वैज्ञानिक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने समिति में डब्ल्यूआइआइ के पूर्व निदेशक रंजीत सिंह, वर्तमान निदेशक धनंजय मोहन और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में वन्यजीव शाखा के डीआइजी को शामिल किया है।
गुजरात से बब्बर शेर न मिलने की स्थिति में भारत सरकार ने 2010 में कूनो पालपुर में चीता बसाने की परियोजना पर काम शुरू किया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगी और कोर्ट ने परियोजना पर रोक लगा दी थी। गांधी सागर और माधव पार्क भी प्रदेश में कूनो पालपुर नेशनल पार्क और नौरादेही अभयारण्य के अलावा माधव नेशनल पार्क और गांधी सागर अभयारण्य भी चीतों के लिए तैयार हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वन विभाग ने दोनों संरक्षित क्षेत्रों में चीता बसाने को लेकर दावा पेश किया है। इसलिए समिति गांधी सागर से दौरा शुरू करेगी और 25 नवंबर को कूनो पालपुर पहुंचेगी। चारों संरक्षित क्षेत्र अनुकूल वन अधिकारियों के मुताबिक चयनित चारों संरक्षित क्षेत्र चीता परियोजना के लिए मुफीद हैं। उनमें घास के मैदान, छिपने के लिए कंदराएं एवं शिकार के लिए पर्याप्त शाकाहारी वन्यप्राणी हैं। इनमें 70 से 100 साल पहले तक चीता प्रजाति रहने के प्रमाण भी मिले हैं। इसलिए इनका वातावरण चीता के अनुकूल रहेगा।