Bhopal News: भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। हमने गुरु ग्रंथ साहिब लौटाए नहीं हैं, बल्कि उन्हें उचित स्थान तक पहुंचाया है। गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षा और उनसे मिले संस्कार हमारे दिल और मन में हैं और इस शिक्षा को हम हमेशा लोगों तक पहुंचाते रहेंगे। यह कहना है संत हिरदाराम नगर स्थित श्री गंगाधाम उदासीन दरबार के महंत स्वामी तुलसीदास उदासी का। महंत जी ने हाल ही में इंदौर में सिंधी दरबार में गुरु ग्रंथ साहिब को लेकर हुए विवाद के बाद श्री गंगाधाम दरबार में विराजित गुरु ग्रंथ साहिब को पूरे सम्मान के साथ गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी को ससम्मान साैंप दिया है। महंत जी का इस पूरे विषय पर कहना है कि सिंधी दरबारों में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना सन 1600 मेें गुरु अर्जन देव के समय हुई। तब से सिंधी समाज पूरे श्रद्धा भाव के साथ गुरु ग्रंथ साहिब की सेवा करते हुए आ रहा है, लेकिन दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के समय कई अन्य परंपराओं और सनातन धर्म से अलग सिख धर्म की उत्पत्ति हुई। इसके फलस्वरूप अब स्थिति बदल गई है। अब हमें सनातन धर्म और सिख पंथ में से किसी एक को चुनने को कहा जा रहा है, तो निश्चित ही हम शांति के साथ सनातन धर्म को चुनेंगे।
महंत तुलसीदास के अनुसार संतो का कार्य समाज को उनके धर्म का सही ज्ञान और शिक्षा देना है। इस कारण अब हम सिंधी दरबारों और मंदिरों में गुरुग्रंथ साहिब के स्थान पर श्रीमद भागवत कथा और रामायण की चौपाइयां पड़ी जाएंगी। इसके अलावा गुरु नानक देव जी के पुत्र और उदासीन संत संप्रदाय के प्रमुख भगवान श्रीचंद द्वारा रचित सिद्धांत सागर का पाठन किया जाएगा। महंत जी के अनुसार यह सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि पूर्व में हुई घटनाओं के बाद से ही सिंधी संत इस पर लगातार चिंतन मनन कर रहे थे।
भुला दिए गए हैं पराक्रमी राजा दाहिर सेन और हेमू कालाणी
देश में समय समय पर हुए आक्रमणों से देश को बचाने के लिए सभी संप्रदाय और भाषाओं के लोगों ने अपना अपना योगदान दिया था। आठवीं सदी में भारत पर लगातार आक्रमण करने वाले मुस्लिम आक्रांताओं को 14 बार हराने और सनातन धर्म की पुनर्स्थापना करने वाले सिंध के पराक्रमी राजा दाहिर सेन के योगदान को सिंधी समाज ने भुला दिया है। अंग्रेजों से लड़ने वाले शहीद हेमू कालाणी के योगदान को भी याद करने वाला कोई नहीं है। सिंधियों ने अपनी उदारता के कारण सबको सम्मान तो दिया, लेकिन वे अपनी संस्कृति की रक्षा नहीं कर सके। अब इस गौरवशाली संस्कृति का पुनर्जागरण करने का समय है।
प्रकृति के साथ होगी पंच देवों की पूजा : महंत तुलसीदास बताते हैं कि सिंधी सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है। वैज्ञानिक शोधों में सिंधु घाटी सभ्यता को विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता माना गया है। सिंधी मुख्य रूप से जल, ज्योति और प्रकृति के उपासक हैं। इसके अलावा पंच देवों शिव, नारायण, दुर्गा, गणेश और सूर्य का सिंधी समाज उपासक है। सनातन धर्म वैसे ही सब संप्रदायों और संस्कृतियों का सम्मान करता है। इस पर हम सिंधी भाषी और ज्यादा उदार होते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपनी छह हजार साल से भी पुरानी संस्कृति को भुला दें। अब सिंधी संस्कृति, सिंधी परंपराओं और अपनी धार्मिक मान्यताओं के पुनर्जागरण का समय है। इसे फिर से जीवित किया जाएगा।