Bhopal News: भोपाल। मानव संग्रहालय में सितंबर माह के चौथे सप्ताह के प्रादर्श के रूप में निमाड़ की पारंपरिक चित्रकला जिरोती काे शामिल किया गया है। इसे मप्र के निमाड़ लोकसमुदाय से 2008 में संकलित किया गया। संग्रहालय के निदेशक डा. अमिताभ पांडे ने बताया कि जिरोती मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की एक पारंपरिक कला है। यह जिरोती अमावस्या या हरियाली अमावस्या के अवसर पर घर की महिलाओं द्वारा दीवारों पर बनाई जाती है।
हरियाली अमावस्या को वर्षा ऋतु के दौरान जब प्रकृति अपने पूरे निखार पर होती है, चंद्र उत्सव के रूप में मनाया जाता है। घर की दीवारों पर निमाड़ी चित्रकारी केवल एक कलात्मक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि इसमें कुछ अनुष्ठान और उत्सव से संबंधित लोक गीत भी गाए जाते हैं। जिरोती चित्रों की बाहरी रूपरेखा सात दिन पहले तैयार की जाती है। घर के मुख्य दरवाजे को दोनों तरफ गोबर और मिट्टी से लीपा जाता है। निमाड़ में इसे कवला पोतानू कहा जाता है। दोनों कवलों पर लेप करने के बाद विभिन्न रंग लगाए जाते हैं। सर्वप्रथम गाय के गोबर से लीपी हुई सतह पर गेरू से एक लाल परत तैयार की जाती है। इसके लिए कोई निश्चित पैमाने उपयोग नहीं किया जाता। लाल गेरू, फ्रेम में हल्दी पीले रंग से चार रेखाओं वाला एक फ्रेम चार सारी बनाया जाता है जिसे विभिन्न रंगों और ज्यामितीय रूपांकनों से आकर्षक बनाया जाता है।
इष्टदेव और आदि शक्ति देवी की आकृतियां
इसके बाद फ्रेम के मध्य में इस त्योहार के इष्टदेव और आदि शक्ति देवी जिरोती की दो, तीन या पांच खड़ी आकृतियां बनाई जाती हैं। देवी जिरोती की मूर्तियों के सम्मान में पैरों के नीचे सिंहासन जैसा एक पालना बनाया जाता है। निमाड़ में जिरोती बच्चों को रोगों और दुखों से बचाने वाली देवी के रूप में भी पूजी जाती हैं, इसलिए प्रत्येक आकृति के साथ एक बच्चे को भी दर्शाया गया है। जिरोती भित्ति चित्र रसोई से लेकर सुंदर आभूषणों तक पारिवारिक जीवन के विभिन्न पक्षों की कलात्मक अभिव्यक्ति हैं। एक कोने में एक गाय, पानी लाती एवं छाछ बिलोती महिलाएं, छोटे बच्चे एवं पशु पक्षी चित्रित किए गए हैं। चंद्रमा और सूर्य को अमरत्व के प्रतीक स्वरूप बनाया गया है। जिरोती निमाड़ की महिलाओं का सबसे लोकप्रिय त्योहार है क्योंकि यह त्योहारों के प्रारंभ का प्रतीक है। जिरोती के बाद नागपंचमी, राखी, संझाफुली, दशहरा, दिवाली जैसे लगातार त्योहारों की झड़ी लग जाती है।