Loksabha Election 2024 युवराज गुप्ता, बड़वानी। मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी के तटीय क्षेत्र और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की सुरम्य वादियों में बसा निमाड़ अंचल कई विशेषताओं को समेटे हुए है। इसके खरगोन-बड़वानी संसदीय क्षेत्र ने सहकारिता को राजनीति में जगह दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका श्रेय निमाड़ के कद्दावर कांग्रेस नेता और सहकारिता पुरुष स्व. सुभाष यादव को जाता है।
निमाड़ की राजनीति ने प्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक भी दखल रखा है। यहां के राजनीतिक परिदृश्य का अपना अलग ही अंदाज है। पश्चिम निमाड़ से ही ‘निमाड़ की नैया’ का नारा बुलंद हुआ था। सुभाष यादव के लिए चुनावी मैदान में इस नारे का जमकर प्रयोग किया गया। सुभाष यादव ने सहकारिता के माडल को राजनीति में लाते हुए उसे सफलतापूर्वक स्थापित भी किया था।
सुभाष यादव ने वर्ष 1971 में प्राथमिक सेवा सहकारी समिति ग्राम बोरावां के सदस्य के रूप में सहकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया था। इसमें रुचि और सक्रियता के कारण सुभाष यादव को वर्ष 1980 में मध्य प्रदेश राज्य सहकारी बैंक का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। इसके बाद प्रदेश में सहकारिता आंदोलन का विस्तार हुआ। सुभाष यादव राष्ट्रीय स्तर की अनेक सहकारी संस्थाओं के अध्यक्ष और संचालक मंडल के सदस्य रहे। सहकारिता के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान के कारण सुभाष यादव विदेश जाने वाले महत्वपूर्ण सहकारी प्रतिनिधि मंडलों के सदस्य के रूप में भाग लेते रहे।
सुभाष यादव ने अपने अनुभवों का लाभ अपने गृह क्षेत्र को देते हुए खरगोन जिले में सहकारिता के आधार पर एक सूत मिल और एक शक्कर कारखाने की स्थापना की। उन्होंने अपने गांव में एक इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना भी की। उन्हें सहकारिता के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार और सम्मान भी मिले। सुभाष यादव ने प्रदेश की राजनीति में भी अपने झंडे गाड़े। वे उप मुख्यमंत्री भी रहे।
निमाड़ के चार जिलों को दो भागों में बांटा जाता है। एक पूर्वी तो दूसरा पश्चिमी निमाड़। पूर्वी निमाड़ में खंडवा-बुरहानपुर लोकसभा सीट आती है तो पश्चिमी निमाड़ में खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट आती है। वर्ष 1952 से शुरू हुए खरगोन (तब नाम निमाड़) संसदीय क्षेत्र के चुनाव में शुरुआती दौर में कांग्रेस का कब्जा रहा लेकिन 10 वर्ष बाद ही 1962 में जनसंघ ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली।
वर्ष 1977 (जनता पार्टी) के अलावा भी वर्ष 1989 से वर्ष 1998 तक लगातार भाजपा ने अपना वर्चस्व यहां पर कायम रखा। इसके बाद दो चुनावों में कांग्रेस जीती। इसके बाद भाजपा ने फिर अपना यह गढ़ प्राप्त कर लिया। खरगोन संसदीय सीट पर 17 आम चुनाव और एक उपचुनाव हुआ है। भाजपा के रामेश्वर पाटीदार सर्वाधिक पांच बार सांसद रहे। वहीं कांग्रेस के रामचंद्र विट्ठल ‘बड़े’ और सुभाष यादव दो-दो बार सांसद रहे।
खरगोन संसदीय क्षेत्र के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के नेता भी प्रचार में आते रहे हैं। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी भी थे। बड़वानी के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ सोहन माहेश्वरी के अनुसार वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान अटलजी ने खरगोन में सभा की थी। उस दौरान रेल का मुद्दा चर्चा में था। तब अटलजी ने इस आदिवासी क्षेत्र में रेलवे लाइन के सर्वे की बात कही थी। चुनावी जीत में इस वादे का भी बड़ा असर माना गया। वर्ष 1980 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवनराम ने खरगोन में सभा की थी। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी संसदीय चुनाव के दौरान सभाएं ली थीं। पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा की आमसभा भी चर्चित रही। उस समय आदिवासी क्षेत्र के विकास को लेकर कई वादे किए गए थे।
दक्षिण भारत से आने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने वर्ष 1984 में बड़वानी में सभा की थी। तब उन्होंने स्थानीयता को ध्यान में रखते हुए करीब 35 मिनट तक शुद्ध हिंदी में भाषण दिया था। उनका यह लंबा भाषण लोगों के बीच चर्चा का केंद्र भी रहा था।