बड़वानी (नईदुनिया प्रतिनिधि)। ग्राम हरिबड़ में 61 सालों से गांव में महामारी और प्राकृतिक आपदा को रोकने व सूखा नहीं होने के लिए भगवान से प्रार्थना होती है। ग्रामीण भगवान से प्रार्थना कर 51 लीटर दूध की धारा गांव की सीमाओं पर चढ़ाते हैं। तेजा दशमी के अगले दिन सोमवार को डोल ग्यारस पर क्षत्रिय सिर्वी समाजजनों ने पूजन कर परंपरा निर्वहन किया। सबसे पहले गांव के सभी समाजजन बाबा रामदेव मंदिर व श्रीआईजी माता मंदिर में विशेष पूजा की। उन्होंने गांव में खुशहाली और सुख-समृद्धि के लिए बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया।
ग्राम हरिबड में 1961 में लोकदेवता बाबा रामदेव के निर्माण हुआ था। तब से क्षत्रिय सिर्वी समाजजनों इस परंपरा को डोल ग्यारस के दिन निभा रहे हैं। मंदिरों में विशेष पूजन के बाद गांव की सीमाओं में 51 लीटर दूध की धारा चढ़ाई गई। दूध की धारा गांव के रक्षक द्वारपाल बाबा का पूजन कर चढ़ाना शुरू किया।
दो किमी की परिधी में परिक्रमा करने के बाद द्वारपाल बाबा के पास आकर दूध की धारा बहाना रोक दिया। रामदेव बाबा की अखंड ज्योत की परिक्रमा भी गांव में करवाई गई। सिर्वी समाज के सकल पंच जगदीश जमादारी, रमेश मुकाती, मोहन कोटवाल, कमल कोटवाल, वीरेंद्र चौधरी ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने परंपरा को शुरू किया था। हम 61 साल से निर्वाहन कर रहे हैं।
ग्राम हरिबड सिर्वी समाज बाहुल्य हैं। कार्यक्रम को लेकर एक दिन पहले ही सूचना कर हर घर से दूध एकत्रित किया जाता है। इस पूरी परिक्रमा में दूध की कमी ना हो, इसके लिए अलग से युवा बाल्टियों में दूध व अखंड ज्योत लेकर चल रहे थे। राजस्थानी साफा बांध हाथों में ध्वज थामकर शंख व घंटियां बजाकर युवा बाबा रामदेव के जयकारे लगाते हुए चले। मंदिर के पुजारी लक्ष्मण चौहान ने आरती कर सभी को प्रसादी का वितरण किया। इस दौरान स्थानीय सिर्वी समाज के अनेकों युवा व समाज के वरिष्ठ उपस्थित रहे मौजूद थे।
गांव के बुजुर्गों के अनुसार प्रतिवर्ष डोल ग्यारस पर यह आयोजन राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में होता है। राजस्थान के रामदेवरा (रामदेव जी के समाधी स्थल) से प्रेरित होकर हमारे पूर्वजों ने इस परंपरा को गांव में करना शुरू किया था। दूध की धारा चढ़ाकर गांव की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। समाजजन मंदिर में भोग लगाकर भोजन ग्रहण करते हैं। महिलाएं मंदिर परिसर में भजन कीर्तन करती हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में आई माताजी के प्रकट उत्सव भादवी बीज से दस दिवसीय उत्सव की शुरुआत होती है। इसमें पहले दिन रामदेव बाबा का पूजन कर जन्मोत्सव मनाने के साथ शोभायात्रा निकालने व 10 दिनों तक भजन और कई धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। 11वें दिन डोल ग्यारस पर दूध की धारा चढ़ाकर कार्यक्रमों का समापन किया जाता है।