गुनेश्वर सहारे। बालाघाट(नईदुनिया प्रतिनिधि)। बालाघाट की एक आदिवासी महिला ने पर्यावरण को बचाने का बीड़ा उठाया है। वे पॉलीथिन का उपयोग बंद कराने कागज के थैले बना रही हैं। दो साल में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से लगे लॉज में पर्यटकों को 9000 थैले बेचे। इससे अच्छी आमदनी हुई तो महिला ने काम बढ़ाया और स्व सहायता समूह की 12 महिलाओं को रोजगार दिलाने के मकसद से यह काम सिखा रही हैं। ये आदिवासी महिला हैं बालाघाट के लगमा की ललिता मेरावी।
प्रधानमंत्री मोदी जी से मिली प्रेरणा
बालाघाट के बिरसा तहसील के लगमा गांव की रहने वाली ललिता (36) पत्नी स्व. धूपसिंह मेरावी बताती हैं कि ये प्रेरणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से मिली है। वे बताती हैं कि अधिकतर लोग पॉलीथिन में सामान लेकर जाते हैं। लोग जहां पर पॉलीथिन फेंकते हैं, वहां पेड़ पौधे नहीं उगते वह जमीन बंजर हो जाती है, मवेशी पॉलीथिन खाकर मर जाते हैं। इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है।
इसलिए मेरे मन में विचार आया कि कागज के थैले बनाए जाएं। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा। वर्ष 2019 से थैले बनाने का काम शुरू किया और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले पर्यटकों को 12 रुपये में एक थैला बेचना शुरू कर दिया। एक दिन में 60 थैले तैयार हो रहे हैं, ये सस्ते और टिकाऊ भी हैं। वे लोगों कागज के थैले का उपयोग करने प्रेरित भी करती हैं।
ऐसे बनता है कागज का थैला
- बाजार से 10 रुपये में खरीदती हैं एक किलो कागज।
- थैला बनाने में फेविकोल, एक थैला में दो फीट रस्सी।
- थैला बनाने के बाद करती हैं धागा की सिलाई।
- एक किलो कागज में बनते हैं 10 थैले।
- एक थैला बनाने में पांच रुपये का खर्च।
यह है खास
- थैला बनाने मशीन का नहीं होता उपयोग।
- मुक्की की दो लॉज से 600 थैले का मिला आर्डर।
- ललिता को दो साल में 63000 की आय।
- आठवीं तक पढ़ी हैं ललिता
इनका कहना है
लगमा में बैगा हाट है। इसमें बैगा आदिवासियों ने अपने उत्पाद रखे हैं। कान्हा आने वाले टूरिस्टों को घुमाने वाले जिप्सी चालकों, लॉज संचालकों व गाइडों को बताया गया है। ताकि बैगा हाट में रखे गए उत्पाद बेचे जा सकें। ललिता कागज के थैले तैयार करती हैं। ललिता पर्यावरण बचाने बेहतर काम कर रही हैं।
गुरूप्रसाद, एसडीएम बैहर।