योगेश कुमार गौतम। बालाघाट। इसरो के महान वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक चांद तक पहुंचाकर इतिहास रचा है। इसके पीछे वैज्ञानिकों का समर्पण अहम है। बालाघाट में पले-बढ़े प्रमोद सोनी ने चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग में नेविगेटर यानी मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है। प्रमोद ने अपनी 12वीं तक की शिक्षा बालाघाट के कटंगी तहसील से पूरी की थी। उनके पिता नीलकंठ सोनी पीडब्ल्यूडी विभाग से एसडीओ के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद उनका परिवार सिवनी में बस गया।
चंद्रयान-3 की सफलता में प्रमोद और उनकी लाइट डायनामिक टीम की अहम भूमिका रही है। नईदुनिया से चर्चा में प्रमोद ने बताया कि वह इसरो में डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर के पद पर हैं। उनकी टीम का काम चंद्रयान-3 की दिशा के बारे में जानकारी देना था।
चंद्रयान सही दिशा में आगे बढ़ रहा या नहीं, अलग-अलग कक्षाओं में उसकी स्थिति और आगे बढ़ने की दिशा की रिपोर्टिंग उन्होंने व उनकी टीम ने की है। प्रमोद ने बताया कि चंद्रयान के बुधवार को सफल लैंड करने के बाद लाइट डायनामिक टीम का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।
चंद्रयान की सफलता को लेकर प्रमोद ने बताया कि इसरो के सभी वैज्ञानिकों की टीम पिछले दस सालों से इस मिशन में जुटी थी, जिसे आज सफलता मिली है। इस खुशी को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। सफल लैंडिंग होते ही इसरो में जश्न जैसा माहौल है। लाेगों ने एक-दूसरे को गले लगकर बधाई दी।
इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने कई वैज्ञानिक भावुक भी हो गए। प्रमोद ने बताया कि पिछले मिशन के असफल होने के कारणों का अध्ययन किया गया और उससे सबक लेकर गलतियों को सुधारा गया था, इसलिए हमें ये सफलता मिली है।
खास बात है कि चंद्रयान के लान्च से लेकर लैंड तक इस मिशन में किसी तरह की कोई अड़चन नहीं आई। ये सभी वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है। प्रमोद ने बताया कि चंद्रयान के लैंड करने के बाद रोवर 14 दिनों तक चांद की सतह पर रहेगा