माही (बालाघाट) से महेश चौहान/गुनेश्वर सहारे। आदिवासी क्षेत्र लांजीगढ़ कभी एक स्वतंत्र राज्य था। यहां के किले का पुरातात्विक महत्व तो है ही, इस राज्य के राजाओं का गौरवशाली इतिहास भी है। बताया जाता है कि गोंड राजाओं के पास कभी 18 गढ़ थे। इसका वर्तमान किला गढ़ा के राजा संग्राम शाह के बावन गढ़ों से भी बहुत प्राचीन बताया जाता है। वर्तमान में जिस किले के अवशेष यहां हैं उसे राजकुमारी हसला के दादा मालुकोमा ने 12वीं सदी में बनवाया था। पुरातत्व विभाग की एक स्मारिका के मुताबिक किले का निर्माण कार्य करीब साढ़े सात एकड़ भूमि में किया गया था। किले का मुख्यद्वार पूर्वाभिमुख हैं जिसके मध्य में कछुआ और नाग का के चिह्न का प्रतीक भी है। किले का परकोटा चतुष्कोणीय हैं, जिसकी ऊंचाई लगभग बीस फीट है, चारों कोनों में चार बुर्ज बनाए गए थे। जिनमें से दो बुर्ज अभी मौजूद हैं। परकोटों के दीवारों की चौड़ाई आठ फीट है। जिस पर एक बुर्ज से दूसरे की ओर आने जाने का मार्ग भी है।
राजकुमारी हसला ने अस्मिता के लिए दिया था बलिदान : सन् 1223 में राजा कटेसूर मालूकोमा तेकाम की राजकुमारी हसला ने गोंड समाज की अस्मिता और अपने पिता के मान-सम्मान की रक्षा करने के लिए अपना बलिदान दिया। इसकी ऐतिहासिक गाथा आज भी गोंड समाज के लोगों में प्रचलित है। उस वक्त लांजीगढ़ ने बालाघाट, गोंदिया, बैहर, धमधागढ़,खैरागढ़ रतनपुर क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया था। सन्1818 में लांजीगढ़ की तिलका रानी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई कर स्वराज्य के लिए शहीद हो गईं।
अभेद्य था लांजी का किला : परकोटे के चारों ओर गहरे खंदक है। कहा जाता है कि इन खंदकों में पानी भरा होता था और उस पानी में बड़े मगरमच्छ पाले गए थे, जो तैरते हुए किले की ओर आने वाले दुश्मनों का सफाया कर देते थे। इस तरह सुरक्षा के दृष्टिकोण से लांजीगढ़ एक अभेद्य किला था।
हसला कुंवारी की याद में बना देवालय : किले के पार्श्वद्वार के पास ही एक लंजकाई यानी लांजी कन्या हसला कुंवारी की याद में बनवाया गया देवालय है। वह पूर्वाभिमुख हैं। इसका निर्माण कार्य तराशे हुए कम कठोर बलुआ पत्थरों से किया गया है। देवालय के मंडप के मध्य में चार-चार स्तंभ दो लाइनों में हैं जो मंडप को तीन भागों में विभाजित करते हैं। गर्भगृह अंदर से चतुष्कोणीय है। उसका द्वार भिन्न्-भिन्न् मूर्तियों के अलंकरण से सुशोभित है। भीतर के स्तंभों की रचना में नीचे का भाग चौकोर शिला स्फटिक और उसके ऊपर चतुष्कोणीय है जो ऊपर की ओर अष्टकोणीय एवं सोलह कोणीय हो जाती है।
किले में स्नानागार भी था
किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करने के बाद बाएं ओर निर्माण कार्य के अवशेष दिखाई देते हैं,जहां राजमहल था। उसके ठीक सामने पश्चिम की ओर एक स्नानागार है जो मिट्टी में दब गया है लेकिन उसके तट अब भी दिखाई देते हैं। इसकी लंबाई-चौड़ाई 60-70 फीट है। मुख्य द्वार के दाएं ओर बहुत बड़ा चौगान है जहां पर राजदरबार था,जो आज पूर्ण रूप से जमींदोज हो गया है।