आज भी चंदेरी में जौहर का स्मारक इसकी याद दिलाता है
अशोकनगर(नवदुनिया प्रतिनिधि)। जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर चंदेरी की रानी मढ़ीमाला का जौहर इतिहास में अजर और अमर है। उनके द्वारा 1600 महिलाओं के साथ अपने जीवन का बलिदान कर दिया गया था। आज भी चंदेरी में जौहर का यह स्मारक इस बलिदान का प्रतीक है। यह जौहर चित्तौड़ की रानी पदमावती के जौहर से कम नहीं है।
चंदेरी में हुए इस जौहर की घटना रात 28 जनवरी 1528 की है। जब चंदेरी के शासक महाराजा मेदनीराय परिहार थे तब मुगल शासक बाबर ने उनके किले को चारों ओर से घेर लिया था। रात्रि के पंचम प्रहर में बाबर की सेना किले में घुस गई थी। इस दौरान महारानी मढ़ीमाला ने महाराज मेदनीराय की हौसला अफजाई की थी। जब बाबर की सेना तोपों के साथ आयी तब महाराजा मेदनीराय उठे और उन्होंने महारानी मढ़ीमाला से अंतिम विदा लेते हुए युद्घ के मैदान में पहुच गए। उन्होंने तोपों को रोकने के लिए अपने प्राणों की परवाह भी नहीं की। जब दोनों ओर की सेनाओं में युद्घ चल रहा था और मेदनीराय घायल होकर जमीन पर गिर पड़े थे तब मेदनीराय के सहयोगी नारायण ने परिस्थितियों को भांपकर उन्हें दुर्ग की ओर कंधों पर डालकर ले गए। इसी बीच बाबर ने चंदेरी पर तुर्क ध्वज फहरा दिया। तभी महल के द्वार पर तुर्क दूत पहुच गए और कहाकि हार स्वीकार कर लो। तब उन्हें संधी की सलाह दी गई। लेकिन इसी बीच महारानी मढ़ीमाला बोली कि संधी ही करनी थी तो इतने लोगों को क्यों मरवाया। हम क्या जबाव देंगे उन विधवाओं को। मढ़ीमाला के संकेत पर मिलरिया ताल के किनारे बनी विशाल चिता में महारानी मढ़ीमाला सहित 1600 रमणियों ने अपने जीवन को होम कर दिया था। देखते ही देखते समूचा दुर्ग आग का गोला बन चुका था। रानी मढ़ीमाला का 1600 महिलाओं के साथ किया गया यह जौहर आज चंदेरी की पहचान बन चुका है। चंदेरी में आज भी यह जौहर का स्मारक उनके बलिदान से अवगत कराता है। इस स्मारक स्थल पर युद्घ होते हुए दिखाया गया है तो स्मारक के निचले सिरे पर एक साथ महिलाओं का एक जौहर होते दिखाया गया है। चंदेरी के इस जौहर की गाथा विभिन्न इतिहासकारों और पुस्तक लेखकों ने चंदेरी के इतिहास को लेकर इस जौहर का उल्लेख किया है।
चंदेरी का खूूनी दरवाजा
जहां वीरांगनाओं ने जौहर किया। वहीं महाराजा मेदनीराय ने किले का दरवाजा खुलवा दिया। सैनिक अपने प्राणों का मौह त्यागकर हर-हर महादेव का घोष करते हुए दुर्ग के बाहर तलवार लेकर निकल पड़े थे। उसी समय से इस द्वार का नाम खूनी दरवाजा हो गया और जहां पर रनिवास की महिलाओं ने जौहर किया था उसे जौहर तलैया के नाम से जाना जाता है। इस तरह का खूनी दरवाजा देश में बहुत कम स्थानों पर देखने मिलता है।
खूनी दरबाजे को तलाशते आमिर खान और करीना कपूर भी चंदेरी पहुचे थे
इसी खूनी दरवाजे को लेकर फिल्म अभिनेता आमिर खान और फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर भी चंदेरी आ चुके है। बनारस में जब खूनी दरवाजे को लेकर आमिर खान भेषबदल कर रिक्शा चालक की भूमिका में बनारस पहुचे थे। बाद में वह खूनी दरबाजे को तलाशते हुए चंदेरी आए। कहीं चंदेरी नगरी की जनता को उनके आने का एहसास न हो जाए इस कारण वह उस दौरान रात 12 बजे चंदेरी आये और प्रातः 4 बजे चंदेरी से वापिस भोपाल लौट गए थे। इस दौरान उन्होंने न केवल चंदेरी में खूनी दरवाजा देखा अपितु चंदेरी की साड़ियों की विधा को देखने के लिए भी वह बुनकरों से मिलने पहुचे। इस दौरान उन्होंने बुनकरों के साथ मुलाकात कर जाना कि कैसे चंदेरी में बुनकरों द्वारा साड़ियां तैयार की जाती है।
सतीत्व की रक्षा के लिए महिलाओं द्वारा किए गए जौहर को खूनी तलैया के नाम से जाना जाता है- सर्राफ
इस संबंध में अशोकनगर जिले का पुरातत्व एवं इतिहास विषय पर पीएचडी कर चुके अभिनाश सर्राफ का कहना है कि 1600 महिलाओं ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया था। यह घटना रात 28 जनवरी 1528 की है। आज भी चंदेरी में जौहर का स्मारक कीर्ति दुर्ग के पास है तथा जिस स्थान पर महिलाओं ने जौहर किया था उसे खूनी तलैया के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान से बाबर गुजरा था उस दरवाजे पर जब खून देखा तब से ही उसे खूनी दरबाजे का नाम दिया गया। यह दरवाजा कीर्ति दुर्ग के नीचे है और ऊपर हवापौर है जहां से दो दरवाजे निकलते है।
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फोटो91ए- चंदेरी में महारानी मढ़ीमाला के साथ महिलाओं के बलिदान का प्रतीक जौहर का स्मारक।
फोटो91बी- स्मारक पर उकेरी गई आकृतियां युद्घ और जौहर को दर्शाती है।
फोटो91सी- चंदेरी का वह खूनी दरवाजा जो जौहर के स्मारक से जुड़ा है।
फोटो91डी- फाइल फोटो- खूनी दरवाजे को तलाशते फिल्म अभिनेता आमिर खान और करीना कपूर चंदेरी में बुनकरों द्वारा चलाए जाने वाले करघे को देखते हुए।
फोटो91ई- फाइल फोटो- साडी देखने के साथ साड़ी बुनने की कला निहारते हुए।
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