Jersey Movie Review: बड़े पर्दे पर लीड हीरो का काम करते हुए शाहिद कपूर को अगले साल 20 साल हो जाएंगे। फिल्म ‘कबीर सिंह’ के बाद से वह अब अभिनय की नई लीक बनाने निकले हैं। इस सफर में शाहिद कपूर दमदार कहानियां चुन रहे हैं। इनके किरदारों के हिसाब से अपने आप को तैयार रहे हैं और ऐसे निर्देशक चुन रहे हैं, जिनको इन कहानियों पर 100 फीसदी भरोसा है। संदीप रेड्डी वांगा के बाद अब उन्होंने खुद को गौतम तिन्ननूरी के हवाले किया है। शाहिद की फिल्म 'जर्सी' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।
शाहिद कपूर की यह फिल्म निर्देशक गौतम तिन्ननुरी की 2019 में इसी नाम से आई नानी स्टारर नेशनल अवॉर्ड फिल्म की हिंदी रीमेक है। शाहिद काबिल अभिनेता हैं, उन्होंने इस फिल्म में क्रिकेटर के बॉडी लैंग्वेज से लेकर एक फ्रस्ट्रेटेड और हारे हुए पिता की निराशा को बखूबी पर्दे पर उतारा है।
ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म एक क्रिकेटर अर्जुन तलवार की है, जो अपने करियर की पीक पर अचानक खेलना छोड़ देता है। एक पति की है, जो अपनी पत्नी की नजरों में नकारा बन चुका है। एक पिता की है, जो अपने बेटे के नजरों में इज्जत कमाने के लिए जान की बाजी लगा देता है। अर्जुन तलवार अपने जमाने का सबसे कामयाब खिलाड़ी हुआ करता था, लेकिन 10 साल पहले वो क्रिकेट को अलविदा कहकर अपने प्यार विद्या और बेटे के साथ साधारण जिंदगी बिताने लगता है। उसकी जिंदगी में तूफान तब आता है, जब उसे नौकरी से सस्पेंड कर दिया जाता है। अब वो हर तरफ से सिर्फ एक हारा हुआ इंसान है। पैसे-पैसे के लिए मोहताज। घर का पूरा जिम्मा बीवी उठाती है।
इसी बीच उसका बेटा किट्टू अपने जन्मदिन पर अर्जुन से 500 रुपए के कीमत वाली इंडियन टीम की जर्सी गिफ्ट देने की जिद कर बैठता है। अर्जुन अपने मासूम बेटे की ये ख्वाहिश पूरी करने के लिए 500 रुपए जुटाने की हर कोशिश करता है। क्रिकेट ग्राउंड में पसीना बहाने से लेकर उधार मांगने और चोरी करने तक, लेकिन नाकामयाब रहता है। यहीं से अर्जुन की जिंदगी का मकसद बदल जाता है। वह सारी दुनिया की तरह अपने बेटे की नजरों में नकारा नहीं बनना चाहता, इसलिए 36 की उम्र में जब लोग रिटायरमेंट की सोचते हैं, दोबारा क्रीज पर उतरता है।
कहीं-कहीं फिकी है फिल्म की कहानी
फिल्म 'जर्सी' के सभी कलाकारों ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है। वहीं शाहिद के दाढ़ी वाले पंजाबी किरदार में 'कबीर सिंह' की भी झलक आती है। कोच के रूप में पंकज कपूर फुल फॉर्म में हैं। शाहिद संग उनकी केमिस्ट्री देखने लायक है। वहीं बेटे रोनित के साथ उनकी केमिस्ट्री भी अच्छी लगती है। मृणाल ठाकुर में अपने किरदार में अच्छी परफार्मेंस दी है। फिल्म की कमजोरी है, उसकी लंबाई और धीमी शुरुआत। फिल्म का फर्स्ट हाफ धीरे-धीरे आगे बढ़ता है, जिससे कभी-कभी ऊब होती है। लगभग 3 घंटे की ये फिल्म एडिटिंग टेबल पर कसी जानी चाहिए थी। दूसरे, सेकंड हाफ के क्रिकेट मैचों में वैसा रोमांच नहीं है। आपको सिर्फ अर्जुन के चौके-छक्के दिखते हैं। 10 साल बाद मैदान पर लौटे क्रिकेटर का पहले ही शॉट से ऐसे चौके-छक्के मारना सहज भी नहीं लगता। हालांकि ये मैच के सीन खूबसूरती से फिल्माए गए हैं।