श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी, प्रकाश झा और केतन मेहता जैसे दिग्गजों ने समानांतर सिनेमा की ऐसी धारा प्रवाहित की थी जिसके अंतर्गत समाज में फैली कुरीतियां, जातिगत भेदभाव और वर्ग भेद जैसी बुराइयों पर सिनेमा के माध्यम से कड़ा प्रहार किया था। समय के साथ-साथ यह प्रभाव खंडित होने लगा। बीच-बीच में इक्का-दुक्का फिल्में आ जाती थी मगर सही मायनों का समानांतर सिनेमा तकरीबन नहीं के बराबर रह गया था। उसी धारा को आगे बढ़ाते हुए अनुभव सिंहा आगे ले जाते हैं मगर उनका अपना अंदाज है। वह बात तो बुराइयों की ही करते हैं, उस पर प्रहार भी करते हैं मगर उनका अंदाज कमर्शियल है। उनके सिनेमा को हम कमर्शियल पैरेलल सिनेमा कह सकते हैं। शायद उनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों तक संदेश पहुंचाना हो।
भारतीय संविधान के तहत आर्टिकल 15 एक ऐसा कानून है जो भारत के तमाम नागरिकों को किसी भी सार्वजनिक जगह पर जाने का अधिकार देता है। इसी के इर्द-गिर्द अनुभव सिन्हा ने अपनी कहानी को बुना है। विदेश में पढ़ा लिखा लड़का अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) अपने पिता के कहने पर आईपीएस ऑफिसर बनता है और उसकी पहली पोस्टिंग होती है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले में जहां पर जातिगत भेदभाव अपने चरम पर है। ऐसे में अयान के सामने एक संगीन अपराध आता है। समाज के अलग-अलग तबके उस पर अपनी अलग अलग राय रखते हैं। अयान कहता है कानून चलेगा तो सिर्फ किताब का यानी संविधान का। क्या समाज के अलग-अलग अंग एक नए आईपीएस अफसर को अपना फर्ज निभाने देंगे? क्या अयान रंजन इन सब स्थितियों में घुटने टेक देगा? इसी ताने-बाने पर बनी है फिल्म आर्टिकल 15। इतने संवेदनशील विषय पर फिल्म बनाने का निर्णय लेकर लेखक और निर्देशक के तौर पर सिन्हा के सामने कठिन चुनौतियां थीं जिसमें अनुभव सिंहा पूरी तरह से सफल रहे हैं।
अभिनय की बात करें तो आयुष्मान खुराना फिल्म दर फिल्म नई ऊंचाइयां हासिल कर रहे हैं। इस फिल्म में वे हमेशा की तरह किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है जिस प्रकार एक मंझा हुआ कलाकार निभाता है। फिल्म में ईशा तलवार, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, मोहम्मद जीशान अयूब ने भी अपने-अपने किरदार के साथ न्याय किया। आयुष्मान खुराना की यह फिल्म भी अच्छी है जिसे जरूर देखा जा सकता है।
- पराग छापेकर