Bollywood News : अभिनेता और मिस्टर इंडिया इंटरनेशनल दारासिंग खुराना ने अपनी पीड़ा सबके साथ शेयर की है। दरअसल दिल्ली में यात्रा के दौरान उनके साथ एक बुरा हादसा हुआ। जब दारासिंग शहर में एक ऑटो में बैठे थे, तभी कुछ बाइक सवार बदमाशों ने चलती गाड़ी से उनका फोन छीन लिया और फरार हो गये। इसके बाद उन्हें किस तरह की परेशानियों ने गुजरना पड़ा, इसे उन्होंने खुद बयान किया है। दारासिंह किसी निजी काम से दिल्ली जा रहे थे। वहाँ उन्हें एक मूर्ति को देखना था, जिसे उन्होंने अपने होमटाउन परभणी में अपने नए बंगले के निर्माण के लिए बनवाया था। साथ ही यहाँ उनकी कुछ मीटिंग्स भी थी। लेकिन, एक सामान्य और खुशहाल सा दिन, कुछ ही पलों में पूरी तरह बदल गया और उन्हें कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ीं।
इस घटना का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, "मैं कुरुक्षेत्र में एक रिश्तेदार के यहाँ था और मैंने वहाँ से दिल्ली जाने का फैसला किया। मैंने एक टैक्सी ली और जब मैं दिल्ली के कनॉट प्लेस में पहुँचा, तब इस गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया। मेरा होटल वहाँ से कुछ ही दूरी पर होने के कारण (लाजपत नगर) मैंने रात के 10:15 बजे ऑटो लेने का फैसला किया। जब मैं कनॉट प्लेस के ललित होटल के पास से गुजर रहा था, उस दौरान मैं हाथ में मोबाइल लिए मैप देख रहा था। तभी अचानक हेलमेट पहने बाइक पर सवार दो लोग मेरे बगल में आ गए और मेरे हाथ से फोन छीनकर तेज रफ्तार से भाग गए। मैं तुरंत चिल्लाया, लेकिन वे इतने तेज थे कि मैं उन्हें पकड़ नहीं सका।"
वे आगे कहते हैं, "जैसे ही मैंने खुद को संभाला, सबसे पहले ऑटो चालक के नंबर से अपने फोन पर कॉल किया। बेशक, किसी ने इसका जवाब नहीं दिया। फिर मैंने अपने परिवार को कॉल किया और उन्हें पूरी घटना के बारे में बताया। मैं अपने होटल पहुँचा और शुक्र है कि यह होटल मेरी दोस्त का था, इसलिए मैंने उसे कॉल किया और उससे मेरे लिए एक फोन की व्यवस्था करने का अनुरोध किया। मेरी दोस्त और होटल के कर्मचारी बहुत मददगार साबित हुए। उसने अपने कर्मचारियों से मुझे अपना फोन उधार देने का अनुरोध किया, जिसके बाद मैंने अपने सोशल मीडिया, बैंक लॉगिन, ईमेल आदि के सभी पासवर्ड बदल दिए।"
इसके बाद दारासिंग FIR दर्ज कराने के लिए सीपी पुलिस स्टेशन गए, और भले ही यह प्रक्रिया सुचारू थी, लेकिन उन्होंने बताया "मुझे आगे का कुछ भी अनुभव नहीं था। अगले दिन फिर से मुझे फॉलोअप के लिए पुलिस स्टेशन जाना पड़ा और पहली बार मुझे एहसास हुआ कि पुलिस कितनी धीमी हो सकती है। यह सबसे खराब अनुभव था। हेड कॉन्स्टेबल को बेहद धीमी गति से पूछताछ करने में तीन घंटे लगे। वह मुझे उस स्थान पर ले गया, जहाँ घटना हुई थी और वहाँ 20 मिनट तक खड़ा रहा। फिर उसने उस स्थान का नक्शा बनाने में 20 मिनट का समय लिया, जिसमें बस एक या दो मिनट लगने चाहिए थे। इसके बाद उसने मुझे यह समझाने के लिए 15 मिनट का समय लिया कि मुझे आवेदन में क्या लिखना चाहिए। प्रक्रिया बेहद धीमी थी और मुझे पता था कि यह आदमी कुछ भी नहीं करेगा। यही वह समय था जब मैंने प्रार्थना की कि मुझे अपने जीवन में कभी भी पुलिस थाने न आना पड़े।"