West Bengal Election Results: बंगाल ने फिर जताया ममता दीदी पर भरोसा, क्या हैं इसके मायने
ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की है। उनकी जीत के व्यापक मायने हैं।
By Shailendra Kumar
Edited By: Shailendra Kumar
Publish Date: Sun, 02 May 2021 07:22:47 PM (IST)
Updated Date: Sun, 02 May 2021 07:22:47 PM (IST)
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने हैट्रिक लगाते हुए तीसरी बार सत्ता में वापसी की है। प्रदेश की 294 सीटों में से 292 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ, जिसमें ममता बनर्जी ने 215 सीटों पर बढ़त बना ली है। बीजेपी सिर्फ 78 सीटें ही जीतने की स्थिति में है। वहीं कांग्रेस और वामदलों का बिल्कुल सफाया हो गया है। वोट शेयर के मामले में भी टीएमसी ने बड़ी बढ़त हासिल की है। अब तक के रुझानों में टीएमसी ने 48.5 फीसदी वोट हासिल किए हैं, जबकि बीजेपी ने 37.4 फीसदी वोट हासिल किए। वामदलों ( सीपीआई, सीपीआईएम और सीपीआईएमएल) को कुल मिलाकर 5 फीसदी वोट भी हासिल नहीं हुए।
- ममता बनर्जी की तेजतर्रार और स्वच्छ छवि के मुकाबले बीजेपी ने अपने मुख्यमंत्री का ऐलान तक नहीं किया।ऐसे में किसी अन्जान चेहरे को चुनने के बजाए जनता ने उसे ही सत्ता की बागडोर सौंपी, जो उनका देखा-भाला था।
- ममता बनर्जी ने स्थानीय बनाम बाहरी का दांव खेला और बांग्ला संस्कृति, बांग्ला भाषा और बंगाली अस्मिता के मुद्दे को हर जगह उभारा।
- TMC ने इस बार करीब 50 महिलाओं को टिकट दिए थे। इसके अलावा अपनी बेटी के नारे ने भी महिला वोटरों को ममता बनर्जी के समर्थन में एकजुट कर दिया।
- अल्पसंख्यकों के पूरी एकजुटता के साथ टीएमसी का साथ दिया। कांग्रेस, वामदलों और AIMIM के उम्मीदवारों की दुर्गति इसकी ओर स्पष्ट इशारा करते हैं। मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को सिर्फ 0.2 फीसदी वोट मिले हैं।
- ममता बनर्जी ने चोट के बावजूद व्हील चेयर से ही जिस तरह से लगातार धुआंधार प्रचार किया और बीजेपी को इस हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया, उससे सहानुभूति की फैक्टर भी उनके पक्ष में गया।
- आंतरिक विरोध के बावजूद प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने ममता की जीत में अहम भूमिका निभाई। उनके सालभर के सर्वेक्षण के अलावा ‘दीदी के बोलो’ जनसंपर्क अभियान के दौरान जिलों और उनके नेतृत्व के प्रदर्शन पर तैयार रिपोर्ट से चुनावी रणनीति तय करने में काफी मदद मिली।
बीजेपी से कहां हुई चूक?
- बीजेपी ने एक बार फिर वही गलती दुहराई, जो वो झारखंड, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में कर चुकी थी। राज्य स्तर के चुनाव में लोग पीएम नहीं सीएम का चेहरा ढूंढते हैं। अगर वो स्थानीय, मजबूत और स्वच्छ छवि वाला ना हो, तो जनता उसे ही नहीं, पूरी पार्टी को ही नकार देती है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मुकाबले किसी चेहरे को सामने नहीं करना बीजेपी को भारी पड़ा।
- बीजेपी ने चुनाव प्रचार का जिम्मा राष्ट्रीय नेताओंं के भरोसे छोड़ रखा था। लेकिन ये ना तो बंगाली थे, ना उनकी भाषा बोल पाते थे। ऐसे लोगों ने बाहरी नेताओं के बजाए अपमी ममता दीदी पर भरोसा करना बेहतर समझा।
- पीएम मोदी को ये बात समझनी होगी कि स्थानीय चुनाव में उनकी लोकप्रियता के आधार पर वोट नहीं मिलेंगे। क्योंकि जनता को दिल्ली में बैठनेवाला नेता नहीं, उनकी गली-मोहल्लों की समस्या दूर करनेवाला कार्यकर्ता चाहिए।
- बंगाल में बंगाली अस्मिता एक बड़ा मुद्दा है। अपनी भाषा और अस्मिता को लेकर बंगाली जनमानस काफी सजग है। बीजेपी का ममता दीदी का मजाक उड़ाना और उन पर व्यक्तिगत टिप्पणी करना जनता को पसंद नहीं आया। दीदी ओ दीदी, दो मई-दीदी गईं, दीदी की स्कूटी नंदीग्राम में गिर गई... जैसे बयान बीजेपी को भारी पड़े।
बीजेपी को नुकसान हुआ या फायदा?
भले ही बीजेपी को दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर पाई हो और उसे उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिली हों, लेकिन पिछली विधानसभा में मिली 3 सीटें की तुलना में इस बार इतनी बड़ी संख्या में सीटें आना कम बड़ी बात नहीं है। बीजेपी के फायदे में सबसे बड़ी बात ये है कि अब वो पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। सरकार से लोगों की जितनी नाराजगी बढ़ेगी, सत्ता-विरोधी लहर जितनी चलेगी, बीजेपी सत्ता के उतने ही करीब पहुंचेगी। तीसरी बार सरकार बना रही ममता बनर्जी के लिए अगला चुनाव आसान नहीं होगा।
जीत के राष्ट्रीय मायने
ममता बनर्जी की जीत ने एक तरफ बीजेपी का विश्वास हिला दिया है, तो दूसरी तरफ विपक्ष को भी भरोसा दिलाया है कि अगर वो मोदी-शाह की जोड़ी का मुकाबला कर सकती हैं, तो दूसरे भी कर सकते हैं। वहीं कांग्रेस के लिए ये एक और झटका है। धीरे-धीरे उसका संगठन और वजूद लुप्त होता जा रहा है। इस जीत ने ममता दीदी का राष्ट्रीय स्तर पर भी कद बढ़ा दिया है और विपक्षी दलों में उनकी सम्मान बढ़ गया है। कोई बड़ी बात नहीं कि अगले लोकसभा चुनावों में मोदी-विरोधी गठबंधन की कमान उनके हाथ में आ जाए।