बांसवाड़ा से डा.जितेंद्र व्यास
राजस्थान विधानसभा चुनाव में मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। वादों और घोषणाओं की होड़ के बीच मध्य प्रदेश की सीमा से सटे राजस्थान के इलाकों में सियासत की नई करवट भाजपा और कांग्रेस दोनों के समीकरण बिगाड़ रही है। पांच साल पहले यहां अस्तित्व में आई भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) और इस बार मैदान में उतरी भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी यानी बाप) ने बांसवाड़ा संभाग की 13 विधानसभा सीटों सहित उदयपुर संभाग की करीब 14 यानी कुल 27 आदिवासी मतदाता बहुल सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं।
पिछले चुनाव में बीटीपी के दो विधायक इसी क्षेत्र से चुने गए थे। यहां की राजनीति भाजपा और कांग्रेस के लिए सरकार बनाने की राह आसान या मुश्किल करेगी। दोनों दल इस समीकरण से मुकाबले के लिए कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अन्य दिग्गजों की सभाएं करवा चुकी है। वर्तमान कांग्रेस सरकार के राज्य मंत्री अर्जुन बामनिया और कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय भी यहां कड़े मुकाबले में उलझे हैं।
मध्य प्रदेश की सीमा से सटे उदयपुर और बांसवाड़ा संभाग के ज्यादातर जिले आदिवासी मतदाता बहुल है। वर्षों तक यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा लेकिन बीते दो दशक में यह क्षेत्र कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस को आजमाता रहा। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं के पैमाने पर यह क्षेत्र विकसित नहीं हो पाया।
यही कारण रहा कि 2017 में गुजरात में छोटू भाई वसावा द्वारा गठित बीटीपी एक साल बाद यहां विधानसभा चुनाव में उतर गई। आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग और संपूर्ण क्षेत्र में 'जल, जंगल, जमीन हमारा' के नारों ने क्षेत्र में नई हलचल पैदा कर दी थी। इसी का परिणाम रहा कि बीटीपी के दो प्रत्याशी चौरासी से राजकुमार रौट और सागवाड़ा से रामप्रसाद डिंडौर चुनाव जीत गए। इस तीसरी ताकत ने इतनी तेजी से क्षेत्र में पैर फैलाए कि उदयपुर और बांसवाड़ा संभाग की 27 सीटों को प्रभावित करने लायक स्थिति में आ गई।
भील प्रदेश की मांग मुख्य मुद्दा आदिवासी बहुल विधानसभा क्षेत्र बागीदोरा, सागवाड़ा, घाटोल, कुशलगढ़, डुंगरपुर सहित दो दर्जन से अधिक क्षेत्रों में बीते दो माह से आदिवासी नेता भील प्रदेश की मांग और आबादी के अनुपात में आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर बाइक रैली और पैदल संपर्क में जुटे हैं। छोटे-छोटे टोले-मजरों (गांवों) में संपर्क किया जा रहा है। ‘बाप’ से भी आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण इस विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले ही वांगड़ क्षेत्र से नए राजनीतिक दल भारत आदिवासी पार्टी का उदय हुआ और इसने क्षेत्र में नए समीकरण तैयार कर दिए हैं।
बीटीपी के संविधान के अनुसार विधायक दूसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकता। इस नियम को बदले जाने की मांग के साथ कुछ आदिवासी नेता गुजरात स्थित बीटीपी मुख्यालय से राजस्थान को लेकर किए जा रहे निर्णयों से सहमत नहीं थे। इसी विरोध के बाद उन्होंने बाप का गठन कर अपने प्रत्याशी उतार दिए। पलायन बड़ा मुद्दा पूरे क्षेत्र में लोगों की नाराजगी की बड़ी वजह रोजगार के संसाधनों की कमी की वजह से पलायन की मजबूरी है।
यहां के बांवाड़ा, घाटोल, कुशलगढ़, बागीदौरा, गढ़ी, डुंगरपुर, चौरासी, सागवाड़ा और आसपुर क्षेत्रों से हर वर्ष बड़ी संख्या में आदिवासी गुजरात या मध्य प्रदेश के बड़े शहरों में रोजगार की तलाश में पहुंचते हैं। जबकि इस क्षेत्र में कपड़ा मिलें, मार्बल की खनन इकाइयां और भरपूर पानी होने के बाद भी रोजगार सरकारें उपलब्ध नहीं करवा पाई हैं।
बांसवाड़ा के भाजपा जिला अध्यक्ष लाभचंद कहते हैं सड़क, पानी, बिजली जैसे मुद्दे ही अभी हल होना बाकी है, विकास तो दूर की बात है। बीटीपी और बाप जैसे दल कोई खास असर नहीं दिखा पाएंगे। वहीं कांग्रेस के जिला अध्यक्ष रमेश पंड्या कहते हैं कि यहां पिछली सरकारों की तुलना में इस बार काफी काम हुआ।
किसी क्षेत्र में इसका प्रतिशत कम या ज्यादा हो सकता है। कोट... उद्योग-व्यापार, खेती कुछ नहीं है। पलायन ही एकमात्र विकल्प है। हम लोग असम-मेघालय के आदिवासियों से भी पिछड़े हैं। इसी स्थिति को बदलने के लिए हम राजनीति में उतरे हैं। देवचंद मावी, बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष, बीटीपी