संजीव शिवाडेकर/ मिड डे। ठाकरे परिवार से कोई पहली बार मराठा सूबे की बागडोर थाम रहा है। सियासत के कई समीकरण बने और कल तक के धुर विरोधी अब हाथ मिलाकर प्रदेश की नई इबारत लिखने के लिए तैयार हो गए। राजनीति के धुरंधर परदे के आगे सियासत की चौसर बिछाकर शह-मात का खेल, खेल रहे थे, लेकिन सियासत के समीकरण मातोश्री से भी तैयार हो रहे थे जिनके उद्धव ठाकरे की धर्मपत्नी रश्मि ठाकरे अंजाम दे रही थी।
भाजपा-शिवसेना गठबंधन पर रखी पूरी नजर
रश्मि ठाकरे को सियासत के गुर तो काफी पहले मिल गए थे, लेकिन उनको आजमाने का मौका शायद पहली बार उनको मिला। भाजपा के पुराने ताल्लुकात को तोड़कर उद्धव ठाकरे के लिए आगे की राह आसान बनाने में रश्मी ठाकरे की अहम भूमिका रही। सीटो के बंटवारे के समय भी उनकी नजर पूरे घटनाक्रम पर थी। मातोश्री के एक करीबी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि रश्मि ठाकरे की चुनाव के दौरान राय थी कि सीट शेयरिंग के मसले और सत्ता में हिस्सेदारी पर सम्मानजनक समझौता होना चाहिए।
2005 के बाद राजनीति में हुई सक्रिय
यह कोई पहला मौका नहीं है जब रश्मि ठाकरे ने शिवसेना की सियासत में दिलचस्पी ली है। इससे पहले नारायण राणे और राज ठाकरे के शिवसेना से अलग होने पर भी उन्होंने उद्धव ठाकरे के पक्ष में मुहिम चलाई थी और शिवसेना नेताओं को उनके पक्ष में गोलबंद किया था। एक और शिवसेना नेता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि महाराष्ट्र में ज्यादातर लोगों के लिए वह सिर्फ बाल ठाकरे की बहू है, लेकिन 2005 के बाद उनका शिवसेना का राजनीति में हस्तक्षेप बढ़ा है। वो शिवसेना के महिलाओं से संबंधित कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर शिरकत करती है।
पुत्र आदित्य को बनाना चाहती थी सबसे युवा सीएम
विधानसभा चुनाव के समय और उसके बाद इस बात की सुगबुगाहट थी कि रश्मि ठाकरे अपने पुत्र आदित्य को, जो इस समय 29 साल के हैं और मुंबई की वर्ली सीट से जीते हैं, को सूबे का सबसे युवा सीएम बनता देखना चाहती है , लेकिन चुनाव नतीजे के बाद शिवसेना की सहयोगी भाजपा ने 50:50 फार्मूला या बारी-बारी से सीएम के फार्मूले को ठुकरा दिया। उसी समय नया गठबंधन महाविकास अघाड़ी अस्तित्व में आया और उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र की कमान सौंपने का फैसला कर लिया गया। इसके बाद रश्मि ठाकरे अपने पति के साथ राज्यपाल से मुलाकात के लिए राजभवन जाती है।