आदिवासी बहुल इलाकों में निराशा
इधर आदिवासी बहुल इलाकों में भाजपा को जरूर निराशा मिली है। यहां कांग्रेस का वर्चस्व बरकरार है। इसी का असर रहा कि अंचल में दो मंत्रियों को निराशा हाथ लगी। बावजूद यह जरूर कहा जा सकता है कि प्रदेशस्तरीय धमाकेदार जीत में मालवा-निमाड़ की भी बराबर की भूमिका रही है।
इसलिये मिला जीत का सेहरा
राजनीतिज्ञ विश्लेषकों के अनुसार पूरे प्रदेश की तरह इस क्षेत्र में भी लाड़ली बहनों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘गारंटी’ की बदौलत ही भाजपा को जीत का सेहरा हासिल हुआ है। हालांकि मतदाताओं ने मौजूदा कई दिग्गजों को नकार भी दिया है। इससे यह जरूर साबित होता है कि क्षेत्र की जनता के प्रति उदासीनता दिग्गजों को कितनी भारी पड़ती है। इस चुनाव से मतदाता ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि बागियों का कोई अधिक महत्व नहीं है। मतदाता ने बहुतेरी सीटों पर केवल भाजपा-कांग्रेस पर फोकस किया है।
मालवा-निमाड़ अंचल अहम
मालवा-निमाड़ अंचल तय करता है कि मध्य प्रदेश की सत्ता कौन संभालेगा यानी यह ऐसा क्षेत्र है, जिससे होकर सत्ता की राह भोपाल के वल्लभ भवन पहुंचती है। हर बार यह सिद्ध भी होता आया है। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब से मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग हुआ है, मालवा-निमाड़ का वर्चस्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया है। यही कारण है कि जो दल यहां सफल होता है, गद्दी उसी को मिलती है।
‘घर जाओ तो कहना मोदी ने प्रणाम भेजा है’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंचल की आमसभाओं में मतदाताओं से अपने भाषण में यह भी कहा था कि आप सभी अपने-अपने घर जाओ तो स्वजन से यह कहना कि मोदी ने प्रणाम भेजा है। पीएम मोदी ने कहा था कि मुझे मंजूर नहीं, कोई बच्चा भूखे पेट सोए। आज भारत पूरी दुनिया में परचम लहरा रहा है। टूरिज्म के क्षेत्र में भी एमपी गजब है। निमाड़ क्षेत्र में भाजपा को विजयी बनाने के लिए हर बूथ को जीतना है। जितना ज्यादा बहुमत होगा, उतनी तेजी से एमपी का विकास होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से अपील की थी कि हमारा एक काम करना होगा। घर-घर जाकर सभी को बताना कि पीएम मोदी आए थे। सभी को प्रणाम कहा है। ये बात सभी को जाकर बताना। मेरा प्रणाम घर-घर तक जाकर पहुंचाइए।
ओवैसी और जयस ने दर्ज कराई उपस्थिति
प्रदेश में भाजपा की लहर के बीच इधर बुरहानपुर में ओवैसी की पार्टी ने उम्मीद से अधिक मत प्राप्त कर सभी को चौंका दिया और आदिवासी अंचल में जयस ने भी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है। रतलाम जिले की सैलाना सीट इसका उदाहरण है। हालांकि आदिवासी अंचल में भाजपा को कोई खास सफलता नहीं मिली है। धार, झाबुआ, आलीराजपुर, बड़वानी जिलों में स्थिति दयनीय ही कही जाएगी। आगामी दिनों में इस अंचल में भाजपा को अधिक मेहनत की आवश्यकता पड़ेगी।
भाजपा के लिए एंटी इंकंबेंसी का कोई रोल नहीं
अंचल में भाजपा को बढ़त से यह भी सिद्ध हो गया कि पार्टी में एंटी इंकंबेंसी का कोई रोल नहीं है। क्योंकि 20 वर्ष तक (बीच में सिर्फ सवा साल छोड़कर) सत्ता में रहने के बाद भी किसी पार्टी को प्रचंड जीत मिलती है, तो सत्ताविरोधी की स्थिति ही नहीं है। इधर युवा मामले में देखा जाए तो कांग्रेस में युवा नेतृत्व पनप ही नहीं पाया है। अंचल में आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में ही विक्रांत भूरिया यूथ कांग्रेस अध्यक्ष हैं, जो दिग्गज कहे जाने वाले कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं। उन पर भी अपने पिता की छाप है।
शिवराज की छवि प्रमुख रही
राजनीतिज्ञों की मानें तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जमीनी नेता हैं, उनकी विनम्रता कहीं न कहीं जनता और कार्यकर्ताओं के मन में जगह बनाती है जबकि कांग्रेस में कमल नाथ का रवैया इसके विपरीत है। सीएम शिवराज सिंह चौहान लोगों और विधायकों की सुनते भी हैं, बोलते भी हैं। यह कारण भी रहा कि भाजपा सफलता हासिल कर सकी है। साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति भी कारगर सिद्ध हुई।