धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। कर्नाटक चुनाव से सबक लेकर भाजपा मध्य प्रदेश में भी अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप दे रही है। पार्टी हाईकमान का मानना है कि कर्नाटक में कांग्रेस के पास जब कोई बड़ा नेता तक नहीं था। संगठन भी कमजोर था, फिर भी कांग्रेस कड़ी टक्कर देकर बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई। यह सब तब हुआ जब भाजपा ने अपनी पूरी ताकत कर्नाटक में झोंक दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने रैलियां कीं, रोड शो किए। इसके बावजूद पार्टी जैसे-तैसे अपनी लाज बचा पाई।
इन सब हालातों से सबक लेकर ही अब भाजपा मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में चुनाव लड़ रही है। खासतौर से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य को पार्टी आसान नहीं मान रही है। भाजपा हाईकमान का मानना है कि इन राज्यों में कांग्रेस के पास मजबूत संगठन है। यही कारण है कि भाजपा ने कई वयोवृद्ध नेताओं को भी टिकट दिए हैं। पार्टी का मानना है कि कर्नाटक में भाजपा ने टिकट देने में जो असावधानी बरती थी, वह मप्र में सुधारी गई है।
कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा भले घोषित नहीं किया है, लेकिन पार्टी कमल नाथ का चेहरा सामने रखकर ही चुनाव लड़ रही है। जमीनी नेता दिग्विजय सिंह कांग्रेस की रणनीति संभाल रहे हैं। कार्यकर्ताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है, प्रदेश की नब्ज को भी वे भलीभांति जानते हैं। प्रबंधन में कमल नाथ माहिर हैं। पूरी कांग्रेस उनके प्रबंधकीय कौशल का लोहा मानती है। दोनों नेता वर्ष 2018 में सरकार बनाने में सफल भी हो चुके हैं इसलिए भाजपा हाईकमान इन नेताओं को कमजोर नहीं आंक रहा है।
कांग्रेस के इन दोनों दिग्गजों ने 17 नवंबर 2023 को होने वाले चुनाव में करो या मरो की तर्ज पर पूरी ताकत झोंक दी है। ऐसे हालात में भाजपा के लिए कर्नाटक से कठिन परिस्थितियां मप्र सहित छग में बनी है। इस स्थिति से बचने के लिए भाजपा आलाकमान निरंतर प्रदेश की रिपोर्ट लेकर नब्ज टटोल रहा है। कांग्रेस के नेताओं की जमीनी हकीकत का भी भाजपा जायजा ले रही है।
मध्य प्रदेश अपने गठन 1956 के बाद से ही जनसंघ का गढ़ रहा है। भाजपा के गठन से पहले जनसंघ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आनुशांगिक संगठन था। 1957 में जनसंघ ने 10 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। 1962 के चुनाव में जनसंघ के वोट बढ़कर 17 प्रतिशत वोट मिले। 1967 से 1977 तक जनसंघ को 30 प्रतिशत वोट मिला करते थे। 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ और पार्टी ने पहला चुनाव लड़ा तो भी भाजपा को 30 प्रतिशत वोट मिले।
1985 में बढ़कर 32 प्रतिशत और 1990 में 39 प्रतिशत वोट पाकर भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई थी। अभी भी गुजरात के बाद मप्र ही ऐसा राज्य है, जहां भाजपा की लंबे समय से सरकार है। मात्र 2018 से 2020 के बीच के 15 महीने छोड़ दिए जाएं तो यहां 20 साल से भाजपा की सरकार है। इसी वजह से भाजपा किसी भी सूरत में मप्र को खोना नहीं चाहती है।
वर्ष 2018 के चुनाव परिणामों के पश्चात हमारे नेताओं ने प्रबंधन, संगठन व प्रत्याशी चयन में बहुत बारीकी से मेहनत की है। हमें पूरा विश्वास है कि मप्र भाजपा के लिए जनसमर्थन को सरकार बनाने में हम पुन: सिद्ध करेंगे। वहीं, कांग्रेस में ठीक उलट कमल नाथ जी और दिग्विजय सिंह जी के बीच चल रहा शीतयुद्ध अब सड़क पर आ गया है, जिससे लोगों की रुचि कांग्रेस के प्रति खत्म हो गई है।
हितेष वाजपेयी, प्रवक्ता भाजपा